गाथा ३२ ] [ १३९ पर्यायमां जे विकार थाय छे तेने कर्मना निमित्ते थयेलो देखी कर्मथी करवामां आवेलो छे एम कह्युं छे. ज्यारे अहीं कहे छे के रागना भाव्यपणे थवानी लायकात जीवनी छे, माटे ते रागनो र्क्ता छे. प्रवचनसारमां ४७ नयोमां एक र्क्तृत्वनय छे. एमां कहे छे- आत्मद्रव्य र्क्तृनये, रंगरेजनी माफक, रागादि परिणामनुं करनार छे,’ ज्यां ४७ शक्तिओनुं वर्णन कर्युं छे त्यां द्रव्यद्रष्टिथी आत्मा अर्क्ता छे एम कह्युं छे. शक्तिमां द्रष्टिनो विषय अने स्वभावनी अपेक्षाए वर्णन छे. तेथी जीव रागनो र्क्ता नथी एवो अर्क्तास्वभावी कह्यो छे. ज्यारे अहीं पर्यायमां क्षणे क्षणे कंईक पराधीनता अने स्वाधीनता थाय छे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. द्रष्टि साथे जे ज्ञान प्रगट थयुं छे ते एम जाणे छे के जीव र्क्तृनये रागरूपे परिणमनार छे. कर्मना लईने जीव रागरूपे थाय छे एम नथी. तेम ज राग करवा लायक छे एम पण नथी. परंतु रागरूपे जीव (स्वयं) परिणमे छे तेथी र्क्ता कहेवाय छे. छतां पण र्क्तृनय साथे अर्क्तृनय होवाथी रागनो ज्ञानी साक्षी ज छे, जाणनार ज छे. रागने न करे एवो अर्क्तृत्वगुण आत्मामां छे. छतां पर्यायमां जे राग थाय छे ते कर्मना निमित्ते, कर्मने अनुसरीने थवानी योग्यता पर्यायमां होवाथी थाय छे. ते पर तरफनुं वलण छोडी स्वनुं वलण करवुं ते साचो पुरुषार्थ छे. शक्ति अने द्रव्यस्वभावनी अपेक्षाए जीवने राग-द्वेषनो भोगवटो नथी, केमके तेनामां अभोक्तृत्व शक्ति छे. कर्मना निमित्तथी थतां विकारीभावना उपरमरूप आत्मानो अनुभव ते खरेखर पोतानो भोगवटो छे. आ गुण अने द्रव्यने अभेद करीने वात छे. परंतु ज्यारे पर्यायमां शुं छे ते सिद्ध करवुं होय त्यारे भोक्तृत्व नयथी सुख-दुःख, संकल्प-विकल्प, पुण्य-पाप अने राग-द्वेषनो भोगवनार छे. आवो एक नय छे, परंतु परने आत्मा भोगवनार नथी. धवलना छट्ठा भागमां पण कह्युं छे के अंतरंग कारण प्रधान छे, निमित्त नहि.
प्रश्नः– स्वामी-कार्तिकेयानुप्रेक्षामां आवे छे केः-जुओ पुद्गलनी शक्ति! ते केवळज्ञानने पण रोके छे. केवळज्ञानने रोके एवुं केवळज्ञानावरणीय कर्म छे ने?
उत्तरः– ए तो पुद्गलमां निमित्त थवानी उत्कृष्टमां उत्कृष्ट केटली शक्ति छे ते बताव्युं छे. केवळज्ञानावरणीय कर्मनो उदय आव्यो माटे केवळज्ञान रोकायुं छे एम नथी. उदय तो जडमां छे, अने उद्रयने अनुसरवानी लायकात पोतानी छे. माटे ज्ञान पोताथी हीणपणाने प्राप्त थयुं छे. परिणतिमां विषयनो प्रतिबंध थतां थोडो विषय करे छे अने घणो छोडी दे छे. ते पोताथी थाय छे, ज्ञानावरणीय कर्म तो एमां निमित्त छे. ज्ञानावरणीय कर्मनो उदय भावकपणे आवे छे ते तेनी सत्तामां छे अने जीवनी सत्तामां पोताना कारणे तेने अनुसरीने ज्ञानी हीणी दशा थवानी भाव्य दशा थाय छे. ते भाव्य- भावकसंकरदोष छे. हवे पर्यायने पूर्ण निर्मळ करवा, पूर्णानंदस्वरूप भगवान केवळज्ञाननो पिंड छे तेनो पूर्ण आश्रय