१प२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ स्वभावमां एकाग्रताथी एक्ता थवी ते साची-निश्चयस्तुति छे. ‘अतः तीर्थकरस्तवोत्तरबलात्’ आम अज्ञानीए जे तीर्थंकरना स्तवननो प्रश्न कर्यो हतो तेनो आ प्रमाणे नयविभागथी उत्तर आप्यो. ते उत्तरना बळथी एम सिद्ध थयुं के ‘आत्मांगयोः एकत्वं न भवेत्’ आत्मा अने शरीरने निश्चयथी एकपणुं नथी. आत्मा अने अनात्मा एक नथी. तेम ज एक समयनी पर्याय अने त्रिकाळभाव एकरूप नथी. अहाहा! वस्तु आवी सूक्ष्म अने गंभीर छे.
हवे वळी, आ अर्थने जाणवाथी भेदज्ञाननी सिद्धि थाय छे एवा अर्थवाळुं काव्य कहे छेः-
शिष्ये गुरु समक्ष शंका प्रगट करी कह्युं के शरीर अने आत्मा एक छे. कारण के ज्यारे आप तीर्थंकर भगवाननी स्तुति करो छो त्यारे एम कहो छो के-अहो! भगवाननुं शुं सुंदर रूप छे! इन्द्रोना मनने पण ते जीती ले छे. तथा एनुं तेज सूर्यने पण ढांकी दे छे. भगवान! आपनी दिव्यध्वनि तो जाणे साक्षात् अमृत झरतुं न होय! हे गुरुदेव! आप ज आवी रीते शरीरथी अने वाणीथी भगवाननी स्तुति करो छो. तेथी अमे एम मानीए छीए के शरीरने ज आप आत्मा मानो छो. तेनुं अहीं समाधान करे छे.
‘इति परिचिततत्त्वैः’ जेमणे वस्तुना यथार्थ स्वरूपने परिचयरूप कर्युं छे अर्थात् ज्ञानानंदस्वरूप जे वस्तु एनो परिचय करी जेमणे आनंदनो अनुभव कर्यो छे एवा मुनिओए ‘आत्मकायैकतायां’ आत्मा अने शरीरना एकपणाने ‘नयविभजनयुक्त्या अन्यन्तम् उच्छादितायाम्’ नयविभागनी युक्ति वडे जडमूळथी उखेडी नाख्युं छे-अत्यंत निषेध्युं छे. अहाहा! शुं कहे छे? व्यवहारनयथी आत्मा अने शरीरने एकपणुं कहेवामां आवे छे पण निश्चयथी एकपणुं नथी. (अत्यंत निषेध्युं छे)
आ शास्त्रनी चोथी गाथामां कह्युं छे के-भगवान! तें राग केम करवो अने रागने केम भोगववो ए वात तो अनंतवार सांभळी छे, ए वात अनंतवार तारा परिचयमां आवी गई छे अने अनुभवमां पण आवी गई छे; परंतु रागथी भिन्न भगवान आत्मा जे निजस्वभावथी एकत्व छे एनी वात कयारेय सांभळी नथी, परिचयमां आवी नथी अने अनुभवमां पण आवी नथी. परंतु आ कळशमां एम कहे छे के जेमणे वस्तुना यथार्थ स्वरूपनो परिचय कर्यो छे, वारंवार आनंदस्वरूपनो अनुभव कर्यो छे मुनिओए ‘रागनो विकल्प अने भगवान आत्मा त्रणकाळमां एक नथी’ एम भेदज्ञान करीने (एमना) एकपणाने जडमूळथी उखाडी नाख्युं छे. कळश टीकामां ‘परिचिततत्त्वैः’ नो अर्थ ‘प्रत्यक्षपणे जाण्या छे जीवादि सकळ द्रव्योना गुणपर्यायोने जेमणे एवा सर्वज्ञदेव’ एवो कर्यो छे. आम केवळीओए तथा जेमने सम्यग्ज्ञान थयुं छे एवा मुनिओए आत्मा अने शरीरादिना एकपणाने नयविभागनी युक्ति वडे उखेडी नाख्युं छे. एटले के आत्मा अने