Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४प-अपादानशक्तिः २०प

सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी पर्याय मोक्षनो मार्ग छे. ते पर्यायना उत्पाद-व्यय स्वतंत्र पोताना कारणथी थाय छे. ध्रुव उपादान छे तो तेनाथी ते पर्याय प्रगट थाय छे एम नथी, केमके ध्रुव उपादान तो त्रिकाळ एकरूप रहे छे. पर्यायमां केवळज्ञाननी पूर्ण विकासनी दशा थाय तो ज्ञाननी ध्रुवतामां, ध्रुव ज्ञानस्वभावमां कांई कमी थती नथी, ने निगोदनी पर्यायमां अक्षरना अनंतमा भागे ज्ञाननो विकास छे तो ध्रुव ज्ञानस्वभावमां वधु पुष्टता थाय छे एमेय नथी. ध्रुव तो अकबंध एवुं ने एवुं एकरूप त्रिकाळ छे.

अहा! शक्ति अने शक्तिना विशेषोना स्वरूपने जाणी जेणे द्रव्यद्रष्टि करी, ध्रुवनुं आलंबन लीधुं ते सम्यग्द्रष्टि छे, तेनी पर्याय पाछळ हठीने पडी जाय अने तेने वच्चे मिथ्यात्व आवी जाय एवी कोई वात छे नहि. जेनी द्रष्टि ध्रुव उपर छे, ध्रुवने पोताना ध्याननुं ध्येय बनाव्युं छे तेने क्रमवर्ती निर्मळ पर्यायो थया ज करे छे, तेनी निर्मळ पर्याय छूटीने तेने मिथ्यात्व आवी जाय एवो कोई गुण छे ज नहि. भाई, तारा आत्मामां अपादानशक्ति एवी छे के तेमां (आत्मामां) अनंत अनंत पर्यायो थईने नाश पामे छतां तेना ध्रुवनुं सामर्थ्य तो एवुं ने एवुं अक्षय-अनंत शाश्वत रहे छे, ने तेमांथी पर्यायो निर्मळ निर्मळ थया ज करे छे. ओहो! आ चैतन्यचिंतामणि एवा ध्रुवनो कोई अचिन्त्य स्वभाव छे के समये समये परिपूर्ण ज्ञान, आनंद आदि तेमांथी नीकळ्‌या ज करे, अने छतां अनंतकाळेय ए तो अकबंध एवुं ने एवुं ज रह्या करे.

कोईने थाय के आ अमे शरीरनी अनेक क्रिया करीए, दया, दान आदि पुण्यनी अनेक क्रिया करीए तो एमांथी धर्म आवे के नहि?

तो अहीं कहे छे-तारा धर्मनी ध्रुव खाण तारो आत्मा ज छे. अहा! ते ध्रुवनुं आलंबन ले, तेमां द्रष्टि कर, अने तेनुं ज ध्यान धर, तेमांथी ज तारो धर्म प्रगट थशे. आ सिवाय शरीरनी क्रिया अने पुण्यनी क्रिया तो बधां थोथां छे, ए बहारनी चीजमांथी कयांयथी तारो धर्म आवे एम नथी.

हवे एक बीजी वातः सम्यग्दर्शन आदिनी निर्मळ पर्याय अल्प हो, तेनी हानि (व्यय) थतां ते पर्याय कयां गई? तो कहे छे-जेम जळना तरंग जळमां डूबे छे, ने सामान्य जळपणे थाय छे तेम ते अल्प पर्याय ध्रुवमां जाय छे, ने ध्रुवमां जतां ते पारिणामिकभावरूप थई जाय छे. क्षायिकभाव पण हानि-व्यय पामतां ध्रुवमां भळी जाय छे ने पारिणामिकभावरूप थई जाय छे. अहा! जे निर्मळ पर्याय क्रमवर्ती प्रगट थाय छे ते व्यय पामता ध्रुव सामान्यमां जाय छे ने ते पारिणामिकभावरूप थई जाय छे.

अहा! पर्याय क्रमवर्ती अने गुणो अक्रमवर्ती एकसाथे छे. ते बेना समुदायने आत्मा कह्यो छे. अहीं निर्मळ पर्याय लेवी. राग पर्यायमां छे तो रागवाळो आत्मा छे एम न समजवुं.

तो मोक्षमार्ग प्रकाशकमां शुद्ध-अशुद्ध पर्यायोनो पिंड ते आत्मा एम कह्युं छे? हा, त्यां अपेक्षा बीजी छे. पर्यायमां अशुद्धता छे एने जे मानतो ज नथी एवा निश्चयाभासीने समजाववा माटे ए वात करी छे. अहा! पर्यायमां जे अशुद्धता छे ते अशुद्धतानी पर्यायनो व्यय थयो तो ते कयां गई? ते पर्याय अंदर ध्रुवमां गई, पण अंदर अशुद्धता गई छे एम नहि, अंदर तो योग्यता गई छे, ते पारिणामिकभावरूप थई गई छे, भगवान ध्रुवमां भळी भगवानरूप थई गई छे. परम पारिणामिकभाव त्रिकाळ ध्रुव शुद्ध छे तेमां ते पर्याय गई छे.

तो आपणे करवानुं शुं? आ ज के त्रिकाळी स्वभाव जे ध्रुव छे तेमां झूकी जा. ध्रुवने ध्यानमां लईने ध्रुवने ज ध्याननुं ध्येय बनाव. आ सिवाय बीजुं कांई करवानुं नथी. पर्याय प्रजा छे, ध्रुव तेनो पिता छे; ध्रुवनुं आलंबन धर्म छे. आवी वात छे. समजाणुं कांई...?

अहा?ं रागथी भिन्न पोतानी चीज अंदर छे तेनुं जेने भान नथी, शक्ति ते ध्रुव उपादान अने वर्तती पर्याय ते क्षणिक उपादान-ए बन्नेना स्वाधीन स्वरूपनी जेने खबर नथी ते रागनी एकतामां रह्यो छे; मरण टाणे ते रागनी एकतानी भींसमां भींसाई जशे. शुभभावथी धर्म थाय एम जे माने छे ते मृत्यु समीप आवतां रागनी एकतानी भींसमां भींसाई जशे. आखी जिंदगी जेणे पोतानी चैतन्यवस्तुने भिन्न जाणी-अनुभवी नहि तेनो देह मरण टाणे, जेम घाणीमां तल पिलाय तेम, पिलाईने छूटी जशे, ने कोण जाणे कयांय ते चार गतिमां रझळतो चाल्यो जशे. समजाय छे कांई...?

जुओ, पांच पांडवो भावलिंगी वीतरागी संत हता. शत्रुंजय पहाड पर तेओ ध्यानमां लीन हता. दुर्योधनना भाणेजे