गाथा ३३ ] [ १प१ न थाय. अंदर चिदानंद भगवान त्रणलोकनो नाथ त्रिकाळ बिराजे छे एनां दर्शन भवना अभावनुं कारण छे. आ आत्मा सिवाय शरीरथी मांडी अन्य सर्व पोतानी अपेक्षाए अनात्मा छे. तेनी स्तुति करवी ते निश्चयस्तुति नथी. पूर्ण चैतन्यस्वभावमां एकाग्रतारूप स्तवनथी चैतन्यनुं साचुं स्तवन थाय छे. आ सिवाय पर भगवाननी स्तुति के एक समयनी पर्याय जे परद्रव्य छे तेनी स्तुति (एकाग्रता) ते चैतन्यनी स्तुति नथी.
अहाहा! चैतन्यबिंब, वीतरागमूर्ति भगवान आत्मानी स्तुतिथी केवळीना गुणनी निश्चयस्तुति वा स्वचैतन्यनुं स्तवन थाय छे. ‘सा एवं’ आ चैतन्यनुं स्तवन ते जितेन्द्रिय जिन, जितमोह जिन तथा क्षीणमोह जिन-जे पहेलां त्रण प्रकारे कह्युं ते छे. अहाहा! एक समयनी पर्याय विनानुं जे पूर्ण स्वरूप छे ते तत्त्व छे के नहि? सत्ता छे के नहि? सत्ता छे तो पूर्ण छे के नहि? जो ते पूर्ण छे तो अनादि-अनंत छे के नहि? वस्तु अनादि-अनंत पूर्ण त्रिकाळ ध्रुवस्वरूपे छे. ते तरफना झुकावथी निश्चयस्तुति थाय छे. ते सिवाय विकल्प द्वारा भगवाननी लाख स्तुति करे तोपण साची स्तुति नथी.
प्रश्नः– मोक्षशास्त्रनी शरुआतमां मंगलाचरणमां आवे छे केः-
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुणलब्धये।।
जेओ मोक्षमार्गना नेता छे, कर्मरूपी पर्वतोने भेदनारा छे, विश्वना तत्त्वोना ज्ञाता छे-एवा परमात्माना गुणोनी प्राप्ति माटे हुं तेमने वंदुं छुं. आमां भगवानना गुणनुं स्तवन करवाथी तेमना गुणनो लाभ (आ) आत्माने थाय छे एम आव्युं ने? कह्युं छे ने के ‘वंदे तद्गुणलब्धये’?
उत्तरः– भाई! ए तो निमित्तनुं, व्यवहारनुं कथन छे. ‘स्तुति करुं छुं’ एवो भाव तो विकल्प छे. परंतु अमृतचंद्राचार्यदेवे त्रीजा कळशमां जेम कह्युं छे तेम, ते विकल्पना काळे द्रष्टि द्रव्य उपर होवाथी जे शुद्धिनी प्राप्ति थाय छे तेने उपचारथी भगवाननी स्तुतिथी थई एम कहेवाय छे. अमृतचंद्राचार्यदेव आ शास्त्रना त्रीजा कळशमां कहे छे के-हुं तो शुद्ध चैतन्यघन छुं. पण मारी पर्यायमां हजु कांईक मलिनता छे. ते मलिनतानो टीका करवाथी ज नाश थाओ अने परम विशुद्धि प्रगट थाओ. तेनो अर्थ शुं? टीका करवानो भाव तो विकल्प छे. शुं विकल्पथी विशुद्धि प्रगट थई जाय? एनाथी शुं अशुद्धि नाश पामे? पाठ तो एवो छे-‘व्याख्यया एव’ टीकाथी ज. एनो अर्थ एम छे के हुं ज्यारे टीका करुं छुं त्यारे विकल्प तो छे, परंतु मारुं जोर तो अखंडानंद द्रव्य तरफ छे. टीकाना काळे द्रष्टिनुं जोर द्रव्य उपर छे तेथी ते जोरना कारणे अशुद्धि नाश थाओ अने परम विशुद्धि थाओ एम कहेवानो भाव छे.