Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३३ ] [ १४७ गुणस्थाननी वात छे, केमके केवळज्ञान तो स्तुतिनुं फळ छे. क्षीणमोह जिन थतां जे पूर्ण वीतरागता थई ते त्रीजा प्रकारनी उत्कृष्ट स्तुति छे. उपशम स्तुतिमां (गाथा ३२ मां) जे सोळ बोल हता ते अहीयां पण लई लेवा. भाई! आ तो भगवान जिनेन्द्रदेवनो मार्ग अति सूक्ष्म छे. अनंतकाळमां जे समज्यो नथी एवो आ मार्ग अहीं बताव्यो छे.

* गाथा ३३ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

सर्वज्ञ परमात्मानी निश्चयस्तुति कोने कहेवाय ए प्रश्न हतो. तेनो उत्तर आप्यो के-आ भगवान आत्मा ज्ञान अने आनंदस्वरूपी वस्तु छे. तेनी द्रष्टि करी तेनी एक्ता करवी ए केवळीनी पहेला प्रकारनी स्तुति छे. भगवाननी भक्ति, पूजा, जात्रा करवानो जे भाव छे ते शुभभाव होवाथी पुण्यबंधनुं कारण छे. तेथी ते भाव वास्तविक धर्म नथी अने तेथी ते भाव वास्तविक स्तुति पण नथी. अने वास्तविक जिन शासन पण नथी.

शुद्ध ज्ञानस्वरूप पूर्ण पवित्र आनंदधाम भगवान आत्मा छे. तेनी सन्मुख थईने अने निमित्त, राग अने एक समयनी पर्यायथी विमुख थईने अंदर एकाग्र थतां पर्यायबुद्धि छूटवाथी पहेला प्रकारनी स्तुति थाय छे. रागथी भिन्न चैतन्यस्वरूप आत्मानो अनुभव थतां सम्यग्दर्शन थाय छे ते पहेली स्तुति छे. छतां ए सम्यग्द्रष्टिने कर्मना उदय तरफना झुकावथी पोतामां पोताने कारणे भावक कर्मना निमित्ते विकारी भाव्य थाय छे. आ भाव्यभावकसंकरदोष छे. हवे कर्मना उद्रयनुं लक्ष छोडी वस्तु जे अखंड एक चैतन्यघन प्रभु छे तेनी सन्मुख थई तेमां जोडाण करतां उपशमभाव द्वारा ज्ञानी ते मोहने जीते छे ते बीजा प्रकारनी स्तुति छे.

प्रथम स्तुतिमां सम्यग्दर्शन सहित आनंदनो अनुभव छे. बीजी स्तुतिमां भावक मोहकर्मना उद्रयना निमित्ते जे विकारी भाव्य थतुं हतुं ते स्वभावना आश्रये दबावी दई उपशमभाव प्रगट कर्यो. आ प्रकारनी स्तुतिमां स्वभावसन्मुखतानो पुरुषार्थ तो छे, पण ते मंद छे. हवे त्रीजी स्तुतिमां प्रबळ पुरुषार्थथी अंदर एकाग्र थतां रागनो नाश थाय छे. बीजी स्तुतिमां जे उपशमश्रेणी हती तेनाथी पाछा हठीने क्षपकश्रेणीमां जतां रागादिनो क्षय थाय छे. उपशम श्रेणीमां रागादिनो क्षय थतो नथी. तेथी पाछा हठीने ७ मा गुणस्थाने आवीने पछी उग्र पुरुषार्थ वडे क्षपकश्रेणी मांडतां रागादिनो अभाव थाय छे.

अहाहा! अनादिथी पोतानुं स्वरूप अखंड आनंदकंद प्रभु भगवानस्वरूप ज छे. आत्मा स्वयं परमात्मस्वरूप, जिनस्वरूप, वीतरागस्वरूप ज छे. अने जे विकल्प ऊठे छे ए तो अन्य स्वरूप कर्म छे. एकलो अकषायस्वभावी आनंदकंद आत्मा छे. तेनी द्रष्टि करी अनुभव करवो ते प्रथम प्रकारनी आत्मानी स्तुति छे. त्यारपछी रागना उद्रयमां पोताना पुरुषार्थनी कमजोरीथी जोडाण थतुं हतुं ते जोडाण, पोताना स्वरूप तरफना पुरुषार्थथी न