कह्युं छे. ए आरोपित उपचारनुं कथन छे. देव-गुरु-शास्त्रने समकितनुं कारण-साधन कह्युं होय तेय उपचारमात्र निमित्तनुं कथन जाणवुं. अंदर निजात्मानुं साधन जेने वर्ते छे एवा धर्मीना व्यवहार रत्नत्रयने ने देव-गुरु-शास्त्रने सहचर वा निमित्त जाणी उपचारथी साधन कहेवामां आवे छे. बाकी करण-साधनगुण वडे पोतानो आत्मा ज पोताना समकित आदि निर्मळ भावोनुं वास्तविक साधन छे. निर्मळ परिणत निज शुद्धात्मा ज परमार्थ साधन छे, बाह्य निमित्तो ने भेदरूप व्यवहार कोई सत्यार्थ साधन नथी, ज्यां साधन कह्यां होय त्यां उपचारमात्रथी कह्यां छे एम समजवुं, अने मूळ अंतरंग साधनना अभावमां तेने उपचार पण लागु पडतो नथी एम यथार्थ जाणवुं. अहा! आवो वीतरागनो मारग, भाख्यो श्री भगवान!
आ समयसार शास्त्रमां गाथा ३प६ थी ३६प नी टीकामां आचार्यदेवे प्रश्न मूकयो छे के-‘अहीं स्व- स्वामीरूप अंशोना व्यवहारथी शुं साध्य छे?’ तेना उत्तररूपे कह्युं के-‘कांई साध्य नथी.’ हवे अंदरना गुण-गुणीरूप भेदना सूक्ष्म व्यवहारथी कांई साध्य नथी तो पछी व्रत, तप आदि व्यवहार रत्नत्रयनो स्थूळ राग साधन कयांथी थाय? भाई, स्वभावनुं आलंबन ज साधकतम साधन छे, आ सिवाय व्यवहारथी के निमित्तथी कांई ज साध्य नथी.
अहाहा...! अनंत वार एनो जैन कुळमां जन्म थयो. साक्षात् त्रणलोकना नाथ अरिहंतदेवना समोसरणमां पण अनंत वार गयो, ने भगवाननी दिव्य वाणी पण सांभळी. वळी वनवास जई, दिगंबर नग्न मुनि-द्रव्यलिंगी थईने दुर्द्धर व्रत, तप आदर्यां; पंचमहाव्रत पाळ्यां-अहाहा...! ‘वह साधन बार अनंत कियो’-अनंत वार एणे आवां साधन ग्रह्यां, पण बधुं ज फोगट गयुं. कारण? कारण के आ बाह्य साधन नियमरूप साधन नथी. साधनशक्तिमय निज चैतन्यस्वरूप आत्मा ज समकित आदि साध्यनुं साधन छे. माटे ते एकनी ज द्रष्टि कर, ते एकनुं ज आलंबन कर. तारुं साध्य अने साधन तारामां ज-एक शुद्धात्मामां ज समाय छे. समजाणुं कांई...!
जिंदगी एळे जाय छे भाई! अरे! एने साची वात कदी सांभळवा मळी नथी. अहीं कहे छे-भवना अभावना कारणरूप जे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी निर्मळ पर्यायो तेनुं कारण शुद्ध आत्मद्रव्यना आश्रयभूत साधनशक्ति छे. धर्मीने वच्चे व्यवहार रत्नत्रय आवे छे अवश्य, पण ते साधन नथी. वास्तवमां ए तो हेय तत्त्व छे. आकरी वात प्रभु! पण आ सत्य वात छे. उपादेय तत्त्व निज शुद्धात्मा छे. अहाहा...! साधन गुणनो धरनारो गुणी, पंचम पारिणामिकभाव-एक ज्ञायकभाव जेनो स्वभाव भाव छे, अहाहा...! एवो नित्यानंदनो नाथ प्रभु निज शुद्धात्मा छे; तेनो आश्रय करवाथी, तेनी साधनशक्ति परिणमतां, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप निर्मळ भावोनुं भवन थाय छे. प्रभु! तारा धर्मनुं जे वीतरागी कार्य तेनुं साधन व्यवहारनो राग नथी, केमके तेने ते पहोंचतो नथी; वीतरागी कार्यने राग पहोंचतो नथी, स्पर्शतो नथी, अनंतगुणमहिमावान शुद्ध आत्मद्रव्य ज तारा सिद्धरूप भावोनुं साधन छे; केमके ते भावोमां आत्मा तन्मय छे. अहाहा...! सर्वज्ञ परमेश्वरे आत्माने केवो देख्यो? कहे छे-
निज सत्ताए शुद्ध, सहुने पेखता हो लाल.
अहाहा...! सर्व जगतने देखनार प्रभु! आप ज्ञायक छो. आत्मानुं निज सत्ताथी ज होवापणुं शुद्ध, पवित्र छे एम आपे ज्ञानमां जोयुं छे. परवस्तु शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, कर्म, नोकर्मने भगवान! आपे अजीवपणे देख्यां छे; हिंसा, जूठ, चोरी, विषयवासना इत्यादिने आपे पापरूपे देख्यां छे; ने दया, दान, व्रत, तप, शील इत्यादि भावने आपे पुण्य तरीके देख्यां छे. निज होवापणुं तो प्रभु, आप शुद्ध देखो छो. ल्यो, व्रत, तप आदि पुण्यभावोने आत्माना होवापणे भगवान देखता नथी, पछी ते साधन छे ए वात कयां रही?
अरे, आखी जिंदगी पैसा आदि धूळमां सुख मानीने वीतावे छे. परमात्मा कहे छे-जे कोई पर चीजने मागे-वांछे छे ते मोटो भिखारी छे. पोतानी चीज पूर्णानंदनो नाथ प्रभु अनंतशक्ति संपन्न अंदर विराजे छे तेनी समीप जई सुख मेळवतो नथी, ने बहारनी चीजमां-देहमां, धनमां, स्त्री आदिमां-सुख माटे झावां नाखे छे तो महा दरिद्री-भिखारी छे.
पण ए अबजोपति छे ने? अबजोपति होय तोय ए धूळनो धणी धूळपति छे, ने तीव्र तृष्णाथी माग माग करनारो मोटो मागण- भिखारी छे; वळी ते मूर्ख पण छे, केमके भाई, ए धूळमां जरीये सुख नथी, बलके एनी तृष्णामां आकुळतानो भंडार छे, दुःखनो