Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ मुनि त्यांथी पाछा हठे छे अने पछी उग्र पुरुषार्थ करी मोहादिनो क्षय करे छे. उपशम- श्रेणीमां पुरुषार्थ मंद होय छे, ज्यारे क्षपकश्रेणीमां ते उग्र होय छे.

आ स्तुति छे ते साधकभाव छे, अने ते बारमा गुणस्थान सुधी ज होय छे. १३ मा गुणस्थाने स्तुति न होय, कारण के १३ मुं गुणस्थान-केवळज्ञान तो स्तुतिनुं फळ छे. पूर्वे कह्युं तेम इन्द्रियोने जीतीने जेणे अतीन्द्रिय एवा आत्मानुं ज्ञान अने भान कर्युं छे ते जीव त्यार पछी कर्मना निमित्तने अनुसरीने जे भाव्य थाय छे तेनो उपशम करे छे. त्यारे ते जितमोह थाय छे. ते ज आत्माना हवे पोताना स्वभावभावनुं उग्र अवलंबन करे छे. जे भावनाथी (एकाग्रताथी) कर्मनुं उपशमपणुं थतुं हतुं तेमां पुरुषार्थ मंद हतो. परंतु हवे ते ज्ञायक आत्माना अति उग्र आश्रय वडे पुरुषार्थने उग्र बनावे छे तेथी कर्मनो क्षय थाय छे. उग्र पुरुषार्थथी मोहनी संततिनो अत्यंत नाश थई जाय छे. पुरुषार्थ वडे मोहनो क्षय थाय छे एम कहेवुं ए तो निमित्तनुं कथन छे. कर्मनो जे क्षय थाय छे ए तो एनी पोतानी योग्यताथी थाय छे. स्वभाव तरफना उग्र पुरुषार्थना समये कर्ममां क्षय थवानी योग्यता होय छे ते एनी पोताथी छे. स्वभावसन्मुखताना अति उग्र पुरुषार्थथी ज्यारे केवळज्ञान प्रगटे छे त्यारे चार घातीकर्मानो क्षय थाय छे एम (निमित्तथी) कहेवाय छे. खरी रीते तो ते कर्मो नाश थवानी योग्यतावाळां हतां तेथी क्षयपणाने पामे छे. ते काळे कर्मनी पर्याय अकर्मरूपे थवा योग्य होय छे तेथी थाय छे. आम स्वभावना उग्र पुरुषार्थथी जे पर्यायमां उपशमभावनो मंद पुरुषार्थ हतो तेने टाळी नाख्यो ए त्रीजा प्रकारनी स्तुति छे.

परिपूर्ण भगवान आत्मानो अनुभव करी जे जितमोह थयो छे तेणे रागने दबाव्यो छे, रागनो उपशम कर्यो छे पण अभाव कर्यो नथी, केमके तेने स्वभावनुं उग्र अवलंबन नथी. हवे जो ते निज ज्ञायकभावनुं अति उग्र अवलंबन ले तो मोहनी संततिना प्रवाहनो एवो अत्यंत विनाश थाय के फरीने मोहनो उदय न थाय. आवी रीते ज्यारे भावकरूप मोहनो क्षय थाय छे त्यारे विभावरूप भाव्यनो पण आत्मामांथी अभाव थाय छे. जे भावक मोह छे तेना तरफनुं वलण छूटतां अने उग्र पुरुषार्थ वडे स्वभावनुं अवलंबन लेतां भावक मोह अने भाव्य मोह बन्नेनो अभाव थाय छे. तेथी क्षीणमोह गुणस्थानमां परमात्मपणाने प्राप्त थाय छे. आ त्रीजा प्रकारनी स्तुति छे.

१२ मा गुणस्थानमां भाव्यभावक भावनो अभाव थवाथी एकपणुं थवाथी टंकोत्कीर्ण परमात्मपणाने प्राप्त थयेलो ते क्षीणमोह जिन थयो छे. त्रण प्रकारे जिन कह्या छे. प्रथम जितेन्द्रिय जिन, बीजो उपशम अपेक्षाए जितमोह जिन अने त्रीजो क्षायिकरूप क्षीणमोह जिन. सम्यग्दर्शन थतां जितेन्द्रिय जिन थाय छे. उपशम श्रेणी थतां जितमोह जिन थाय छे अने अति उग्र पुरुषार्थ द्वारा पूर्ण वीतरागस्वरूप प्रगट थतां क्षायिक जिन-क्षीणमोह जिन थाय छे. बीजा प्रकारनी स्तुतिमां उपशम श्रेणीनी वात छे, उपशम समक्तिनी वात नथी. तेवी रीते त्रीजा प्रकारनी स्तुतिमां केवळज्ञाननी वात नथी, परंतु १२ मा क्षीणमोह