१४८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ करतां रागने दाब्यो, रागनो उपशम कर्यो. आ उपशमश्रेणी छे. ए बीजा प्रकारनी स्तुति छे. आ उपशमश्रेणी ८ मा गुणस्थाने शरू थाय छे. पछी ११ मा गुणस्थाने उपशमभाव थाय छे, पण त्यां क्षायिकभाव थतो नथी. तेथी त्यांथी पाछा हठीने सातमा गुणस्थाने आवीने फरी पुरुषार्थनी अति उग्रताथी रागनो नाश करवामां आवे छे ते त्रीजी स्तुति छे. राग उपशम पामे के क्षय पामे काम तो पुरुषार्थनुं ज छे.
मुनिए पहेलां पोताना बळथी बीजी स्तुतिरूप उपशमभाव वडे मोहने जीत्यो हतो, परंतु नाश कर्यो न हतो. ते फरीने पोताना महा सामर्थ्यथी अर्थात् अप्रतिहतस्वरूप वस्तु छे तेना तरफना अप्रतिहत पुरुषार्थथी मोहनो नाश कर्यो. आ पण उपदेशनुं कथन छे. बाकी तो उग्र पुरुषार्थने काळे मोह पोताना कारणे नाश पामे छे. परंतु भाषामां तो एम ज आवे के मोहनो पुरुषार्थथी नाश कर्यो.
आ आत्मा परमात्मा छे. ते एक समयनी पर्याय विनानी परिपूर्ण वीतराग सर्वज्ञस्वभावी परमभावस्वरूप वस्तु छे. तेमां उग्र अप्रतिहत पुरुषार्थ द्वारा स्थिर थई मुनिराज मोहनो अत्यंत नाश करे छे अने त्यारे ज्ञानस्वरूप परमात्माने प्राप्त थाय छे. (तेने क्षीणमोह जिन कहे छे.) बारमा गुणस्थानने प्राप्त पूर्ण वीतराग क्षीणमोह जिन छे. ते त्रीजा प्रकारनी उत्कृष्ट स्तुति छे. आ उत्कृष्ट स्तुतिनुं फळ १३ मुं गुणस्थान- केवळज्ञान छे. आम जे केवळज्ञानस्वभावी पोतानो आत्मा ज्ञाता-द्रष्टास्वरूप छे तेना तरफना संपूर्ण झुकाव अने सत्कारथी पर्यायमां रागनो अने तेना भावक कर्मनो सत्तामांथी नाश थाय छे तेने त्रीजा प्रकारनी केवळीनी उत्कृष्ट स्तुति कहे छे. अहाहा! पोतानी पूर्ण सत्तानो जे अनादर हतो ते छोडीने, तेनो स्वीकार अने संभाळ करवाथी रागनी अने कर्मनी सत्तानो नाश थाय छे, अने त्यारे ते क्षीणमोह जिन थाय छे.
हवे अहीं आ निश्चय-व्यवहार स्तुतिना अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-
‘कायात्मनोः व्यवहारतः एकत्वं’ शरीरने अने आत्माने व्यवहारनयथी एकपणुं छे. अहीं शरीर कहेतां बाह्य शरीर, कर्म अने राग ए बधुं लई लेवुं. आत्मा अने शरीर एक क्षेत्रे रहेवाथी अने बन्ने वच्चे निमित्त-नैमित्तिक संबंध होवाथी तेओ एक छे एम व्यवहारनय कहे छे. ‘न तु पुनः निश्चयात्’ परंतु निश्चयनयथी एकपणुं नथी. निश्चयथी तेओ एक नथी. चैतन्य भगवान जड रजकणोनो पिंड एवा शरीरथी जुदो छे. जेम पाणीनो कळश होय छे तेमां पाणी कळशथी अने कळश पाणीथी भिन्न छे- तेम अंदर ज्ञानजळरूपी भगवान आत्मा अने एनो आकार शरीर अने तेना आकारथी भिन्न छे. शरीर अने आत्माने व्यवहारथी एक कह्या हता पण निश्चयथी एटले खरेखर तेओ एक नथी पण भिन्न छे.