भगवान आत्मा जाणवामां आवे छे तो जाणनक्रियाना आधारे आत्मा छे एम कह्युं छे. अहीं शक्तिना प्रकरणमां जुदा प्रकारे वात छे.
अहाहा...! अनंत शक्तिओनो पिंड प्रभु आत्मा छे. तेनी सन्मुख थई परिणमतां सम्यग्ज्ञाननी पर्याय प्रगट थाय छे, ते जाणनक्रिया छे. ते जाणनक्रियामां भगवान आत्मा जाणवामां आवे छे. अहा! संवर नाम धर्म केम थाय एनी वात संवर अधिकारमां करी छे. तेनी आरंभनी गाथामां आवे छे के-‘उपयोगमां उपयोग छे’-एनो अर्थ एम छे के त्रिकाळी शुद्ध उपयोग स्वरूप प्रभु आत्मा छे ते उपयोगमां एटले वर्तमान जाणनक्रियामां-जे स्वसन्मुख उपयोग थयो छे तेमां-जाणवामां आवे छे. जाणनक्रियाना भावमां आत्मा जाणवामां आवे छे तो जाणनक्रियाना आधारे आत्मा छे अर्थात् उपयोगमां उपयोग छे एम कह्युं छे. ज्यारे अहीं आत्माना आश्रये- आधारमां रहेला अधिकरण गुणने लीधे, अनंत गुणनी जे निर्मळ पर्यायो प्रगट थाय तेनो आधार, कहे छे, आत्मा छे, निमित्त-परवस्तु के राग तेनो आधार नथी. आवी वात! समजाणुं कांई...?
जुओ, पोतानो आत्मा शुद्ध चैतन्यघन अनंतगुणना सत्त्वरूप त्रिकाळी ध्रुवप्रभु छे, तेना गुण-पर्यायना आधारे द्रव्य सिद्ध थाय छे; गुण अने पर्याय निर्मळ-तेना आधारे द्रव्य सिद्ध थाय छे. अक्रमवर्ती गुण ने क्रमवर्ती (निर्मळ) पर्यायोनो पिंड ते आत्मा एम छे ने! वळी द्रव्यना आधारे गुण-पर्याय सिद्ध थाय छे; द्रव्यमां अधिकरण शक्ति पडी छे तो द्रव्यना आधारे गुणपर्याय सिद्ध थाय छे, केमके गुण-पर्यायोनो आधार-अधिकरण द्रव्य छे.
बीजी एक वात याद आवीः प्रवचनसारनी गाथा १२६मां कर्ता, कर्म, करण ए त्रण बोल आवे छे. त्यां सूक्ष्म वात लीधी छे. गुण-पर्यायना आधारे द्रव्य ख्यालमां आवी जाय छे एम प्रवचनसारनी आ गाथामां सिद्ध कर्युं छे. त्यां (प्रवचनसारमां) सामान्य वात छे एटले मलिन पर्याय सहितनी वात करी छे. अधिकरण नामनो गुण तथा तेनुं परिणमन-निर्मळ तेम ज मलिन-एम बन्नेनी त्यां वात करी छे. भाई, शांति अने धीरजथी समजवुं प्रभु! त्यां विकारी पर्यायना आधारे पण गुण-द्रव्य छे एम लीधुं छे, केमके विकारी पर्यायथी द्रव्य-गुण सिद्ध थाय छे. एम के विकारनी अवस्था छे ते कोनी? द्रव्यनी तो छे. ए प्रमाणे विकारी पर्यायना आधारे त्यां द्रव्यनी सिद्धि करी छे, तेम ज द्रव्यना आधारे विकारी पर्याय सिद्ध थाय छे एम त्यां कह्युं छे.
भगवान आत्मामां अनंत गुण, अने अनंत पर्याय छे. वर्तमान एक गुणनी एक एम अनंत गुणनी अनंत पर्यायो सिद्ध थाय छे. ते पर्यायो अने गुणना आधारे द्रव्यनी सिद्धि थाय छे. मलिन पर्यायने पण त्यां लक्षण कह्युं छे. पंचास्तिकायमां पण एम लीधुं छे के उत्पाद-व्यय, मलिन होय तो पण ते द्रव्यनुं लक्षण छे. ज्यारे अहीं जेनुं ज्ञान लक्षण छे ते आत्मा एम वात करी छे. ए स्वभावनुं भान कराववा कह्युं छे. समयसारमां स्वभावनी द्रष्टिनुं प्रयोजन छे तेथी स्वभावनी मुख्यता छे. प्रवचनसारमां सामान्य कथन छे. तेथी त्यां विकृत अवस्था छे ते पण द्रव्यनी छे एटले ए लक्षणथी पण आत्मा छे एम सिद्ध थाय छे एम वात करी छे. विकारी पर्यायने पण लक्षण बनावी आ द्रव्य छे एवुं लक्ष्य त्यां सिद्ध कर्युं छे.
संवर अधिकारमां जाणनक्रियानी जे निर्मळ परिणति छे तेना आधारे आत्मा जाणवामां आवे छे तेथी द्रव्यनो आधार निर्मळ पर्याय छे एम कह्युं छे. प्रवचनसार गाथा १०मां एम लीधुं छे के अशुद्ध परिणामनो आश्रय पण द्रव्य छे, विकारी पर्याय पण द्रव्यनी छे. द्रव्यमां पर्याय थई ते द्रव्यना आश्रये थई छे एम कहेवामां आवे छे. गुणपर्याय आधार अने द्रव्य आधेय छे एम त्यां सामान्यपणे वात छे. अहीं कोना आश्रये-आधारे निर्मळ पर्याय प्रगटे छे एनी वात छे. तो कहे छे-भाव्यमान भावना आधारपणामयी एक अधिकरणशक्ति जीवद्रव्यमां छे. अहाहा...! सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ने आनंदनी जे निर्मळ पर्याय, शुद्ध स्वभावना आश्रये प्रगट थाय ते भाववामां आवतो भाव्यमान भाव छे, ते भावना आधारपणामयी अधिकरणशक्ति छे.
शुं कीधुं? सम्यग्दर्शन आदि पर्याय प्रगट थई ते भाव्यमान-भाववामां आवतो भाव छे. अहाहा...! ते भावनो आधार कोण? तो कहे छे-ते भावना आधारपणामयी अधिकरणशक्ति छे, अर्थात् अधिकरणशक्तिथी आत्मा ज तेनो आधार छे. हवे आमां व्यवहारथी निश्चय थाय-एम लोको मोटो झघडो करे छे, पण व्यवहारनी वातेय कयां छे? भगवान! तें तत्त्वनी वात सांभळी ज नथी. व्यवहारनुं लक्ष छोडी द्रव्यने ज्यारे लक्ष बनाव्युं त्यारे तो सम्यग्दर्शननी निर्मळ पर्याय प्रगट थई छे. अहा! ते निर्मळ पर्यायनुं अधिकरण आत्मा ज छे, केमके आत्मामां ज तेना अधिकरणनो