Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४२-कर्तृशक्तिः १९१

त्यां ज रमवानुं जोर आप, तेनुं ज ध्यान कर. तेथी तने निर्मळ रत्नत्रय प्रगटशे, अद्भुत अपूर्व आल्हाद थशे. अहा! ते अपूर्व आनंदनी दशा थाय तेनो कर्ता आनंद गुण छे. आनंद गुण द्रवीने आनंदनी दशारूप थाय छे. आम दरेक गुणमां षट्कारकनुं परिणमन होवाथी ते ते गुणनी पर्यायनो कर्ता ते ते गुण छे. खरेखर तो पर्यायनो कर्ता पर्याय ज छे, पण अहीं ए वात नथी. अहीं तो व्याप्यमां व्यापक थईने परिणमे छे कोण?-एम लेवुं छे. तेथी गुणनी पर्याय थाय तेनो कर्ता गुण छे, ने अभेदथी द्रव्य छे. अहा! आ कर्तृत्व गुण द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापे छे, पण कोने? द्रव्यद्रष्टिमां तेनो स्वीकार करे तेने; तेने समये समये निर्मळ निर्मळ पर्यायो थया करे छे.

भाई! सत् शुं? सत्नुं स्वरूप शुं? -हवे एनुं यथार्थ ज्ञान थया विना सत् केवी रीते प्राप्त थाय? भावभासनमां तो पोतानी चीज आववी जोईए ने? अहीं कहे छे-थवापणारूप अने सिद्धरूप भाव तेना भावकपणामयी कर्तृशक्ति छे. सिद्धरूप भाव एटले ते समये थवायोग्य जे निश्चित निर्मळ भाव प्राप्त थाय ते; ते समयनुं प्राप्य. समयसारनी गाथा ७६-७७-७८मां प्राप्य, विकार्य अने निर्वृत्य-एवा त्रण बोल आवे छे. प्राप्य एटले ते समये जे थवायोग्य नियत भाव छे तेने प्राप्त करे छे एनुं नाम प्राप्य. अहा! आमां तो समये समये थवायोग्य क्रमबद्ध पर्याय थाय छे ते, अने तेनुं कर्तापणुं पण सिद्ध कर्युं छे. भाई, सत् बहु सूक्ष्म छे, तेने यथार्थ समजवुं जोईए.

दरेक गुणमां कर्तृत्व गुणनुं रूप छे. ते कारणे प्रत्येक गुण कर्ता थईने पोतानी निर्मळ पर्यायने करे छे, बीजो गुण तेनो कर्ता नथी. आनंद गुणनी पर्याय प्रगटी तेने कर्तृत्व गुणनी पर्याय करती नथी. अहाहा...! एक पर्यायमां एक गुण कर्ता, अने एकेक पर्यायमां ते पर्याय पोते कर्ता. एकेक गुणनी एकेक पर्यायमां षट्कारक, ने एकेक पर्यायमां पर पर्याय नहि-आम अनंती पर्यायमां सप्तभंगी लगाववी. पोतानी पर्यायथी पोतानी पर्याय, ते पर्याय बीजी अनंती पर्यायना कारणे नथी-एम अनंत सप्तभंगी लगाववी. ल्यो, आवी जैन परमेश्वरना घरनी वातनो लोको समज्या विना ज विरोध करे छे. भाई, जरा धीरजथी सांभळे तो तने विरोधनुं कारण रहेशे नहि. आ तो तारा हितनी वात छे बापु!

जुओने! द्रव्य स्वतंत्र, गुण स्वतंत्र, विकारना अभावरूप पर्याय स्वतंत्र छे. पण आ तो निश्चय छे, एकांत छे -एम कहीने एने टाळी दे छे. अरे प्रभु! एकांत छे, पण आ सम्यक् एकान्त छे.. भाई, एकान्तना पण बे प्रकार छेः सम्यक् एकान्त, अने मिथ्या एकान्त. अनेकान्त पण सम्यक् अने मिथ्या एम बे प्रकारनुं छे. पोतानी पर्याय पोताथी छे, ने रागथीय छे-ए मिथ्या अनेकान्त छे. पोतानी पर्याय पोताथी छे, ने परथी-रागथी नथी-आ सम्यक् अनेकान्त छे. अरेरे! आ जिंदगी चाली जाय छे भाई! करवानां कार्य न करे, अने न करवायोग्य पुण्य- पापमां रोकाई जाय ए तो बाळवृत्ति छे भाई!

पण आखी दुनिया तो एम करे छे? आखी दुनिया तो उंधे रस्ते छे, अने तेने देखीने पोते पण उंधे रस्ते जाय एमां शुं विवेक छे? दुनिया तो दुःखी छे, ने दुःखी रहेशे, माटे दुनियानुं लक्ष छोडी, तारा आत्मानुं लक्ष कर; आनंदनो समुद्र तारो आत्मा छे; तेनुं लक्ष करतां पोते ज आनंदरूप थईने तेने आनंद आपे एवा सामर्थ्यवाळो ते छे. समजाणुं कांई...?

अहा! आत्मानी क्रिया तो ज्ञाताद्रष्टापणे जाणवुं ते छे, अने तेनो आत्मा कर्ता छे. पण मलिनता-विकारना परिणामनो आत्मा कर्ता नथी. वास्तवमां विकाररूप थवाना उपरमस्वरूप-निवृत्तस्वरूप भगवान आत्मानो अकर्तृत्व स्वभाव छे. (जुओ २१मी अकर्तृत्वशक्ति) विकार आत्मा नहि, ने विकारने करे तेय आत्मा नहि; केमके विकारना करवारूप आत्मानो कोई गुण नथी. समजाय छे कांई...? अहा! शुद्ध चैतन्यपरिणति छोडीने, बीजा कोई परभावोनुं-व्यवहार रत्नत्रयादिनुं पण-भगवान आत्माने कर्तृत्व नथी, अकर्तृत्व ज छे, ज्ञातापणुं ज छे. ज्ञानी व्यवहार रत्नत्रयना रागने मात्र जाणे ज छे बस. अहा! आवुं धर्मनुं स्वरूप छे.

प्रश्नः– अनंत शक्तिमान आत्मा छे. तो ते जनहितनां कार्यो तो करे ने? उत्तरः– अरे भाई, अनंत शक्तिमान आत्मा छे ए तो साचुं, पण तेनी अनंत शक्तिओनुं कार्य आत्मामां ज समाय छे, बहारमां ते विस्तरतुं ज नथी. आत्मा बहारमां कांई करे एवी कोई एनी शक्ति ज नथी. लोकना एक परमाणुने पण करे एवुं आत्मानुं सामर्थ्य नथी. बेमां अत्यंताभाव होवाथी, परमां कांईपण करवानुं आत्मानुं सामर्थ्य ज नथी तो पछी ते जनहितनां कार्यो केवी रीते करे? हुं परनां-जनहितनां कार्य करुं छुं एवी मान्यता तो घेलछा ने मूढपणुं सिवाय कांई ज नथी. समजाणुं कांई...?