आम सिद्धोने पोताना आत्मामां तथा परना आत्मामां स्थापीने समयनो (सर्व पदार्थोनो अथवा जीव पदार्थनो) प्रकाशक प्राभृत नामनो अर्हत्-प्रवचननो अवयव-अंश, तेनुं हुं परिभाषण करुं छुं आ समय प्राभृत ए सर्व पदार्थोनो वा जीव पदार्थनो प्रकाशक छे अने ते अर्हत् प्रवचननो अंश कहेतां भगवान श्री अरिहंतना श्रीमुखेथी नीकळेली दिव्यध्वनि -वाणी-प्रवचन एनो एक अंश छे. तेनुं, अनादिकाळथी उत्पन्न थयेल मारा अने परना मोहना नाश माटे परिभाषण करुं छुं. अहीं आचार्यश्री-मारामां (पोतामां) पण चारित्रमोहनी जे अल्प अस्थिरता छे तेनो तथा पर जीवोमां जे मिथ्यात्व-रागादि छे तेनो नाश करवानी वात करे छे मारे पण हजी अल्प मोह छे एम कहे छे. अमृतचंद्राचार्ये त्रीजा कळशमां कह्युं हतुं ने के आ टीका करतां मारा मोहनो नाश थशे. तेओश्रीनी ज आ टीका छे ने?! कहे छे के मारा अने परना मोहना नाश माटे परिभाषण करुं छुं, एटले के व्याख्या करुं छुं.
आ समयसार छे ए अर्हत्-प्रवचननो अवयव एटले अंश छे. केवो छे ते अवयव? अनादिनिधन परमागम शब्दब्रह्मथी प्रकाशित छे, सर्व पदार्थोना समूहने साक्षात् करनार केवळी भगवान सर्वज्ञथी प्रणीत छे. आम कहीने आ समयसारनी प्रामाणिकता सिद्ध करे छे. समयसार बन्युं छे केम? अनादि परमागम छे एमांथी बन्युं छे, अने सर्वज्ञ भगवाने ते कह्युं छे-प्रणीत कर्युं छे, अने केवळीओना निकटवर्ती साक्षात् (सीधा) सांभळनार, तेम ज पोते अनुभव करनार-एटले के सांभळीने आनंद स्वरूप आत्मानो अनुभव करनार एवा श्रुतकेवळी गणधरदेवोए कहेलुं होवाथी प्रमाणताने पामेल छे. अन्यवादीओना आगमनी जेम अल्पज्ञानीनी कल्पनामात्र नथी. अन्यवादीओए एटले जैन परमेश्वर सिवाय बीजाओए आगम बनाव्यां छे एम आ नथी. आ तो अनादि अनंत शब्दब्रह्म, सर्वज्ञकथित अने श्रुतकेवळीओ तथा साक्षात् सांभळनार अने अनुभव करनार एमणे कहेलुं छे तेथी प्रमाण छे. बीजाओनां आगम तो कल्पित छे. श्वेतांबरोए पण कल्पित आगम बनाव्यां छे छद्मस्थ अल्पज्ञानीनी कल्पनामात्र होय एवा आ आगम नथी अल्पज्ञानीओनां कल्पनामात्र आगमो छे ते बधां अप्रमाण छे.
गाथासूत्रमां आचार्ये ‘वक्ष्यामि’ कह्युं छे. तेनो अर्थ टीकाकारे ‘वच परिभाषणे’ धातुथी परिभाषण कर्यो छे. संस्कृत टीकामां छेल्ला शब्दो छेः ‘भाववाचा द्रव्यवाचा च परिभाषणमुपक्रम्यते’– एनो आशय आ प्रमाणे सूचित थाय छेः चौद पूर्वमां ज्ञानप्रवाद नामना पूर्वमां बार वस्तु अधिकार छे; तेमां पण एक एकना वीश वीश ‘प्राभृत’