१३८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ बराबर जाणतो होवा छतां ज्ञेयरूप थतो नथी. तरतो रहे छे एटले जणावा योग्य ज्ञेयथी जुदो रहे छे. वळी ते ज्ञानस्वभाव प्रत्यक्ष उद्योतपणाथी सदाय अंतरंगमां प्रकाशमान छे. तेथी ज्ञाननी पर्याय अंतरमां आत्माने विषय बनावतां ते प्रत्यक्ष थाय छे. आवो अविनाशी भगवान ज्ञानस्वभाव पोताथी ज सिद्ध अने परमार्थ सत् छे. अहाहा! आत्मा तो भगवान छे पण तेनो ज्ञानस्वभाव पण भगवान छे. आ भगवाननी स्तुति छे. एटले पोते भगवान छे तेनी स्तुति छे.
शिष्ये पूछयुं हतुं के तीर्थंकर अने केवळीनी निश्चय स्तुति केम थाय? तेनो उत्तर एम आप्यो के-आत्मा राग अने परथी भिन्न पडीने एक निज ज्ञायकभावमां एकाग्र थई तेने अनुभवे ते तेनी स्तुति छे. भावक कर्मनो उद्रय छे अने भाव्य थवाने लायक पोतानो आत्मा भाव्य छे. ते बन्नेनी एक्ता ते भाव्यभावकसंकरदोष छे. ते दोषने दूर करतां बीजा प्रकारनी स्तुति थाय छे.
गाथासूत्रमां एक मोहनुं ज नाम लीधुं छे. ते ‘मोह’ पद बदलीने तेनी जगाए राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, कर्म, नोकर्म, मन, वचन, काय मूकीने अगियार सूत्रो व्याख्यानरूप करवां. चारित्रमोहनो उद्रय कर्ममां आव्यो. तेने अनुसरीने पर्यायमां रागद्वेषरूप थवानी योग्यतावाळो धर्मीनो आत्मा पण छे. तेथी उदयने अनुसरतां पर्यायमां भाव्य जे राग-द्वेष थाय छे ते संकरदोष छे. हवे ज्ञायक-स्वभावना उग्र आश्रयथी, उद्रय तरफनुं वलण छोडतां परथी भेद पडी जाय छे अने तेथी राग-द्वेष उत्पन्न थता नथी, परंतु अरागी-अद्वेषी परिणाम प्रगट थाय छे. तेने राग-द्वेषने जीतवुं कहे छे.
राग अने द्वेषमां चारेय कषाय आवी जाय छे. क्रोध तथा मान द्वेषरूप छे अने माया तथा लोभ रागरूप छे. चारित्रमोहनो उदय तो जडमां आवे छे. छतां समकिती अने मुनिने पण चारित्रमोहना चारेय प्रकारना उद्रयने अनुसरीने कषायरूपे परिणमवानी योग्यता छे. परंतु हवे तेने छोडी दे छे. कषाय प्रगट थयो अने पछी तेने जीतीने छोडी दे छे एम नहि. परंतु कषाय उत्पन्न ज थवा दीधो नहि. कषायना उद्रय तरफनुं लक्ष छोडी अर्थात् तेनुं अनुसरण छोडीने स्वभावना लक्षे स्वभावनुं अनुसरण करतां भावक अने भाव्यनुं भेदज्ञान थाय छे. तेथी भाव्य-कषाय उत्पन्न थतो ज नथी तेने कषाय जीत्यो एम कहेवाय छे.
एक बाजु ४७ शक्तिओना वर्णनमां एम कह्युं के कर्मना निमित्ते थता रागनुं र्क्तापणुं जीवने नथी. जीव रागनो अर्क्ता छे एवो एनो स्वभाव छे. रागने न करे एवो तेनामां अर्क्ता गुण छे. ‘समस्त, कर्मथी करवामां आवेला, ज्ञातृत्वमात्रथी जुदा जे परिणामो ते परिणामोना करणना उपरमरूप अर्क्तृत्वशक्ति.’ कर्मथी करवामां आवेला परिणाम एटले के विकारी परिणाम जीव करे एवो खरेखर एमां कोई गुण नथी. तेथी