२०६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ धगधगता लोढानां घरेणां तेमना हाथपगमां पहेरावीने तेमना उपर भारे उपसर्ग कर्यो. ते वखते युधिष्ठिर, भीम अने अर्जुन ए त्रण तो अंतरध्यान वडे केवळज्ञान पामी मोक्षे पधार्या. सहदेव अने नकुळ ए बन्नेने साधर्मी प्रति जरी शुभ विकल्प आव्यो के अरे! आ संतो पर आवो घोर उपसर्ग! ए शुभविकल्पना फळमां तेमने केवळज्ञान प्रगट न थतां, आयुस्थिति पूरी थईने सर्वार्थसिद्धिना देवमां जवानुं थयुं. त्यां तेमने ३३ सागरोपमनी स्थिति छे. ते स्थिति पूरी करीने मनुष्य तरीके जन्मशे, अने फरी मुनिदीक्षा लई, केवळज्ञान पामीने मोक्षे जशे. जुओ, जरा शुभराग आव्यो तो आटलो समय संसारमां तेमने रहेवुं पडशे.
भगवानना श्रीमुखेथी नीकळेली वाणीनो आ प्रवाह छे. कहे छे-वर्तमान पर्यायनो अपाय अर्थात् नाश थवा छतां हानिने प्राप्त थतो नथी एवो जे ध्रुव भाव छे ते-मय अपादानशक्ति जीवमां छे. पर्यायनी हानि थईने ते अंदर गई, पण ध्रुव उपादान पडयुं छे, माटे बीजे समये बीजी नवी पर्याय उत्पन्न थशे ज. अहा! बीजी नवी निर्मळ पर्याय उत्पन्न थाय एवो आत्मानो अपादान स्वभाव छे, ने भाव स्वभाव छे. एक पर्यायनो अभाव थयो तेथी अभाव (शून्यता) कायम रही जाय एवी वस्तु नथी. भावशक्तिना कारणे बीजी निर्मळ पर्याय बीजे समये विद्यमान होय ज छे. आवी वात! आ बधी निश्चय... निश्चयनी वात छे एम कही लोको तेने काढी नाखे छे, पण भाई! निश्चय एटले परमार्थ, सत्य; अने व्यवहार एटले उपचार. समजाणुं कांई...?
केवळज्ञाननी पर्याय एक समयनी छे, तेनो अपाय नाम नाश थवा छतां ध्रुवत्वभाव नाश पामतो नथी, परमपारिणामिक एवो ध्रुव एक ज्ञायकभाव नाश पामतो नथी; माटे बीजी क्षणे बीजी केवळज्ञाननी पर्याय विद्यमान थशे ज थशे. वर्तमान पर्यायनो व्यय थयो एटले हवे बीजी पर्यायनो उत्पाद नहि थाय एम वस्तु नथी. क्षयोपशम समकितनो अभाव थईने क्षायिक समकित प्रगट थाय छे; अलबत्त ते काळे भगवान केवळी-श्रुतकेवळीनी समीपता होय छे, पण ते पर्याय-क्षायिक समकितनी दशा कांई केवळी-श्रुतकेवळीना कारणे थई छे एम नथी. ध्रुवशक्तिमां ताकात छे तेथी क्षयोपशम दशानो व्यय थईने क्षायिक पर्याय प्रगट थई जाय छे. अंदर ध्रुव स्वभाव पडयो छे, जेना आश्रयथी क्षयोपशम दशा व्यय पामीने बीजी निर्मळ क्षायिक पर्याय प्रगट थाय छे. द्रव्य वर्तमान विद्यमान अवस्था विना होय नहि एवी आत्मानी भावशक्ति छे. बीजी विद्यमान निर्मळ अवस्था उत्पन्न थशे ज थशे एवो आत्मानो आ अपादान गुण छे. हवे आमां व्यवहारथी निश्चय थाय, ने निमित्तथी उपादानमां कार्य थाय-ए वात ज कयां रहे छे?
आ प्रमाणे अहीं अपादानशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.
‘भाव्यमान (अर्थात् भाववामां आवता) भावना आधारपणामयी अधिकरणशक्ति.’ समयसारमां आ शक्तिनो अधिकार चाले छे. आत्मपदार्थ द्रव्यरूपथी एक छे, अने तेना गुण अनेक-अनंत छे. अहा! आ अनंत गुणनुं अधिकरण कोण? तो कहे छे-अधिकरण गुण वडे आत्मा ज तेनुं अधिकरण छे, अर्थात् तेनुं अधिकरण थाय एवो आत्मानो अधिकरण गुण-स्वभाव छे.
अहा! जीव ज्यारे निज द्रव्यस्वभावनो, भगवान त्रिकाळीनो आश्रय ले छे त्यारे ज्ञाननी पर्याय उत्पन्न थाय छे; ते सम्यग्ज्ञाननी पर्याय प्रगट थाय तेनी साथे अनंत गुणनी पर्याय भेगी ऊछळे छे. अहाहा...! जेम पाताळमां पाणी होय छे ते, पथ्थरनुं पड तूटी जतां अंदरथी एकदम छोळो मारतुं ऊछळी बहार आवे छे, तेम आ चैतन्यना पाताळमां ज्ञान, दर्शन, आनंद आदि अनंत शक्तिओ पडी छे ते, रागनी एकता तोडीने ज्यां द्रव्यस्वभावनो आश्रय जीव ले छे के तत्काल चैतन्यना पाताळमांथी ज्ञानादि अनंत गुण-शक्तिओ निर्मळ परिणतिरूपे ऊछळी प्रगट थाय छे. अहा! ज्ञानादि निर्मळ परिणति थई तेनुं अधिकरण नाम आधार कोण? तो कहे छे-भगवान आत्मा ज तेनुं अधिकरण छे, केमके तेनुं अधिकरण थवानो आत्मामां अधिकरण गुण छे. समजाय छे कांई...? संवर अधिकारमां वळी एम लीधुं छे के-आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, तेमां जाणनक्रिया जे थाय छे ते जाणनक्रियाना आधारे आत्मा छे. ए तो जाणनक्रियामां