Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४प-अपादानशक्तिः २०३

सांभळ भाई! उत्पाद-व्ययथी आलिंगित कोण? के वर्तमान निर्मळ पर्याय. सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि अनंत गुणनी वर्तमान निर्मळ पर्याय ते भाव छे. ते भाव उत्पाद-व्ययथी आलिंगित-स्पर्शित छे. आ तो महामंत्र छे भाई! सम्यग्द्रष्टि धर्मी जीवना वर्तमान निर्मळ परिणाम, जे उत्पाद-व्यय थाय छे एनाथी आलिंगित छे. ते पर्यायनो बीजी क्षणे अपाय नाम नाश थाय छे. अहा! सम्यग्दर्शन आदि अनंत गुणनी वर्तमान निर्मळ पर्याय छे तेनो नाश थवा छतां ध्रुवनो-ध्रुव स्वभावनो नाश थतो नथी. समकितीने आ ध्रुवना आलंबने ध्रुवमांथी नवी नवी निर्मळ पर्याय थया करे छे. आम निमित्तथी थाय, ने व्यवहारथी थाय-एम वात रहेती-टकती नथी. समजाणुं कांई...?

‘सर्व गुणांश ते सम्यक्त्व’ एम श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे. मतलब के जीवमां जेटला गुण संख्याए छे ते बधा अनंत गुणनी निर्मळ पर्यायनो सम्यग्दर्शनमां एक अंश व्यक्त थाय छे. ते सम्यग्दर्शननी पर्याय उत्पादव्ययवाळी छे; अनंत गुणनी जे व्यक्त पर्यायो छे ते बधी पर्यायो उत्पादव्ययवाळी होय छे. भाई, वीतरागनां पेट खोलीने संतोए वात करी छे. कहे छे-उत्पाद-व्ययथी स्पर्शित जे भाव छे तेनो नाश थाय छे; पण ध्रुव द्रव्य- गुण नाश पामता नथी, केमके उत्पाद-व्ययथी आलिंगित भावनो नाश थवा छतां जे हानि पामतो नथी एवो ध्रुवपणामयी एक आत्मानो अपादान स्वभाव छे, गुण छे. अनंत गुणमां आ अपादानशक्ति-गुणनुं रूप छे. जे कारणथी ज्ञानगुण छे ते ध्रुव छे. शक्ति ध्रुव उपादान छे, पर्याय क्षणिक उपादान छे. अपादानशक्तिना बे भेद छे. जे ज्ञानगुण ध्रुव त्रिकाळ छे ते ध्रुव उपादान छे. तेमां अपादानशक्तिना कारणे ते ध्रुव उपादान कायम रहीने तेनी वर्तमान प्रगट उत्पाद-व्ययथी स्पर्शित पर्याय थाय छे ते क्षणिक उपादान छे. अहो! आ शक्तिनुं वर्णन करीने आचार्य अमृतचंद्रदेवे समयसाररूपी मंदिर उपर सुवर्णकळश चढाव्यो छे. शब्दो तो सादा छे, तेनो वाच्यभाव जेवो छे तेवो समजवो जोईए.

उपादान-निमित्त, निश्चय-व्यवहार अने क्रमबद्धपर्याय-आ पांच विषयोना संबंधमां लोको ऊंडा ऊतरीने समज्या विना विरोध करे छे. पर्यायनी हानि थवा छतां ध्रुवनी हानि थती नथी. वर्तमान पर्याय जे उत्पन्न थई छे ते पोताना उपादानथी थई छे, ते निमित्तथी के व्यवहारथी उत्पन्न थई नथी. ते उत्पन्न थयेली पर्यायनो नाश थवा छतां ध्रुव उपादान कायम रहे छे, ध्रुव उपादाननो कदी पण नाश थतो नथी. तत्त्वनी स्थिति आवी छे भाई! वस्तु अने वस्तुनी परिणतिनी आवी मर्यादा छे.

जेने तत्त्वज्ञाननी खबर नथी तेने धर्म केम थाय? तत्त्वज्ञाननी प्राप्ति माटे वस्तुनी स्थिति जेम छे तेम जाणवी जोईए, एनुं यथार्थ ज्ञान कर्या विना द्रष्टि निर्मळ थती नथी. कहे छे-वर्तमान ज्ञाननी हानि थवा छतां ज्ञान तत्त्व त्रिकाळ ध्रुव रहे छे, तेमां हानि थती नथी. आम ध्रुवनी-शाश्वत उपादान जे ध्रुव छे तेनी द्रष्टि रहेतां ज्ञाननी निर्मळ पर्याय नवी नवी प्रगट थाय छे. आ ज्ञाननी जे निर्मळ पर्याय प्रगट थाय छे ते, ते ते समयना क्षणिक उपादानथी प्रगट थाय छे; ज्ञानावरण कर्मनो अभाव थयो माटे ते प्रगट थाय छे, वा शास्त्र भणवाना विकल्पथी ते प्रगट थाय छे एम नथी. बीजी चीज ते काळे निमित्त हो, पण निमित्तना कारणे ते काळे सम्यग्ज्ञाननी पर्याय थाय छे एम छे ज नहि. एम तो ११ अंग अने नव पूर्वनुं शास्त्रज्ञान थयुं, पण एनाथी शुं थयुं? कांई ज नहि. ध्रुवना अंतर-आलंबनथी सम्यग्ज्ञान प्रगट थाय छे अने ते क्षणिक उपादान छे. निमित्तथी ने व्यवहारथी थाय एवी जे मान्यता छे ते केवळ भ्रम छे.

अहाहा...! अनंत शक्तिनो ध्रुवभंडार प्रभु आत्मा छे. तेनी जेने द्रष्टि थई, तेनो अंतरमां जेने स्वीकार थयो ते सम्यग्द्रष्टि छे. तेने पर्यायमां अनाकुळ आनंदना वेदननी दशा प्रगट थई छे. ते आनंदनी दशा, कहे छे, एक समय रहे छे. ते दशानो अभाव थवा छतां आनंद गुण तो ध्रुव कायम रहे छे. अहा! ते ध्रुवना आलंबने ध्रुवमांथी नवी नवी अनाकुळ आनंदनी दशा द्रष्टिवंत धर्मी समकितीने थया करे छे. आवो मारग भाई! अरेरे! लोको एकला धंधाना पापमां रोकायेला रहे छे. चोवीसे कलाक एकलुं पाप, पाप ने पापनुं काम; धर्म तो दूर, एमने पुण्यनांय ठेकाणां नथी, केमके तत्त्वश्रवण अने तत्त्वचिंतननी एमने फुरसद नथी. धंधानां काम तो कोण करे? एकलुं पापनुं काम (पापना भाव) कर्या करे. पण आ तो जिंदगी जाय छे भाई!

वर्तमान परिणाम त्यक्तरूप भाव छे, ध्रुव अत्यक्त स्वभाव छे. ध्रुव कायम रहे छे, क्षणिक उपादान क्षणे क्षणे पलटे छे. अहीं निर्मळनी वात छे. क्षणिक निर्मळ पर्याय उत्पन्न थाय छे ते पोताना उपादानथी थाय छे. अपादानशक्तिनो बीजो अर्थ उपादानशक्ति छे. पं. श्री दीपचंदजीए पंचसंग्रह नामना पुस्तकमां तेनुं घणुं वर्णन कर्युं छे. ज्ञानदर्पणमां पण (पानुं प६) वर्णन कर्युं छे.