गाथा ३२ ] [ १४१ आत्मामां नहि. अहाहा! परने कारणे बीजामां कांई थाय एवुं जैनधर्ममां छे ज नहि. गुणोनी पर्याय थाय छे तेमां पोते ज कारण छे, कारण के पोते ज कर्मनुं अनुसरण करे छे. पोते जेटले दरज्जे (अंशे) निमित्तनुं अनुसरण छोडी, स्वभाव जे साक्षात् वीतरागस्वरूप छे तेने अनुसरी वीतराग पर्याय प्रगट करे छे तेटले अंशे भाव्यभावक- संकरदोष टळे छे.
अहो! आ तो वीतरागना अलौकिक न्याय छे. जेम पेंथीए पेंथीए तेल नाखे तेम आचार्योए वीतराग भगवाननो मार्ग स्पष्ट कर्यो छे. कुंदकुंदाचार्यनां शास्त्रो अने अमृतचंद्राचार्यनी टीका अगाध छे. संतोए तो हृदय खुल्लां कर्यां छे. जेवी रीते द्रव्यकर्म जीताय छे तेम नोकर्मने अनुसरीने जे विकारी भाव थाय छे तेने छोडी स्वभावने अनुसरतां नोकर्मनुं जीतवुं थाय छे. वळी मनना निमित्ते जे कंपन छे तेने अनुसरीने योगपणे थवानी योग्यता पोतानीछे. ते भाव्य-भावकसंकरदोष जेटला अंशे स्वभावने अनुसरवामां आवे तेटला अंशे टळी जाय छे. आ शास्त्रमां आस्रव अधिकारमां गाथा १७३ थी १७६ ना भावार्थमां पंडित जयचंदजीए लख्युं छे केः- ‘क्षायिक सम्यग्द्रष्टिने सत्तामांथी मिथ्यात्वनो क्षय थती वखते ज अनंतानुबंधी कषायनो तथा ते संबंधी अविरति अने योगभावनो पण क्षय थई गयो होय छे तेथी तेने ते प्रकारनो बंध थतो नथी.’ तेथी श्रीमद् राजचंद्रे ‘सर्वगुणांश ते सम्यक्त्व’ अने पंडित श्री टोडरमलजीए रहस्यपूर्ण चिठ्ठीमां ‘ज्ञानादि गुणो एकदेश चतुर्थ गुणस्थान थतां प्रगट थाय छे’ एम कह्युं छे.
जेम उपर मन लीधुं तेम वचन, काय अने पांच इन्द्रियो पण लेवी. इन्द्रियोने अनुसरीने जे हीणी दशा थाय छे ते भाव्य छे. ते भाव्यने अनिन्द्रिय स्वभावनो आश्रय लईने टाळवुं ते जीतेन्द्रियपणुं छे.
आम समय समयना परिणाम पोताथी स्वतंत्रपणे छे एम सिद्ध करे छे. परिणाम उग्ररूप परिणमे के उग्ररूप न परिणमे, ते पोताना कारणे छे, एमां निमित्तनी जराय डखल नथी. आत्मावलोकनमां आवे छे के-जे द्रव्यनी पर्याय जे समये जे प्रकारे थवानी छे ते पोताना कारणे ज थाय छे अने ते निश्चय छे.
आ रीते मोहनी जग्याए राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, कर्म, नोकर्म, मन, वचन, काया अने पांच इन्द्रियो-ए सोळ पद मूकीने वर्णन कर्युं. आ सिवायना असंख्य प्रकारना शुभाशुभ भावो छे ते अने अनंत प्रकारनी अंशोनी हीनता अने उग्रता थाय छे ते पण विचारवी.
भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यघन छे. द्रव्येन्द्रियो, भावेन्द्रिय, अने इन्द्रिय-विषयो ए त्रणेय ज्ञेय छे. ए पोतानी चीज नथी एम जाणवुं एने सर्वज्ञ परमात्मा केवळीनी