गाथा ३३ ] [ १४प [अद्य एव] तत्काळ [बोधं] यथार्थपणाने [न अवतरति] न पामे? अवश्य पामे ज. केवुं थईने? [स्व–रस–रभस–कृष्टः प्रस्फुटन् एकः एव] पोताना निजरसना वेगथी खेंचाई प्रगट थतुं एकस्वरूप थईने.
भेद बताव्यो छे; तेने जाणीने, एवो कोण पुरुष छे के जेने भेदज्ञान न थाय? थाय ज; कारण के ज्यारे ज्ञान पोताना स्वरसथी पोते पोतानुं स्वरूप जाणे त्यारे अवश्य ते ज्ञान पोताना आत्माने परथी भिन्न ज जणावे छे. अहीं कोई दीर्घसंसारी ज होय तो तेनी कांई वात नथी. २८.
आ प्रमाणे, अप्रतिबुद्धे जे एम कह्युं हतुं के “अमारो तो ए निश्चय छे के देह छे ते ज आत्मा छे”, तेनुं निराकरण कर्युं.
आ रीते आ अज्ञानी जीव अनादि मोहना संतानथी निरूपण करवामां आवेलुं जे आत्मा ने शरीरनुं एकपणुं तेना संस्कारपणाथी अत्यंत अप्रतिबुद्ध हतो ते हवे तत्त्वज्ञानस्वरूप ज्योतिनो प्रगट उद्रय थवाथी अने नेत्रना विकारीनी माफक (जेम कोइ पुरुषनां नेत्रमां विकार हतो त्यारे वर्णादिक अन्यथा देखातां हतां अने ज्यारे विकार मटयो त्यारे जेवां हतां तेवां ज देखवा लाग्यो तेम) पडळ समान आवरणकर्म सारी रीते ऊघडी जवाथी प्रतिबुद्ध थयो अने साक्षात् द्रष्टा (देखनार) एवा पोताने पोताथी ज जाणी, श्रद्धान करी, तेनुं ज आचरण करवानो इच्छक थयो थको पूछे छे के ‘आ स्वात्मारामने अन्य द्रव्योनुं प्रत्याख्यान (त्यागवुं) ते शुं छे?’
गाथा ३१ मां ज्ञेयज्ञायकसंकरदोषने जीतवानी वात हती, गाथा ३२ मां भाव्यभावक-संकरदोष दूर करवानी (उपशमनी) वात करी. हवे आ ३३ मी गाथामां भाव्यभावकसंबंधना अभावनी-क्षयनी वात करे छे. विकाररूप थवानी जे योग्यता छे ते भाव्य छे अने निमित्त कर्म ते भावक छे. ते बन्ने वच्चे जे भाव्य-भावकसंबंध छे तेना अभावथी थती निश्चय-स्तुतिने अहीं कहे छे. गाथा ३२ मां भाव्यभावक-संबंधनो अभाव नहि पण उपशम कर्यो हतो, दाब्यो हतो एनी वात हती. ए ज संबंधनो जे अभाव एटले क्षय करे छे एनी वात आ गाथामां छे.
निश्चयस्तुति एटले स्वभावना गुणनी शुद्धिनी विकासदशा. पूर्वे ३२ मी गाथामां कह्युं हतुं ते प्रमाणे जेणे ज्ञानस्वभाव वडे अन्यद्रव्यथी अधिक एवा आत्मानो अनुभव करी, मोहनो तिरस्कार कर्यो छे अर्थात् मोहनो उपशम कर्यो छे ते जीव हवे क्षायिकभाव द्वारा मोहनो नाश-क्षय करे छे. उपशमश्रेणीमां ११ मा गुणस्थाने क्षायिकभाव थतो नथी तेथी