१३६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ थयुं-एटले के सत्तामांथी ते पाकमां-उदयमां आव्युं. जो जीव तेने अनुसरीने भाव्य- विकार करे तो उद्रयने भावकपणे प्रगट थयो एम कहेवाय, अने मोहरूप थनार जीवने भाव्य कहेवाय छे. भाव्य आत्माने भेदज्ञानना बळ द्वारा दूरथी ज पाछो वाळवाथी उद्रय तरफनुं लक्ष छूटी जाय छे अने पोताना स्वभाव उपर लक्ष जाय छे. आने मोहनुं जीतवुं कहे छे. जे समये उदय आव्यो ते समये ज, साथे ज रागनो अभाव होय छे, पछी नहि; कारण के उदय आव्यो त्यारे तेना अनुसारे परिणमन न थयुं अने तेथी राग उत्पन्न ज थयो नहि.
अहाहा! एक-एक लीटीमां केटलुं भर्युं छे? लोकोनां भाग्य छे के समयसार जेवुं शास्त्र रचाई गयुं. आमां तो महामुनिओए सत्ना ढंढेरा पीटया छे. शुं अद्भुत टीका छे! आवी टीका भरतक्षेत्रमां कयांय नथी. अहा! वीतरागी मुनिओने आनंदमां झुलतां झुलतां विकल्प आव्यो अने आ शब्दोनी रचना थई गई, करी नथी. ते समये शब्दोनी पर्याय थवानी हती तेथी थई छे. टीकाना शब्दोनी पर्यायनी जन्मक्षण हती तेथी थई छे. विकल्प आव्यो तेथी टीका थई छे एम नथी. टीकाना शब्दो आ स्वरूपे परिणमवाना हता ज, माटे परिणम्या छे. ते काळे विकल्पने निमित्त कहेवाय छे.
क्षायिक समक्तिी के मुनिने पण भावक-निमित्तना लक्षे पोताथी भाव्यरूप थवानी लायकात पर्यायमां छे. तेथी भावक उदयना काळे तेने अनुसार जो प्रवृत्ति करे तो आत्माने भाव्य कहेवाय छे. आ भाव्य-भावक संकरदोष छे. आवो जे भाव्य आत्मा तेने भेदज्ञानना बळ वडे अर्थात् पोताना पुरुषार्थ वडे पर तरफना वलणथी जुदो पाडयो. तेथी परना लक्षवाळी विकारी दशा ज उत्पन्न न थई. उद्रय तो उदयमां रह्यो अने पोताना पुरुषार्थ वडे आत्माने उदयथी भिन्न करतां-पाछो वाळतां मोह उत्पन्न ज थयो नहि अने तेथी भाव्य-भावक संकरदोष दूर थई गयो. निमित्तनुं अनुसरण छूटतां, तेने अनुसारे जे पोतानो पुरुषार्थ थतो हतो ते हवे उपादानने अनुसरीने थाय छे. तेथी भावक एवा मोहकर्मना अनुसारे थती अस्थिरतारूप भाव्य दशा पण थती नथी. समकितीने भगवान आत्मानो आश्रय तो छे ज. परंतु ज्यां सुधी पोतानो (अस्थिरतारूपी) ऊंधो पुरुषार्थ छे त्यां सुधी भाव्य थवाने ते लायक छे. तेथी जो कर्मनो विपाक आवे त्यारे तेने अनुसरे तो भाव्य-भावकनी एक्ता थाय छे. परंतु जो सवळो पुरुषार्थ करे अर्थात् निज स्वभावना विशेष आश्रय द्वारा दूरथी ज उदयथी पाछो वळे तो भाव्य-भावकनी एक्ता थती नथी. जे भाव्य विकारी थतुं हतुं ते न थयुं ते एनुं जीतवुं छे.
जे सत्तामां मोहकर्म छे ते हवे फळ देवाना सामर्थ्यथी उदयमां आवे छे. ते समये ज्ञानीनी पर्यायमां तेने अनुसरीने अस्थिरतारूप भाव्य थवानी योग्यता पण छे. आ प्रमाणे बन्नेनी अस्ति सिद्ध करी. हवे ते ज्ञानी आत्मा बळपूर्वक मोहनो तिरस्कार करीने निमित्त