१९४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ दरियो छे. छतां अज्ञानथी तेमां सुख मानी रह्यो छे. अरे, तारुं सुख तो अंदर सुखनो समुद्र भगवान आत्मा छे तेमां छे. आत्मामां सुख अने साधन-एवी शक्तिओ पडी छे. अहा! सुखनुं साधन थईने पोताने सुखनी प्राप्ति कराववी ते करणशक्तिनुं कार्य छे. भाई, अंतर्मुख द्रष्टि करी अंदर जो तो खरो, तुं न्याल थई जाय एवां सुखनां निधान देखाशे.
अहाहा...! चैतन्यगुणरत्नाकर प्रभु आत्मा छे. तेमां एक करण नाम साधन गुण छे. ज्ञानादि बीजा अनंत गुणमां आ साधन गुणनुं रूप छे. शुं कीधुं? आत्मामां ज्ञान वगेरे गुण छे तेमां साधन गुणनुं रूप छे. ज्ञानगुणमां साधन गुण छे एम नहि, पण तेमां साधन गुणनुं रूप छे. बीजी रीते कहीए तो ज्ञानगुण पोते ज साधनरूप थईने पोताना सम्यग्ज्ञान परिणामने साधे एवुं एनुं स्वरूप छे. आवी वात! अरे, पोताना घरमां शुं भर्युं छे एनी जीवे कदी संभाळ करी नथी. जेने अंतरमां जिज्ञासा जागी छे तेने साधन बतावतां आचार्यदेव गाथा २९४ नी टीकामां कहे छे-
“आत्मा अने बंधने द्विधा करवारूप कार्यमां कर्ता जे आत्मा तेना करण संबंधी मीमांसा करवामां आवतां, निश्चये पोताथी भिन्न करणनो अभाव होवाथी भगवती प्रज्ञा ज (-ज्ञानस्वरूप बुद्धि ज) छेदनात्मक करण छे. ते प्रज्ञा वडे तेमने छेदवामां आवतां तेओ नानापणाने अवश्य पामे छे; माटे प्रज्ञा वडे ज आत्मा अने बंधनुं द्विधा करवुं छे. (अर्थात् प्रज्ञारूपी करण वडे ज आत्मा ने बंध जुदा कराय छे.)”
जुओ आ साधन! अहाहा...! स्वानुभवमां अंतःस्पर्श करीने आचार्य भगवान कहे छे-भगवती प्रज्ञा ज- स्वाभिमुख ढळेली ज्ञाननी दशा ज-छेदनात्मक करण छे. प्रज्ञारूपी साधन वडे ज आत्मा अने बंध जुदा कराय छे. ल्यो, आम कर्तानुं साधन पोतामां ज छे, कर्ता पोते ज छे. ‘पोताथी भिन्न करणनो अभाव होवाथी’ -एम कहीने आचार्यदेवे आ महा सिद्धांत स्थापित कर्यो छे. माटे हे भाई! तारा साधननी अंदर चैतन्यना तळमां उंडा उतरीने तारामां ज तपास कर; बीजे शोध मा. जेओ साधनने बहारमां शोधे छे तेओ स्थूळ बुद्धिवाळा बहिद्रष्टि छे, तेमने बीजे कयांय साधन हाथ आवतुं नथी. श्रीमद्मां आव्युं छे ने के-
जे चैतन्यना तळमां उंडा उतरीने शोध करे छे तेमने पोताना आत्मामां ज पोतानुं साधन भासे छे. अरे, पोते ज साधनरूप थईने सम्यग्दर्शनादि निर्मळ भावोने प्राप्त करे छे.
अहा! ज्ञानने सूक्ष्म करीने ज्यां अंतरमां वाळ्युं, स्वाभिमुख कर्युं त्यां भगवान आत्मानो अनुभव थाय छे. आ स्वाभिमुख ज्ञाननी दशाने भगवती प्रज्ञा कहे छे, अने आ ज स्वानुभवनुं ने मोक्षनुं साधन छे. भगवती प्रज्ञा अभेदपणे आत्मा ज छे, तेथी आत्मा ज पोते पोताना निर्मळ भावोनुं-समकितथी मांडीने सिद्धपद पर्यंतना भावोनुं-साधन छे. आ सिवाय भिन्न साधन कह्युं होय ते उपचारमात्र कह्युं छे एम जाणवुं. समजाणुं कांई...?
अरे, पोतानी शक्तिनुं अंतरमां शोधन कर्या विना, पोताना साधननुं भान कर्या विना ए चोरासीना अवतारमां रखडया करे छे. अहीं मोटो अबजोपति शेठ होय ते मूर्ख (तत्त्व मूढ) मरीने जाय हेठ कयांय नरकमां. आ बधुं-बाग-बंगलाने धन-संपत्ति-धूळधाणी बापु! नरकमां एनी पारावार वेदना-दुःखनुं शुं कहेवुं? अरे, अनंत काळ तो एनो अनंती वेदनानुं-दुःखनुं स्थान एवा निगोदमां गयो छे. भाई, तारे दुःखमुक्त थवुं होय तो अंदर तारामां एनुं साधन छे तेनो निश्चय कर. अहाहा...! पर्यायमां जे निर्मळ ज्ञान ने आनंदनुं कार्य एक पछी एक प्रगट थाय छे ते वीतरागी भवता भावनुं कारण, कहे छे, आत्मामां सदाय रहेली साधनशक्ति छे. आत्मामां अंतर्द्रष्टि करी छे ते द्रष्टिवंतने, श्रद्धा गुण वडे आत्मा पोते ज साधन थईने समकितपणे परिणमे छे, ज्ञानगुण वडे आत्मा पोते ज साधन थईने सम्यग्ज्ञानपणे परिणमे छे, ने आनंद गुण वडे आत्मा पोते ज अनाकुळ आनंदपणे परिणमे छे. आम साधन गुणनुं सर्व गुणमां रूप होवाथी सर्व गुणोमां पोतपोतानी पर्यायोनुं साधन थवानुं सामर्थ्य होय छे. बधा गुण-पर्यायो अभेद आत्मामां ज समाता होवाथी आत्मा ज साधन-साध्य छे. (भेद तो समजवा माटे छे). अरे, आ वातनो अत्यारे बहु लोप थई गयो छे. उंचा पद धरावनारा पण व्रत करो, तप करो, भक्ति करो... , ने तमारुं कल्याण थई जशे-एवी प्ररूपणा करे छे; पण भाई, शुभभाव करतां करतां शुद्धतां थशे एवी प्ररूपणा सम्यक् नथी, केमके शुभराग कोई शुद्धतानुं साधन नथी.
आ शेठियाओ मोटा मोटा बंगला बंधावे; कोण बंधावे? ए तो कथन छे. पछी बंगलानुं वास्तु ले त्यारे मोटो उत्सव उजवे छे; पण ए तो परघर बापु! तारुं घर नहि भगवान! तारा स्वघरमां तो चैतन्यनी अनंत शक्तिओ भरी