१४० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ करतां निमित्तनुं अनुसरण छूटी जाय छे. त्यारे ते भाव्य पण रहेतुं नथी अने केवळज्ञान प्रगट थाय छे. तेवी रीते मति, श्रुत, अवधि अने मनःपर्यय ज्ञानमां पण लई लेवुं. आ प्रकारे ज्ञानावरणीय कर्म जीताय छे.
केवळदर्शनावरणीय कर्मनो उद्रय आवतां, तेने अनुसरे तो जरी दर्शननी हीणतारूप भाव्य थाय छे. ज्ञानी अने मुनिने पण पर्यायमां दर्शननी हीणदशारूप भाव्य थवानी लायकात होय छे तेथी भाव्य थाय छे, कर्मना कारणे नहि. जो ते (उदय) तरफनुं लक्ष छोडी स्वभावमां आवे (संपूर्ण आश्रय पामे) तो केवळदर्शनावरणीय कर्म जीताय छे. तेवी ज रीते चक्षु, अचक्षु अने अवधि दर्शनावरणीय कर्मने जीतवा संबंधमां पण समजवुं.
हवे अंतराय कर्मः-दान, लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्य ए पांच पर्याय छे. अंतराय कर्मनो उदय आवे छे माटे आ पांच पर्याय हीणी थाय छे एम नथी. परंतु ज्यारे ए हीणीदशा थाय छे त्यारे कर्मना उद्रयने निमित्त कहे छे. लाभांतराय, दानांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय अने वीर्यांतराय कर्मनो उदय आवे छे ते जडमां छे, अने ते समये हीणीदशा थवानी पोताना उपादानमां लायकात छे; तेथी उदयने अनुसरतां हीणीदशारूप भाव्य थाय छे. परंतु परनुं लक्ष छोडीने त्रिकाळ वीतरागमूर्ति अकषायस्वभावी भगवान आत्मानो आश्रय करे तो भाव्य-भावकनी एक्तानो संकरदोष जे थतो हतो ते टळी जाय छे. आ अंतरायकर्मनुं जीतवुं छे.
तेवी रीते आयुकर्मनो उदय छे माटे जीवने शरीरमां रहेवुं पडे छे एम नथी. भावक कर्मनो उदय जड कर्ममां छे अने तेने अनुसरीने पर्यायमां रहेवानी लायकात पोतानी छे माटे जीव रह्यो छे. आयुकर्म तो निमित्तमात्र छे. साता-असाता वेदनीयकर्मनो उदय होय ए तो जडमां छे. वळी खरेखर तो ए संयोगनी प्राप्तिमां निमित्त छे. तेना उदये जीवनी पर्यायमां किंचित् नुकशान थाय छे ते पोताना कारणे छे, परंतु उदयना कारणे नहि. तेवी रीते नामकर्मनो उदय तो जडमां छे अने तेना निमित्ते जीवनी सूक्ष्म अरूपी-निर्लेप दशा प्रगट होवी जोईए ते थती नथी ते जीवनी पोतानी योग्यताथी छे केमके ते काळे उदयनुं अनुसरण होय छे. गोत्रकर्म संबंधी पण आम समजी लेवुं. आम आठेय कर्मनो उदय तो जडमां छे अने भावक कर्मने अनुसरीने थवा योग्य जे भाव्य ते आत्मानी दशा पोताथी छे, कर्मना कारणे नहि. ज्ञानी ते उदयने अवगणीने, तेनुं लक्ष छोडीने निष्कर्म निज ज्ञायकभावने अनुसरतां ते ते भाव्यदशा प्रगट थती नथी ते कर्मने जीतवुं थयुं कहेवाय छे.
घातीकर्मने कारणे आत्मामां घात थाय छे एम नथी. परंतु द्रव्यघातीकर्मना उदयकाळे पर्यायमां ते जातनी हीणी दशारूपे परिणमवानी एटले भावघातीरूपे थवानी पोतानी लायकात छे, परंतु कर्मना कारणे ते लायकात नथी. कर्मना कारणे कर्ममां पर्याय थाय छे,