१९०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ इन्द्रियो के आयु इत्यादिना कारणे जीवनुं ‘जीवन’ -चैतन्यजीवन छे एम नथी, देहादि तेना कर्ता नथी. ए तो अज्ञानी हुं देहादि वडे जीवुं छुं एम माने छे, पण वास्तवमां तो ए एनुं मरण-भावमरण छे. जेमां जीवनशक्ति व्यापे ते जीवनुं जीवन छे.
आत्मामां एक आनंदशक्ति छे. जेम ज्ञान आत्मानो स्वभाव छे तेम आनंद आत्मानो स्वभाव छे. वर्तमानमां जे अतीन्द्रिय आनंदनी अनुभूतिरूप कार्य प्रगट थाय तेनो कर्ता आनंद गुण छे. तेमां कर्तृशक्तिनुं रूप छे ने! कोईने थाय के आ बधुं केटलुं याद राखवुं? अरे भाई, बीजे वेपार आदि संसारी कामोमां तो खूब बधुं याद राखे छे. अहीं मूढता बतावे छे. तेथी नक्की छे के तारी रुचि आमां नथी. पण भाई, आ तो असाधारण भागवत कथा छे. आ समयसार तो जैनधर्मनुं महा भागवत छे. आ ज साचुं भागवत छे; केमके भगवाननुं कहेलुं छे, ने भगवान थवानुं बतावे छे. अहा! आ तो महायत्न करीने पण समजवा जेवी चीज छे भाई! आने समजवा महा पुरुषार्थ, अनंत-अनंत पुरुषार्थ करवो जोईए.
अहा! ए पुरुषार्थनी पर्याय कयांथी प्रगटशे? वीर्यशक्तिमांथी वर्तमान पुरुषार्थनी पर्यायनो कर्ता वीर्यशक्ति छे. वर्तमान जागृत पुरुषार्थमां वीर्यशक्ति तन्मय छे. अहा! आवो यथार्थ निर्णय करे तेनुं वीर्य पराश्रय छोडी स्वाश्रये प्रवर्ते छे, अने पोताना निर्मळ निर्मळ भावो रचवामां उपयुक्त थाय छे. समजाय एटलुं समजो बापु! बाकी आमां तो अपार ऊंडी वातु छे. अहाहा...! एकेक गुणमां अनंत गुणनुं रूप ने अनंत गुणमां एकेक गुणनुं रूप छे. अलौकिक वात छे प्रभु!
‘सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः’-आवुं तत्त्वार्थसूत्रमां सूत्र छे. सम्यग्दर्शननी पर्याय जे प्राप्त थाय ते प्राप्त थवानो तेनो काळ छे. अहा! ते भावनो कर्ता कोण? श्रद्धा गुणमां कर्तृशक्तिनुं रूप छे तेथी ते तेनो कर्ता थाय छे. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी पर्याय जे उत्पन्न थई ते सिद्धरूप भाव छे, ने ते भावना भावकपणामयी कर्तृशक्ति छे. ‘भावक’ शब्द पडयो छे. भावना भावकपणामय एटले भावना कर्तापणामय ते गुण छे. आवो मार्ग सूक्ष्म छे. अरे, लोकोए स्थूळ रागमां मार्ग मनावी दीधो छे. एम के व्रत करो, तप करो, उपवास करो-एम बधे राग करवानी प्ररूपणा चाले छे. कोई दशलक्षण पर्वमां दस उपवास करे तो माने-मनावे के-ओहोहो..! भारे धर्मात्मा, घणो धर्म कर्यो. पण बापु! उपवास एटले शुं? उप नाम समीप, ने वास एटले रहेवुं; आत्मानी समीप- आश्रयमां रहेवुं ते उपवास छे. ज्ञायकभावनी निर्मळ परिणति प्रगटे तेनुं नाम उपवास छे. बाकी बधो तो अपवास नाम माठो वास-दुर्गतिनो वास छे. हवे वाते वाते फेर छे त्यां बीजा साथे मेळ केवी रीते करवो?
अहाहा...! आत्मामां अनंत गुण छे. प्रत्येक गुण असहाय छे. कोई गुणने कोईनी (कोई अन्यनी) सहाय नथी. वळी कोई गुण बीजा गुणनी सहायथी छे एम नथी, तेम ज एक गुणनी पर्याय बीजा गुणनी सहायथी थाय छे एमेय नथी. एक गुणमां बीजा गुणनुं निमित्तपणुं हो, केमके एक गुण ज्यां व्यापक छे त्यां बीजा अनंत गुण व्यापक छे, पण कोई गुणना कार्यनो कोई बीजो गुण कर्ता नथी. सर्वत्र निमित्तनुं आवुं ज स्वरूप छे. हवे आम छे त्यां (कार्य) व्यवहारथी थाय ने निमित्तथी थाय ए कयां रह्युं? कयांय उडी गयुं.
भाई, तारा आत्मद्रव्यना कर्ता कोई इश्वर नथी. तारा गुणना कर्ता पण कोई इश्वर नथी, तारा प्रत्येक गुणनी पर्याय थाय तेनो कर्ता कोई बीजा गुणनी पर्याय नथी. अहा! द्रव्य-गुण पोते ज पोताना कार्यना कर्तापणाना सामर्थ्ययुक्त इश्वर छे. अहो! आचार्यदेवे कर्तृ आदि शक्तिओनुं कोई अद्भुत वर्णन कर्युं छे. आवी वात बीजे कयांय नथी. समजाणुं कांई...?
प्रभु! तुं जागती ज्योत, ऊभो छो ने? अहाहा...! जागती ज्योतनो थंभ-ध्रुवस्थंभ छो ने! तेना पर नजर करवी ते तारुं कार्य छे. ध्रुवनी नजरे ज सिद्धि छे भाई! जेम कोई मोटो माणस घरे आवे ते वखते तेनो सत्कार, आदरमान करवाने बदले कोई घरना नाना बाळक साथे रमत करवा मंडी जाय तो ते मोटो माणस एनो उपेक्षाभाव जाणीने चाल्यो जाय. तेम अंदर जागती ज्योत भगवान ज्ञायकदेव ऊभो छे, तेना उपर नजर न करे, तेनो सत्कार, आदरमान न करे, अने राग ने पुण्यरूपी बाळक साथे रमतुं मांडे तो भगवान ज्ञायक चाल्यो जाय, अर्थात् तारी चीज तने प्राप्त न थाय. भाई, पुण्य-पापमां रोकाई रहेवुं ए तो बाळक बुद्धि छे.
आ शरीर तो जड माटी-धूळ छे, ने पुण्य-पापना विकारी भाव दुःख ने दुःखरूप छे. तेमां भगवान ज्ञायक नथी. अंदर भिन्न जागती ज्योत-चैतन्य ज्योत प्रकाशे छे ते भगवान ज्ञायक छे. भाई, तेनी द्रष्टि कर, तेमां नजर करी