१४२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ स्तुति कहे छे. जे पोतानी चीज होय ते दूर न थाय, अने जे दूर थाय ए पोतानी चीज केम होय? जेने केवळीनी स्तुति करवी होय तेणे आनंद अने सर्वज्ञस्वभावथी परिपूर्ण भगवान आत्मा साथे राग अने निमित्तथी भिन्न पडी, एक्तानी निर्विकल्प भावना करवी. आवी एक निश्चय स्तुतिनी वात ३१ मी गाथामां आवी गई.
हवे आ गाथामां एम कह्युं के-राग अने निमित्तथी भिन्न पडीने, भगवान आत्मा जे शुद्ध चैतन्यघन वस्तु छे तेनी सन्मुख थवाथी जेने पर्यायमां शुद्धता प्रगटी छे (ज्ञेय-ज्ञायक संकरदोष दूर थयो छे) ते ज्ञानीने हजु (मोह) कर्मनुं निमित्तपणुं छे, अने तेना तरफना वलणवाळी विकारी भाव्य दशा थाय छे. हवे ए ज्ञानी निमित्तनुं लक्ष छोडीने अंदर निज ज्ञायकभावनो उग्र आश्रय लईने ते भाव्य मोह-रागादिने जीते छे अर्थात् मोहनो उपशम करे छे. तेथी तेने भाव्यभावकसंकरदोष थतो हतो ते टळे छे, अने आत्मानी स्तुति थाय छे अर्थात् आत्माना गुणनी वृद्धि थाय छे.
जडकर्म जे मोह तेना अनुसार प्रवृत्तिथी आत्मा भाव्यरूपे थतो हतो तेने भेदज्ञानना बळथी जुदो अनुभव्यो ते जितमोह जिन थयो. उपशम श्रेणी चढतां मोहना उदयनो अनुभव न रहे, पण पोताना बळथी उपशमादि करी आत्माने अनुभवे ते जितमोह छे. उपशमादि केम कह्युं? उपशमश्रेणीमां ज्ञान, दर्शन अने वीर्यनो क्षयोपशमभाव होय छे अने जेम पाणीमां मेल होय ते ठरीने नीचे बेसी जाय तेम विकार (चारित्र मोह) उपशमश्रेणीमां दबाई जाय छे, पण तेनो क्षय थतो नथी तेथी तेने उपशम कहे छे.
उपशम एक मोहकर्मनो होय छे त्यारे क्षयोपशम, उद्रय, क्षय चारेय घातीकर्मनो होय छे. क्षयोपशमभाव १ थी १२ गुणस्थान सुधी, क्षायिकभाव ४ थी १४ गुणस्थान सुधी अने उदयभाव १ थी १४ गुणस्थान सुधी होय छे. पारिणामिकभाव तो सदाय सर्व जीवोने होय छे.