Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 43 of 4199

 

३६ [ समयसार प्रवचन

अथवा अहीं कहे के ‘हे भगवान! तमे तारजो.’ त्यां अंदरमां सामो प्रतिघोष थाय के ‘हे भगवान! तमे तारजो.’ आ रीते सिद्ध भगवंतो, सिद्धपणाने लीधे प्रतिच्छंदना स्थाने छे. सिद्ध भगवान नमूनो छे. (साध्यनो नमूनो छे). लोगस्समां आवे छे ने? ‘सिद्धा सिद्ध मम दिसतुं.’ एटले के हे सिद्ध भगवान! मने सिद्धपद दो. आम तेमना सिद्धोना स्वरूपनुं संसारी भव्य जीवो चिंतवन करीने, ते समान पोतानुं स्वरूप ध्यावीने-एटले के ‘सिद्ध समान सदा पद मेरो, ’ एम पोतानुं स्वरूप जे शुद्ध चैतन्यघन, आनंदकंद एनुं ध्यान करीने पूर्णतानी प्राप्ति करे छे.

अहीं पर्यायनुं ध्यान करवानी वात नथी. अहीं तो मारुं द्रव्य ज सिद्ध स्वरूप छे, स्वभावथी शक्तिरूपे हुं सिद्ध ज छुं. नियमसारमां आवे छे ने? बधा संसारी जीवो (निश्चयनयना बळे) सिद्ध समान ज छे, अष्टगुणथी पुष्ट छे. आ स्वभावनी वात छे. द्रव्ये पोतानुं सिद्धस्वरूप छे एने ध्यावीने, पोताना त्रिकाळी स्वरूपनुं ध्यान करीने तेना जेवो थई जाय छे. अहा! निर्मळ पर्यायमां ध्यान कोनुं छे? द्रव्यनुं, के जे स्वरूपे पूर्ण, आनंदस्वरूप एकरूप छे, एने पर्याय विषय बनावीने ध्यान करे छे. परम अध्यात्मतरंगिणीमां त्रण ठेकाणे आवे छे के ‘ध्यान विषय कुरु’ -पर्यायमां द्रव्यने विषय बनाव. एनो अर्थ ए नथी के आ पर्याय छे ते द्रव्यमां वाळुं छुं, पण पर्याय द्रव्य तरफ वळी ए द्रव्यनुं ध्यान छे. सिद्धनुं ध्यान-एटले जेवो पोते सिद्ध समान स्वभावथी छे-तेनुं ध्यान करतां सिद्ध समान थई जाय छे; न थाय ए प्रश्न ज नथी. तेथी चारेय गतिथी विलक्षण एवी पंचमगति- मोक्षने पामे छे. बीजी गतिओ तो विकारवाळी छे, त्यांथी तो पाछुं आववुं पडे छे. पण आ मोक्षगति तो थई ए थई, ‘सादि अनंत अनंत समाधि सुखमां.’ सादि-अनंतकाळ सिद्धमां ज रहेशे. अहो! अमृतचंद्रे अमृतना नाथने अमृत गति प्राप्त कराववानी अद्भूत वात करी छे. अमृत रेलाव्यां छे! ‘रे गुणवंता ज्ञानी अमृत वरस्यां रे पंचम काळमां!!

केवी छे ते पंचमगति? ‘धुवमचलमणोवमं’. ध्रुवताथी प्रथम उपाडयुं छे. पर्याय अंदर ध्रुव स्वभावमांथी आवी छे ने? ध्रुवमांथी ध्रुव पर्याय-सिद्ध पर्याय थई छे. सिद्ध पर्यायने वंदन करवुं छे ने? ए पंचमगति-सिद्ध गति स्वभावरूप छे. जे आत्मानो स्वभावभाव छे एमांथी स्वभावभावपर्याय आवेली छे. सिद्ध भगवाननी निर्मळ पर्याय स्वभावभावरूप छे माटे ध्रुवपणाने अवलंबे छे-ध्रुवपणाने राखे छे. चार गतिओ पर निमित्तथी-कर्मना निमित्तथी थती होवाथी ध्रुव नथी, विनाशिक छे. चार गति विभावभावरूप विकारी अवस्था छे. आम ध्रुव विशेषणथी पंचमगतिमां विनाशिकतानो व्यवच्छेद थयो. जो के मोक्षनी पर्याय (सिद्ध पर्याय) पण नाशवान (उत्पाद-व्ययरूप) छे, छतां अहीं