गाथा ३३ ] [ १प३ रागादिथी मांडी बधुंय अत्यंत भिन्न छे एम बताव्युं छे. अहाहा! भगवाननो अने मुनिओनो आवो उपदेश होय छे एम कहे छे.
पंचास्तिकायनी १७२ मी गाथामां व्यवहारने साधन अने निश्चयने साध्य कह्युं छे. परंतु ए तो साधननो आरोप आपसीने कह्युं छे. वास्तविक साधन तो रागथी भिन्न थई चैतन्यनो अनुभव करवो ते छे. तेनी साथे जे राग होय छे तेने उपचारथी साधन कह्युं छे. परंतु तेथी (रागथी) निश्चय प्रगट थाय छे-एम नथी. व्यवहारथी जेने साधन कह्युं छे तेनो अहीं अत्यंत निषेध करावे छे.
अहा! भगवाने अनंत ऋद्धिथी भरेली पोतानी चीज परिपूर्ण छे एने बतावी छे. छतां अज्ञानीने अनादिनुं राग अने शरीरनुं लक्ष होवाथी आत्मानुं लक्ष नथी. तेथी जाणे भगवान आत्मा छे ज नहि एम एने थई गयुं छे. एने आत्मा जाणे मरणतुल्य थई गयो छे. भाई! दया, दान, व्रतादिना विकल्पथी लाभ मानतां चैतन्यनुं मरण (घात) थई जाय छे. रागनी एक्तामां आत्मा जणातो नथी, राग ज जणाय छे. पूर्णानंद प्रभु चैतन्यज्योति आखी पडी छे तेनो प्रेम छोडीने जेने शुभाशुभ रागनो प्रेम छे तेने माटे आत्मा मरण-तुल्य थई गयो छे. राग मारो छे, हुं रागमां छुं अने राग मारुं र्क्तव्य छे एम जे माने छे तेने वीतरागस्वरूप आत्मानो अनादर छे. तेथी तेने आत्मा जाणे सत्त्व ज नथी. एम भ्रांति रहे छे.
आ भ्रांति परमगुरु परमेश्वर त्रिलोकीनाथ तीर्थंकरदेवनो उपदेश सांभळतां मटे छे. सर्वज्ञ परमेश्वरनो ए उपदेश छे केः-भगवान! तुं तो आनंदकंद छे ने! अमने पर्यायमां जे परमात्मपद प्रगट थयुं छे तेवुं ज परमात्मपद तारी स्वभाव-शक्तिमां पडयुं छे. तारो आत्मा (शक्तिपणे) अमारा जेवो ज छे. अल्पज्ञ पर्यायवाळो के रागवाळो ते तुं नथी. तुं तो पूर्णानंदस्वरूप भगवान छो आवो तीर्थंकर भगवाननो उपदेश छे. अमारी भक्ति करो तो कल्याण थई जशे एवो भगवाननो उपदेश होय ज नहि.
सच्चिदानंद प्रभु आत्मा पूर्ण ज्ञान अने सुखथी भरेलो भगवान छे. ते अल्पज्ञ, रागमय के शरीररूप नथी. छतां पण ‘हुं अल्पज्ञ, रागमय छुं’ एम मानतां आत्मा मरणतुल्य थई जाय छे. आम माननारे आखा चैतन्यतत्त्वने मारी नाख्युं छे. आवा अज्ञानीने भगवाननी वाणी सजीवन करे छे. एटले के पोते पोताथी सजीवन थाय तो भगवाननी वाणीए सजीवन कर्यो एम कहेवाय छे. ए भगवाननी वाणीमां एम आव्युं छे के-प्रभु! तुं रजकण अने रागथी भिन्न एवो ज्ञानानंदस्वरूप भगवान छो. दया, दान, भक्ति आदि तथा काम, क्रोधादिना जे (शुभाशुभ) विकल्पो थाय छे ते रागादि स्वरूप होवाथी तेमां चैतन्यनो अंश नथी. माटे तुं ए बधाथी भिन्न छो. व्यवहारथी भले ए