२०२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ एनुं स्वरूप नथी. जीवमां एवो कोई गुण नथी के ते व्यवहारने करे, पोताने दे अने पोतामां राखे.
श्रीमद् राजचंद्रजीए एक जग्याए कह्युं छे के-“सम्यग्द्रष्टि धर्मनुं पात्र छे.” जुओ आ पात्र! उत्तम वस्तुनुं दान झीलवानुं पात्र पण उत्तम होय छे. जेम सिंहणनुं दूध सोनाना पात्रमां ज रहे छे, तेम उत्तम एवां रत्नत्रयने झीलवानुं पात्र उत्तम एवो सम्यग्द्रष्टि जीव ज होय छे. अज्ञानी तेनुं पात्र नथी. अहा! आत्मामां ज एवी उत्तम पात्रशक्ति (संप्रदानशक्ति) छे के पोते परिणमीने पोताना अतीन्द्रिय आनंदने पोतामां झीले छे. गुणनी अवस्थानी योग्यता ते पात्र अने गुणनी ते अवस्था ज दाता छे. आ सर्वज्ञदेवनी वाणीमां आवेली वात छे. जेणे द्रव्य स्वभावनो आश्रय लीधो, तेने सम्यग्दर्शननी पर्याय प्रगट थई, ते पर्याय पोताथी देवामां आवे छे तेथी दाता छे, अने तेने लेवाने योग्य पात्रता पण ए ज पर्यायमां होवाथी ते सुपात्र छे. अने ते समये दान पण ते पर्याय पोते ज छे. आवो अंतरनो मारग अद्भुत छे.
आ प्रमाणे अहीं संप्रदानशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.
‘उत्पाद-व्ययथी आलिंगित भावनो अपाय (-हानि, नाश) थवाथी हानि नहि पामता एवा ध्रुवपणामयी अपादानशक्ति.’
आ समयसारनो शक्तिनो अधिकार चाले छे. द्रव्य एक, अने तेनी शक्ति एटले गुणो अनेक-अनंत छे. तेमांथी अहीं ४७ शक्तिओनुं आचार्य भगवाने वर्णन कर्युं छे. अत्यारे अहीं अपादानशक्तिनी वात करवी छे.
कहे छे-‘उत्पाद-व्ययथी आलिंगित भावनो अपाय थवाथी हानि नहि पामता एवा ध्रुवपणामयी अपादानशक्ति छे.’ अहा! उत्पाद-व्ययरूप भावो एटले पर्यायो क्षणिक छे, तेनो समये समये नाश थई जाय छे, छतां भगवान आत्मा त्रिकाळी चैतन्यवस्तु ध्रुवपणे रहे छे, नाश पामतो नथी. ध्रुव आत्मस्वभाव तो एवो ने एवो त्रिकाळ टकी रहे छे. आ ध्रुव टकता भावमांथी ज नवुं नवुं कार्य ऊपजे छे. आ रीते ध्रुवपणे टकीने नवुं नवुं कार्य करवानी आत्मानी अपादानशक्ति छे. अहा! पोतानी आवी शक्ति जाणी जे कोई एक ध्रुवस्वभावने अवलंबे छे तेने समये समये निर्मळ निर्मळ कार्य थाय छे.
आ शक्ति बधामां प्रधान छे. पं. श्री दीपचंदजीए आ शक्तिनां बहु वखाण कर्यां छे. ध्रुव अने क्षणिक एम बे प्रकारे उपादान छे. जे त्रिकाळी गुण छे ते ध्रुव उपादान छे, उत्पाद-व्ययथी आलिंगित भाव ते क्षणिक उपादान छे. चिद्दविलासमां अष्टसहस्त्रीनो आधार आपी कह्युं छेः “द्रव्यनो त्यक्त स्वभाव तो परिणाम(रूप) व्यतिरेक स्वभाव छे अने अत्यक्त स्वभाव गुणरूप अन्वय स्वभाव छे. ते गुण तो पूर्वे हता ते ज रहे छे, परिणाम अपूर्व अपूर्व थाय छे. आ द्रव्यनुं उपादान छे ते परिणामने तो तजे छे पण गुणने सर्वथा तजतुं नथी; तेथी परिणाम क्षणिक उपादान छे अने गुण शाश्वत उपादान छे. वस्तु उपादानथी सिद्ध छे.”
वर्तमान जे निर्मळ पर्याय छे ते उत्पाद-व्ययथी आलिंगित भाव छे. ते पर्याय उत्पन्न थईने बीजे समये छूटी जाय छे तेथी तेने क्षणिक उपादान कहे छे. सम्यग्दर्शननी प्रगटती पर्याय ते क्षणिक छे, बीजा समये बीजी पर्याय थाय छे तेथी ते क्षणिक उपादानने त्यक्त स्वभाव कहेल छे. आ निर्मळ पर्यायनी वात छे, मलिननी अहीं वात नथी; केमके मलिनता गुणनुं कार्य नथी. मलिनता पर्यायमां छे ते हेयमां जाय छे. मलिनता क्षणिक उपादान नथी. अहो! दिगंबर संतोनी अंतरमां जवानी अजब अलौकिक शैली छे.
भाई, भगवान निर्मळानंदनो नाथ अंदर ध्रुव विराजे छे त्यां समीपमां जा. समीपमां जवानी पर्याय वर्तमान छे ते बीजे समये छूटी जाय छे माटे तेने त्यक्त स्वभाव कही छे. वर्तमान परिणाम छूटीने नवा परिणाम थाय छे तेने क्षणिक उपादान कहेल छे. ध्रुव उपादान जे छे ते छूटतुं नथी, बदलतुं नथी, त्रिकाळ एकरूप रहे छे. बहार निमित्त-उपादानना विवाद चाले छे ने! निमित्तथी कार्य थाय एनी अहीं ना पाडे छे.