मोक्षनी पर्याय एवी ने एवी रहेवानी छे, ए अपेक्षाए विनाशिक नथी एम कह्युं छे. सिद्धगतिनुं परिणमन भले हो, पण एवुं ने एवुं रहे छे माटे तेने विनाशिकता रहित (ध्रुव) कहेवाय छे.
वळी ते केवी छे? अचळ छे. सिद्धगति अचळ छे. अचळ स्वभावमांथी आवी छे माटे अचळ छे. सिद्धदशा एक वखत थई पछी तेमां फेरफार थतो नथी. अनादिकाळथी पर भावना निमित्तथी थतुं जे परमां भ्रमण तेनी विश्रांतिवश अचळपणाने पामी छे. आ विशेषणथी चारेय गतिओने परना निमित्तथी जे भ्रमण थाय छे तेनो पंचमगतिमां व्यवच्छेद थयो. जेवो स्वभाव अचळ छे तेवी ज सिद्धगति अचळ थई छे, एटले फरती नथी.
वळी ते केवी छे? अनुपम छे. अहाहा...! सिद्धगति, एनी शी वात! समस्त उपमायोग्य पदार्थो तेमनाथी विलक्षण, अद्भुत माहात्म्यवाळी होवाथी तेने कोईनी उपमा मळी शकती नथी. सिद्धने उपमा सिद्धनी. सिद्धनी, बीजानी साथे उपमा थई शकती नथी अहाहा...! एक समयमां जेने अनंत अतीन्द्रिय आनंद, अनंत केवळज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत स्वच्छता, अनंत प्रभुता... एने कोनी उपमा आपवी? आ विशेषणथी चारेय गतिओमां जे परस्पर समानपणुं मळी आवे छे तेनो पंचमगतिमां व्यवच्छेद थयो. मोटा चक्रवर्तीने स्वर्ग जेवुं सुख छे एम उपमाथी कहेवाय, पण पंचमगतिने कोई उपमा आपी शकाय एम नथी.
वळी ते केवी छे? अपवर्ग तेनुं नाम छे. सिद्धगतिनुं नाम अपवर्ग छे. धर्म, अर्थ, अने कामथी भिन्न छे. ए त्रिवर्गमां ए आवती नथी तेथी अपवर्ग छे. धर्म एटले पुण्य, अर्थ एटले लक्ष्मी, अने काम एटले विषयनी वासना -आ त्रिवर्ग छे. मोक्षगति आ वर्गमां नथी.
ल्यो, आ सिद्ध भगवानने वंदन करीने मांगळिक कर्युं. आवा सिद्ध भगवान छे एम ज्ञान करीने तेमने वंदन कर्युं, तेमनो आदर कर्यो. ओघे ओघे ‘णमो सिद्धाणं’ कहे एम नहीं एम अहीं कहे छे. आखा संसारनो-चोराशीना अवतारनो अभाव थईने सिद्ध गति उत्पन्न थई छे, भाई. ए व्यय विनानो उत्पाद थयो छे. प्रवचनसारमां आवे छे के सिद्ध भगवानने संसारनो जे व्यय थयो छे ते उत्पाद विनानो व्यय छे. संसारनो जे नाश थयो ते हवे उत्पन्न नहीं थाय. अहा! सिद्धगति जे उत्पन्न थइ छे ते व्यय विनानी उत्पन्न थइ छे. आवा सिद्धनी वंदना करी छे.