अधिकार छे. तेमां दशमा वस्तुमां समय नामनुं जे प्राभृत छे तेनां मूळ सूत्रोना शब्दोनुं ज्ञान तो पहेलां मोटा आचार्योने हतुं, अने तेना अर्थनुं ज्ञान आचार्योनी परिपाटी अनुसार श्री कुंदकुंदाचार्यने पण हतुं. तेमणे समयप्राभृतनुं परिभाषण कर्युं- परिभाषा सूत्र बांध्युं. सूत्रनी दश जातिओ कहेवामां आवी छे, तेमां एक परिभाषा जाति पण छे. अधिकारने जे यथास्थानमां अर्थ द्वारा सूचवे ते परिभाषा छे. श्री कुंदकुंदाचार्य समयप्राभृतनुं परिभाषण करे छे एटले समयप्राभृतना अर्थने ज यथास्थानमां जणावनारुं परिभाषासूत्र रचे छे. एटले ज्यां ज्यां जे जे योग्य छे त्यां ते प्रमाणे शास्त्रनी रचना करे छे. अहाहा! श्रुतकेवळीओए जे कहेलुं तेना अर्थनुं ज्ञान श्री कुंदकुंदाचार्यने हतुं.
आचार्ये मंगळ अर्थे सिद्धने नमस्कार कर्या छे. संसारीने शुद्ध आत्मा साध्य छे अने सिद्ध साक्षात् शुद्धात्मा छे. जे ज्ञायकभाव छे ते एकलो ज आश्रय करवा लायक छे-ध्येयमां लेवा लायक छे. पण अहीं तो सिद्ध भगवान लीधा छे. सिद्ध भगवानने पर्यायमां पण शुद्धता प्रगट थई छे. वस्तु तरीके आत्मद्रव्य स्वभावे शुद्ध, शुद्ध छे. अहीं शुद्ध आत्मानुं स्वरूप कहेवानुं प्रयोजन छे, ध्रुव स्वरूप, शुद्धचैतन्य कहेवानुं प्रयोजन छे. तेथी तेने नमस्कार करवो उचित छे. कोई ईष्टदेवनुं नाम लईने नमस्कार केम न कर्यो तेनी चर्चा टीकाकारना मंगळ पर (प्रथम कळशमां) करेली छे ते अहीं पण जाणवी.
सिद्धोने सर्व एवुं विशेषण आप्युं तेथी ते अनंत छे एवो अभिप्राय बताव्यो. ए रीते ‘शुद्ध आत्मा एक ज छे’ एम कहेनार अन्यमतीओनो व्यवच्छेद कर्यो. वेदान्त एक सर्वव्यापक आत्मा माने छे, पण एम छे नहीं. अनंत अनंत आत्माओ छे एम कही वेदान्तीओनो व्यवच्छेद कर्यो.
श्रुतकेवळी शब्दनो अर्थः श्रुतने अनादिनिधन प्रवाहरूप आगम -शब्दब्रह्म कह्युं अने केवळी शब्दना बे अर्थ कर्या (१) सर्वज्ञ (२) परमागमने जाणनार श्रुतकेवळी. श्रीमद् कुंदकुंदाचार्यदेव एम कहे छे के अमे तो सर्वज्ञ परमेश्वर अने श्रुतकेवळीओए कहेलुं, जे अनादिनिधन परमागम-तेनुं परिभाषण करीए छीए; अमे अमारा घरनुं कल्पित कांई कहेता नथी. तेथी आ ग्रंथ प्रमाण छे.
हवे आ ग्रंथनुं अभिधेय शुं? ध्येय शुं छे? शब्दोनो संबंध एनी साथे शुं छे? ध्येय आत्मा वाच्य, वाचक एना शब्दो अने प्रयोजन शुद्धात्माना स्वरूपनी प्राप्ति थवी ए तो प्रगट छे.
शुद्धात्मानुं स्वरूप अभिधेय छे. अखंड आनंद, चैतन्य, ध्रुव, प्रभु परमात्मस्वरूप ए ध्येय बताववानुं प्रयोजन छे. जाणे छे पर्याय ध्येय त्रिकाळी शुद्ध आत्मा छे.