गाथा ३३ ] [ १४९
स्तवनथी आत्मा-पुरुषनुं स्तवन थयुं एम व्यवहारनयथी कहेवाय छे, पण निश्चयनयथी नहि. अहाहा! जुओ, भगवान त्रिलोकनाथ अरिहंतदेव ते पर वस्तु छे अने तेमनी स्तुतिनो विकल्प ए राग छे. तेथी ए स्तुति आत्मानी स्तुति नथी केमके विकल्प आत्माथी भिन्न चीज छे. रागथी मांडीने बधाय-एटले के सिद्ध भगवान अने तीर्थंकरो पण आ आत्माना स्वरूपथी भिन्न होवाथी अनात्मा छे. तेथी ‘आ आत्मा (पोते) नहि’ एवा अनात्मानी जे स्तुति करे छे ते चैतन्यनी स्तुति करतो नथी पण चैतन्यथी भिन्न शरीरनी स्तुति करे छे. जेम आत्माथी भिन्न एवा अनात्मस्वरूप जड शरीरनी स्तुतिथी राग थाय छे तेम आत्माथी (पोताथी) भिन्न एवा समोसरणमां बिराजमान साक्षात् त्रिलोकीनाथ तीर्थंकरदेवना शरीर के गुणनी स्तुति करवाथी पण, परलक्ष होवाथी, राग उत्पन्न थाय छे. माटे ते आत्मानी स्तुति नथी.
जेम पर पदार्थ आ जीव नथी ए अपेक्षाए अजीव छे, तेम निज द्रव्यरूप भगवान आत्मानी अपेक्षाए बीजां द्रव्यो अद्रव्य छे. बीजां द्रव्यो पोतपोतानी अपेक्षाए तो स्वद्रव्यरूप छे, पण आ जीवद्रव्यनी अपेक्षाए तेओ अद्रव्य छे. तेवी रीते आ आत्माना क्षेत्रनी अपेक्षाए परक्षेत्र ए अक्षेत्र छे, आ आत्माना स्वकाळनी अपेक्षाए परकाळ अकाळ छे अने आ आत्माना स्वभावनी अपेक्षाए परस्वभाव ते अस्वभाव छे. समयसारमां पाछळ अनेकान्तना परिशिष्टना १४ बोलमां आ वात आवे छे. आत्मा स्वचतुष्टयथी छे अने परचतुष्टयथी नथी. तेम ज पर पोताना स्वचतुष्टयथी छे पण आ आत्माना चतुष्टयथी नथी. ज्ञानमात्र जीववस्तु स्वद्रव्यपणे, स्वक्षेत्रपणे, स्वकाळपणे अने स्वस्वभावपणे अस्ति छे, परंतु परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाळ अने परभावपणे नास्ति छे. स्वद्रव्य अनंत गुण अने पर्यायोनो पिंड छे, असंख्य प्रदेश तेनुं क्षेत्र छे, एक समयनी पर्याय ते पोतानो स्वकाळ छे अने पोताना गुण ते स्वभाव छे. आवा स्वद्रव्य-क्षेत्र- काळ-भावनी अपेक्षाए अरिहंत अने सिद्ध भगवाननो आत्मा अद्रव्य, अक्षेत्र, अकाळ अने अस्वभाव छे. आ तो परथी भिन्नतानी (भेदज्ञाननी) वात छे. माटे अर्हंतादिनी स्तुति ए आत्मानी स्तुति नथी.
कळशटीकामां कळश २प२ मां उपर कही एथी पण विशेष सूक्ष्म वात करी छे. त्यां कहे छे केः-स्वद्रव्य एटले अखंड निर्विकल्प अभेद एकाकार वस्तु अने परद्रव्य एटले स्वद्रव्यमां ‘आ गुण अने आ गुणी’ एवो भेदविकल्प करवो ते. स्वक्षेत्र एटले असंख्य प्रदेशी एकरूप आकार अने असंख्य प्रदेश एम तेमां भेद करवो ते परक्षेत्र छे. पूर्णानंदनो नाथ त्रिकाळी वस्तु ते स्वकाळ छे अने एक समयनी जे पर्याय छे ते परकाळ छे. स्वभाव एटले द्रव्यनी सहज शक्ति अने एकरूप वस्तुमां आ ज्ञान, आ दर्शन एम भेद करवा ते परभाव छे.