१९८ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११
‘पोताथी देवामां आवतो जे भाव तेना उपेयपणामयी (-तेने मेळववाना योग्यपणामय, तेने लेवाना पात्रपणामय) संप्रदानशक्ति.’
अहा! आचार्य भगवाने भिन्न भिन्न प्रकारे शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन कर्युं छे. अहाहा...! अनंत शक्तिनो भंडार प्रभु आत्मा छे. आ एक ज्ञायकस्वभावी चिन्मात्र वस्तु आत्मा अनंत शक्तिओनो भंडार छे. हवे पोते शुं चीज छे एनी खबरेय न मळे, अने एने धर्म थई जाय एम कदी बने नहि. अहीं कहे छे-तेमां (-आत्मामां) एक संप्रदान-शक्ति छे. केवी छे आ शक्ति? तो कहे छे-‘पोताथी देवामां आवतो जे भाव तेना उपेयपणामयी आ संप्रदानशक्ति छे.’ शुं कीधुं? निज चैतन्य वस्तुना आश्रये स्वभाव साधन वडे जे सम्यग्दर्शन आदि निर्मळ भाव थयो ते ‘पोताथी देवामां आवतो’ भाव छे, अने तेना उपेयपणामयी संप्रदानशक्ति छे, अर्थात् ते भाव पोते ज पात्र थईने पोताने माटे ले छे, राखे छे. आवी वात! समजाणुं कांई...? कोई बीजाए-निमित्ते के शुभरागे-ते भाव दीधो छे एम नहि, ने ते भाव कयांय बीजे गयो छे एम पण नहि. पोतामां उत्पन्न थयेलो भाव पोते पोताने दीधो, ने पोते ज पोता माटे ते लीधो-आवी आत्मानी संप्रदानशक्ति छे.
लक्ष्मी देनार ते दाता, अने लेनार ते सुपात्र-अन्य दातार अने अन्य पात्र-एम वात छे ज नहि; केमके एवी वस्तु नाम आत्मा नथी. भाई, बीजी चीज देवी अने लेवी ते आत्मानी शक्ति नथी. अहीं तो कहे छे- आत्मानो एवो संप्रदान स्वभाव छे के जे वडे निज स्वरूपनी द्रष्टि थतां ज्ञाननी वर्तमान जे निर्मळ पर्याय प्रगट थई ते निर्मळ पर्यायनो आत्मा पोते दाता छे, ने पोतानी पर्यायने लेनारो पोते ज पात्र छे-बन्ने एक समयमां छे. सम्यग्ज्ञाननो दाता आत्मा पोते छे, वीतराग भगवान के तेमनी वाणी के तेमनां भक्ति-विनयरूप प्रवर्तन ते सम्यग्ज्ञानना दाता नथी. अहा! आत्मा बीजाने कांई दे एवी आत्मानी कोई शक्ति ज नथी. अहाहा...! आ अलौकिक वात छे, एने लौकिक साथे कोई मेळ नथी.
अहाहा...! धर्मीने सम्यग्ज्ञाननी पर्याय स्व-आश्रये प्रगट थई तेनो दाता कोण? तेने लेनारो पात्र कोण? तो कहे छे-सम्यग्ज्ञानमय भगवान आत्मा छे. तेमां एक संप्रदानशक्ति छे. ते द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापे छे. तेथी स्व-आश्रये जे ज्ञाननी निर्मळ पर्याय प्रगट थई ते पोते दाता छे, अने ते ज समये लेवानी पात्रता पण ते ज पर्यायमां पोतानी छे.
जुओ, त्रणलोकना नाथ श्री तीर्थंकरदेव छद्मस्थ मुनिदशामां होय ने घरे आहार माटे आवे तो धर्मीनुं हृदय अंदर आनंदथी उछळी जाय, अहो, साक्षात् मोक्षनुं कल्पतरु मारे आंगणे फळ्युं!-एम तेना रोमरोम आनंदथी उल्लसी जाय छे. ते अपार भक्तिथी मुनिराजने आहारदान दे छे. पण बन्नेना अंतरमां शुं छे? एम के आहारना रजकणनो देनार-लेनार अमारो भगवान ज्ञायक नथी; अने भगवान ज्ञायकमां कोई शक्ति नथी के आहारदानना शुभभावने दे अने ले. अहाहा...! अंदर ज्ञाननी, अनाकुळ आनंदनी जे निर्मळ परिणति प्रगट थई छे ते ज दाननी दातार छे, ने ते ज दाननी लेनारी पात्र छे. देनार दाता पण ते पर्याय अने लेनार पात्र पण ते ज पर्याय. जुओ आ धर्मीनी अंतर्द्रष्टि!
सूक्ष्म वात छे प्रभु! धर्मीने वर्तमान प्रगट थयेली सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञाननी पर्याय, अनाकुळ आनंदनी ने शांतिनी पर्याय, सम्यक् वीर्यनी पर्याय-ते निर्मळ पर्याय पोताथी देवामां आवतो भाव छे, ने तेने लेवाना पात्रपणामय पण ते निर्मळ पर्याय छे. अभेदथी कहेतां आत्मा पोते पोताने पोतानी निर्मळ पर्यायनुं दान आपे छे, अने पोते ज तेने लेवाना पात्रपणामय छे. आवो पोतानो संप्रदान स्वभाव छे. एक ज समयमां दाता अने पात्र बन्ने पोते ज छे. अहा! धर्मी अंतर्द्रष्टि वडे प्रतिक्षण पोताना स्वभावमांथी प्राप्त निर्मळ पर्यायनुं दान दे छे, ने पोते ज तेना पात्रमय थईने ते ले छे. जुओ आ दान! आनुं नाम धर्म छे. बाकी आहारनो देनारो-लेनारो पोताने माने ए तो मूढ छे, मिथ्याद्रष्टि छे.
अहा! सम्यग्दर्शननो विषय अनंतगुणनिधान प्रभु आत्मा छे. ज्यां ते विषय द्रष्टिमां आव्यो, अहाहा...! पूर्णानंदनो नाथ पोते छे एनी ज्यां द्रष्टि थई त्यां तेना सम्यक् श्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे. आ सम्यग्दर्शननी पर्याय ते पोताथी देवामां आवतो भाव छे. शुं कीधुं? पोते ज पोताने सम्यग्दर्शननो दाता छे, ने पोते ज पात्रपणे तेनो लेनारो छे.