तेने कोई बीजानी अपेक्षा नथी. अहा! शुं भगवाननो दिव्यध्वनि एना ज्ञाननो कर्ता छे? ना. केवळी-श्रुतकेवळीनी समीपे ज क्षायिक समकित थाय एवो नियम छे. ए तो बराबर छे, पण शुं केवळी-श्रुतकेवळी एना (-आत्माना) क्षायिक समकितना कर्ता छे? ना. भाई, भगवाननी दिव्यध्वनि अने केवळी-श्रुतकेवळी बहारमां निमित्त हो, पण ते एना (धर्मीना) ज्ञान-श्रद्धानना कर्ता नथी. ए तो आत्मा पोते ज पोताना स्वभावथी तेरूपे-ज्ञान-श्रद्धानरूपे परिणम्यो छे, एटले आत्मानुं ज ते कर्म छे, ने आत्मा ज तेनो कर्ता छे, तेने कोई बीजानी अपेक्षा नथी; केमके वस्तुनी शक्तिओ बीजानी अपेक्षा राखती नथी.
अहाहा...! आत्मा प्रज्ञाब्रह्मस्वरूप प्रभु जाग्रतस्वभावी-एक ज्ञायकस्वभावी भगवान छे. तेमां एक कर्तृशक्ति भरी छे. आ कर्तृशक्तिनुं बीजा अनंत गुणमां रूप छे. शुं कीधुं? ज्ञान, श्रद्धा, आनंद इत्यादि अनंत गुणमां कर्तृशक्तिनुं रूप छे. तेथी एक ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि करतां ते पोतानी वर्तमान ज्ञान-श्रद्धान आदिरूप निर्मळ पर्यायना भावनो भावक नाम कर्ता थाय छे. ज्ञानगुणनी निर्मळ पर्याय प्रगट थाय ते थवायोग्य सिद्धरूपभाव छे. ज्ञानना ते निर्मळ भावनुं ज्ञान कर्ता छे, शास्त्रो के श्रुतना विकल्पो ज्ञानभावना कर्ता नथी. तेवी रीते श्रद्धागुणनी निर्मळ पर्याय-समकित थाय तेनो श्रद्धागुण कर्ता छे, नवतत्त्वना विकल्प तेना कर्ता नथी; अने चारित्र-सम्यक्चारित्र प्रगट थाय तेनो चारित्रगुण कर्ता छे, व्रतादिना विकल्प तेना कर्ता नथी. अहा! आ रीते पोतानी निर्मळ पर्यायोने प्राप्त थई-पहोंचीने, तेमां तन्मय थईने आत्मा ज तेना कर्तापणे परिणमे छे. ते निर्मळ भावोनो भावक आत्मा ज छे, बीजुं कोई नहि, देव-गुरु-शास्त्र नहि, व्यवहारना विकल्प नहि ने कर्म पण नहि. आवी वात! समजाणुं कांई...?
अहा! निज ज्ञायकस्वभावनी अंतरमां जेने प्रतीति वर्ते छे ते साधकने निर्मळ ज्ञान-श्रद्धान अने वीतरागता इत्यादि निर्मळ परिणमनरूप कर्म प्रगट छे; ते सिद्धरूप भाव छे. अहा! ते भावनो कर्ता कोण? -के ते भावमां तन्मय थईने परिणमे ते कर्ता छे. अहा! ते-रूप जे थाय ते कर्ता छे; पण अतन्मय-जुदो रहे ते कर्ता नथी, तेने कर्ता कहेवो ए तो उपचारमात्र आरोपित कथन छे. अहाहा...! कर्तानुं इष्ट एवुं जे सम्यग्दर्शनादि निर्मळ कर्म ते कर्तानुं कार्य छे, ने धर्मी-साधक तेनो कर्ता छे. कर्ता-कर्म-करण इत्यादि बधुं ज आत्मामां समाय छे भाई! आत्मा एकलो ज पोते छए कारकपणे थाय छे. बहारमां जड कर्मनो अभाव थयो माटे निर्मळ पर्याय प्रगट थई छे एम छे ज नहि. समजाणुं कांई...?
अहाहा...! प्रभु! तारी ऋद्धि तो जो, तारी समृद्धिनी संपदा तो जो. ज्ञान, दर्शन, आनंद, प्रभुता, स्वच्छता- एम अनंत गुण-समृद्धिनी संपदा तारामां भरी छे. एमां एक कर्तृशक्तिरूप गुण छे. अहा! आ कर्तृत्व गुण द्रव्य- अने अनंत गुणमां व्यापक छे. आत्माना सर्व गुणमां कर्तृत्व गुण व्यापक छे; सर्वगुणमां कर्तृत्वगुणनुं रूप छे. तेथी ज्ञानादि सर्व गुण कर्तापणे थईने पोतानी निर्मळ पर्यायने करे छे. अहा! आ कर्तृत्व गुणना कारणे ज्ञानगुणनी निर्मळ पर्यायनी प्राप्ति थाय छे. वर्तमान मति-श्रुतज्ञाननी प्राप्ति कर्तृशक्तिना कारणे छे. ज्ञानमां कर्तृगुणनुं रूप छे ने! पछी क्रमे केवळज्ञाननी प्राप्ति थाय ते पण कर्तृशक्तिना कारणे छे. तेवी रीते दर्शन नामनो जे गुण छे तेनी चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन के केवळदर्शन-जे पर्याय थाय ते सिद्धरूप वर्तमान भाव छे, ने ते भावनी भावक कर्तृशक्ति छे. छे ने अंदर? ‘थवापणारूप अने सिद्धरूप भावना भावकपणामयी कर्तृशक्ति? भाई, आ तो अंदर छे एनी विशेष व्याख्या छे. ओहो...? आमां केटलुं समाडी दीधुं छे! एमके जडकर्मनो क्षयोपशम के क्षय थयो माटे अहीं दर्शननी निर्मळ पर्याय प्रगट थई छे एम नथी. दर्शनावरणीय कर्मना क्षयना कारणे केवळदर्शननी पर्याय थई छे एम नथी. हो, निमित्त हो, पण ते (उपादानमां) कांई करतुं नथी.
जयपुर (खानिया)मां विद्वानो वच्चे तत्त्वचर्चा थयेली त्यारे शंकापक्ष तरफथी आ वात रजु थयेलीः एम के-“चार घातिकर्मोना नाशथी केवळज्ञान प्रगट थयुं छे.” तत्त्वार्थसूत्रमां आ सूत्र छे. पण एनो अर्थ शुं? आ तो निमित्तनुं कथन छे. बाकी चार घातिकर्मनो नाश थईने तो परमाणुओनी अकर्म दशा थई छे, तेमां एनाथी आत्मामां शुं थयुं छे? भाई, आत्मानी केवळज्ञाननी पर्याय ते ते समये थवापणारूप ने सिद्धरूपभाव छे, ने ते भावना भावकमयी कर्तृशक्ति छे.
आत्मामां एक दृशिशक्ति छे. चितिशक्तिमां ज्ञान अने दृशि-एम बन्ने शक्ति आवी गई. अहीं कहे छे- दृशिशक्तिनी पर्यायनी कर्ता दृशिशक्ति छे. दरेक गुणनी वर्तमान पर्याय प्राप्त छे तेमां कर्तृशक्तिनुं रूप छे. ते कर्तापणे उत्पन्न थाय छे. सत्नी स्थिति ज आवी छे भाई!
जीवमां एक जीवनशक्ति छे. जीवनुं निर्मळ चैतन्यजीवन प्रगट थाय तेनो कर्ता आ जीवनशक्ति छे. भाई, देह,