१प० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२
अहाहा! वस्तु बहु सूक्ष्म छे, भाई. ज्यां ‘हुं आ द्रव्य अने आ पर्याय’ तेवो भेद पण परद्रव्य छे त्यां पुण्य-पापना भावोनुं शुं कहेवुं? ए तो परद्रव्य छे ज. अभेद स्वभावमां गुण-भेदनी कल्पना करवी ए परभाव छे. अहो! दिगंबर संतोनी वीतराग- मार्गनी वात अलौकिक छे. आवी वस्तुना स्वरूपनी वात बीजे कयांय नथी.
नियमसारनी प० मी गाथामां पण आवे छे केः-स्वरूपना आश्रये प्रगटेली एक समयनी निर्मळ वीतरागी संवर, निर्जरा अने केवळज्ञाननी पर्याय पण परद्रव्य, परभाव छे अने तेथी हेय छे. पोतानो त्रिकाळी स्वभाव स्वद्रव्य छे अने एक समयनी पर्याय त्रिकाळीमां नथी, त्रिकाळरूप नथी माटे परद्रव्य छे. मूळ गाथामां ‘परदव्वं परसहावमिदि हेयं’ एटले ‘पूवोक्त सर्व भावो परस्वभावो छे, परद्रव्य छे, तेथी हेय छे’ एम कह्युं छे. तथा टीकामां एम लीधुं छे के-‘परंतु शुद्ध निश्चयनयना बळे (शुद्ध निश्चयनये) तेओ हेय छे. शा कारणथी? कारण के तेओ परस्वभावो छे, अने तेथी ज परद्रव्य छे. सर्व विभावगुणपर्यायोथी रहित शुद्ध-अंतःतत्त्वस्वरूप स्वद्रव्य उपादेय छे.’ अहाहा! ते चार-ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि अने मनःपर्ययज्ञान ते पण विभावगुणपर्यायो छे. त्रिकाळी ज्ञायक-स्वभाव ते स्वद्रव्य छे अने ते एक ज उपादेय छे. अहीं पर्यायबुद्धि छोडावीने द्रव्यबुद्धि कराववानुं प्रयोजन छे. जेम परद्रव्यमांथी निर्मळ पर्याय उत्पन्न थती नथी तेम एक निर्मळ पर्यायमांथी बीजी नवी निर्मळ पर्याय आवती नथी. चाहे तो मोक्षमार्गनी पर्याय प्रगट हो, तोपण तेने द्रष्टिमांथी छोडवा जेवी छे, केम के त्रिकाळी एक अखंड आनंदकंद ज्ञायक वस्तु ते स्वद्रव्य उपादेय छे अने एक समयनी निर्मळ मोक्षमार्गनी पर्याय ते परद्रव्य छे, तेथी हेय छे.
अहीं एम कहे छे के आत्माने अने शरीरने एकक्षेत्रावगाह संबंध होवाथी शरीरनी स्तुतिथी केवळीनी स्तुति थई एम व्यवहारथी कहेवामां आवे छे, परंतु निश्चयनयथी ए साची स्तुति नथी केमके निश्चयनयथी आत्मा अने शरीर एक नथी. शरीरनुं स्तवन कहो के आ निज भगवान आत्मा सिवाय अन्य आत्मानुं-केवळीनुं स्तवन कहो; ए व्यवहारथी स्तवन छे. निश्चयथी केवळीना गुणनी स्तुति ते साची स्तुति नथी, ए तो राग छे.
‘निश्चयतः चित्स्तुत्या एव चितः स्तोत्रं भवति’ निश्चयथी तो चैतन्यना स्तवनथी ज चैतन्यनुं स्तवन थाय छे. अहाहा! अखंड एक त्रिकाळी ध्रुव चैतन्यस्वरूप ज्ञायकभावनो सत्कार करवो एटले तेनी सन्मुख थई तेमां एकाग्र थवुं अने निर्मळ पर्याय प्रगट करवी एनुं नाम साची स्तुति छे. आ ज स्तुति भवना अभावनुं कारण छे, बीजी कोई स्तुति-भक्ति भवना अभावनुं कारण नथी. कोई एम कहे के सम्मेदशिखरजीनां जे दर्शन करे तेने ४९ भवे मुक्ति थाय. अरे भाई! आ वीतरागमार्गनी वात नथी. सम्मेदशिखर तो शुं? त्रणलोकना नाथ भगवान अरिहंतदेवनां साक्षात् दर्शन करे तोपण भवनो अभाव