रूपे परिणमन छे एम कहेवुं ए असत्यार्थ नयथी कहेवामां आवे छे. सम्यक्दर्शन थतां द्रव्यना बधा निर्मळ परिणाम द्रव्य तरफ ढळे छे, एकली श्रद्धानी पर्याय ज ढळे छे एम नहीं. फक्त मलिन परिणाम बहार रही जाय छे. द्रव्यार्थिक नयनी मुख्यतामां ‘एकना सेवननी ज’ (ध्रुव आत्मानी ज) मुख्यता होय छे. ते काळे त्रणे रूपे परिणमवुं एने गौण करीने-व्यवहार कहीने असत्यार्थ कहे छे.
गाथा १६ (समयसार) ना कळश १७ मां आवे छे के -‘आत्मा एक छे तो पण व्यवहारद्रष्टिथी जोईए तो त्रण स्वभावपणाने लीधे अनेकाकाररूप (मेचक) छे, कारण के दर्शन, ज्ञान अने चारित्र -ए त्रण भावे परिणमे छे. जोयुं? दर्शन, ज्ञान, चारित्र ए त्रणेपणे परिणमे छे ए व्यवहारकथन छे. आ ज कळशना भावार्थमां खुलासो छे के शुद्ध द्रव्यार्थिकनये आत्मा एक छे. आ नयने प्रधान करी कहे त्यारे पर्यायार्थिकनय गौण थयो, तेथी एकने त्रणरूपे (दर्शन, ज्ञान, चारित्र एम त्रणरूपे) परिणमवो कहेवो ते सद्भूत व्यवहार छे; राग छे ते असद्भूत व्यवहार छे. (आत्मा रागरूपे परिणमे छे एम कहेवुं ते असद्भूत व्यवहार छे.)
अहा! परिणमननी त्रण निर्मळ दशाने व्यवहार कही, असत्यार्थ कही तो द्रव्यने निर्मळ पर्याय साथे लईने द्रष्टिनो विषय बनावे ए तो घणुं स्थूळ थइ गयुं (एवी मान्यता) विपरीत अने ऊंधी द्रष्टि छे. निश्चयनयनो विषय एक अंश छे, प्रमाण नथी. जे ‘एकरूप’ छे ते द्रव्यार्थिकनयनो विषय छे. एक वस्तुने द्रव्यार्थिकनये-निश्चयनयथी ज्यारे ‘एक’ कही त्यारे बीजो नय हजु बाकी रही गयो; केमके वस्तुनो बीजो अंश छे ने? तेने विषय करनार व्यवहारनय बाकी रही गयो, अन्यथा नय ज कहेवाय नहीं. त्रणपणे परिणमे छे ए पर्यायअंश व्यवहारनयनो विषय छे. आ व्यवहारनयना विषयने गौण करी, ते नथी, एम असत्यार्थ कहेल छे. वळी द्रव्यथी साथे पर्याय लेवी ए पण व्यवहार छे. बे थया माटे व्यवहार छे. बीजी रीते कहीए तो पर्याय सद्भूत व्यवहार छे, अने त्रिकाळी ध्रुव द्रव्य निश्चय छे; बे मळीने प्रमाणनो विषय थई गयो अने प्रमाण पोते व्यवहारनयनो विषय छे, एम पंचाध्यायीमां लीधुं छे.
हवे अहीं कहे छे के ए सिद्ध भगवंतो, सिद्धपणाने लीधे-एटले सिद्ध-पूर्ण- दशा प्राप्त थई गई छे एने लीधे, साध्य जे आत्मा तेना प्रतिच्छंदना स्थाने छे. प्रतिच्छंद एटले पडघो. राणपुरमां राजानो नदीना कांठे पथ्थरनो ऊंचो महेल छे. तेमां (एक जगाथी) अवाज करे अने त्यांथी अवाज ऊठे. अवाज पाछो पडे. आने पडघो कहेवाय. तेम अहीं ‘हे सिद्ध?’ एम बोले त्यां अंदर सामो पडघो पण एवो पडे के ‘हे सिद्ध!’