गाथा ३२ ] [ १३प त्यारे ज्ञानी आत्मानी, पोतानी अस्थिरताथी तेने अनुसरवानी प्रवृत्ति होवाथी भावकना निमित्ते भाव्य एवा विकारभावे परिणमे छे. कर्मनो उद्रय आवे माटे तेने अनुसरवुं ज पडे एम नथी. परंतु कर्मनो उद्रय आवे त्यारे जो तेने अनुसरे तो ते भाव्य थाय छे. त्यां सुधी बीजा प्रकारनी स्तुति थती नथी. आत्माना गुणनी शुद्धि वधे तो तेनी स्तुति थाय छे. विकारी पर्याय जे निमित्तने अनुसरीने थाय छे एमां भाव्यभावक-संकरदोष छे. आ दोषने जे जीते तेने बीजा प्रकारनी स्तुति-आत्माना गुणनी शुद्धिनी वृद्धि होय छे. अहो! आचार्यनी टीका केवी गजब छे! जाणे एकलां अमृत अने न्याय भर्यां छे! ‘जो इंदिये जिणित्ता’ एटले के अनिन्द्रिय एवा भगवान आत्माने जे राग, निमित्त अने एक समयनी पर्यायथी पण भिन्न करीने अनुभवे अर्थात् मतिज्ञान, श्रुतज्ञान द्वारा जे अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे-वेदे तेने गणधरदेव जितेन्द्रिय जिन कहे छे. आ पहेला प्रकारनी स्तुति ३१ मी गाथामां आवी गई छे. हवे सम्यग्द्रष्टि जीव भेदज्ञानना बळ वडे भाव्य-भावकसंकरदोषने जीते छे तेनी अहीं वात छे.
जे आत्मा भेदज्ञानना बळ द्वारा, उदय तरफना वलणवाळा भावने न थवा देतां, दूरथी उदयथी पाछो वळीने, ज्ञायकभावने अनुसरीने स्थिरता करे छे तेने भाव्यभावक- संकरदोष टळे छे. ‘दूरथी ज पाछो वळीने’ एटले शुं? भावक एवा उदयने अनुसरीने आत्मानी पर्यायमां विकारी भाव्य थयुं अने पछी तेनाथी हठे, पाछो वळे एम नहि. परंतु भेदज्ञानना बळथी उदयमां जोडायो ज नहि अर्थात् उद्रय तरफनो विकारी भाव्य थयो ज नहि तेने दूरथी पाछो वाळ्यो एम कहेवाय छे. स्वभाव तरफना वलणथी पर तरफनुं वलण छूटी गयुं तेने ‘दूरथी ज पाछो वळीने’ एम कह्युं छे. अहाहा! भेदज्ञानना बळ द्वारा अर्थात् ज्ञायकभाव तरफना विशेष झुकावथी ‘परथी भिन्न हुं एक ज्ञायक छुं’ एम अंतरस्थिरतानी वृद्धिथी जेने उद्रय तरफनी दशा ज उत्पन्न न थई तेने भाव्यभावक-संकरदोष दूर थयो अने तेणे मोहने जीत्यो छे. अहो! केवळी अने श्रुतकेवळीओए करेली ए जितमोह जिनना स्वरूपनी कथनी केवी अलौकिक हशे!
केटलाक लोको एम माने छे के जेवो कर्मनो उद्रय आवे तेवो भाव जीवमां थाय ज; तथा कर्म निमित्तपणे थईने आवे छे तेथी जीवने विकार करवो ज पडे छे. परंतु एम नथी. जीव पोते कर्मना उदयने अनुसरे तो भाव्य-विकारी थाय. परंतु भेदज्ञानना बळ वडे कर्मथी दूरथी ज पाछो वळी उद्रयने अनुसरे नहि तो भाव्य-विकारी थाय नहि. उद्रय जड कर्मनी पर्याय छे अने विकार आत्मानी पर्याय छे. जडनी पर्याय अने आत्मानी पर्याय वच्चे अत्यंत अभाव छे. तेथी उद्रय आवे ते प्रमाणे विकार थाय के करवो पडे एम नथी.
मोहकर्म छे एम एनी अस्ति सिद्ध करी. हवे ते फळ देवाना सामर्थ्यरूपे प्रगट