गाथा ३३ ] [ १पप रह्यो छो? राजी थवानुं स्थान तो आनंदनुं धाम एवो तारो नाथ अंदर पडयो छे ने! एमां राजी था ने. बहारनी चीजमां राजी थवामां तो तारा आनंदनो नाश थाय छे.
आ प्रमाणे मुनिओए निश्चय-व्यवहारनयनो विभाग करी स्पष्ट बताव्युं के व्यवहारथी एकपणुं कहेवामां आवे छे तोपण निश्चयथी भगवान आत्मा राग अने शरीरथी भिन्न छे. आवुं ज्यारे सांभळवामां अने जाणवामां आवे छे त्यारे ‘अवतरति न बोधः बोधम् एव अद्य कस्य’ कया पुरुषने ज्ञान तत्काळ यथार्थपणाने न पामे? आवी रीते ज्यारे भेद पाडीने वात समजावी तो कोना आत्मामां ए साचुं ज्ञान न थाय? अर्थात् कोने सम्यग्ज्ञान न थाय? आचार्य कहे छे के अमे भेद पाडीने जीव अने रागनां चोसलां जुदां बताव्यां तो हवे कया पुरुषने (जीवने) आत्मा तत्काळ अनुभवमां न आवे? ज्ञानज्योति आत्मा जडथी भिन्न छे एम जेणे जाणी, निश्चयनयथी व्यवहारनो निषेध कर्यो एवा जीवने ज्ञानानंद प्रभुनो अनुभव केम न थाय? तत्काळ यथार्थ ज्ञान केम न अवतरे? आनंदनी उत्पत्ति केम न थाय? अवश्य थाय ज. आ तो रोकडियो मार्ग छे.
त्रणलोकना नाथ भगवान अरिहंतदेवे चैतन्यमूर्ति आत्माने शरीर तथा रागथी भिन्न बताव्यो छे. तेनो जे अनुभव करे छे ते धर्मी छे. तेनो अवतार सफळ छे. आ सिवायनी बीजी बधी व्रत, दान आदि करोड क्रियाओ करे ते सर्व एकडा विनानां मींडां छे, आत्मा माटे ते लाभकारी नथी. अगियार अंगनुं ज्ञान कर्युं होय के नवपूर्वनी लब्धि प्रगटी होय तो तेथी शुं? एवो परसत्तावलंबी जाणपणानो क्षयोपशम तो अनंत वार कर्यो छे. ए कांई आत्मज्ञान नथी. चैतन्यमूर्ति भगवान आनंदनो नाथ पूर्ण शक्तिनुं आखुं सत्त्व छे. तेने स्पर्शीने जे ज्ञान थाय ते ज्ञान छे अने तेमां भवना अभावना भणकारा वागे छे. जेने अंतरस्पर्श थतां अतीन्द्रिय आनंद आव्यो छे तेणे राग अने आत्माने भिन्न मान्या छे अने ते धर्मी छे. अनंत धर्म-स्वभावनो धरनार एवो धर्मी आत्मा छे. तेनी अंदर द्रष्टि प्रसारतां जेने राग अने शरीरथी आत्मा भिन्न जणाय छे तेने सम्यग्दर्शन थाय छे, भले पछी ते बहारथी दरिद्री होय के सातमी नरकना संयोगमां रहेलो नारकी होय.
नरकमां आहारनो एक कण के पाणीनुं एक बिंदु पण मळतुं नथी. अने जन्म थतां ज एने सोळ रोग होय छे. छतां पण ज्यारे पूर्वना संस्कार याद आवे छे त्यारे एम विचारे छे के-मने संतोए कहेलुं के तुं राग अने शरीरथी भिन्न छे. आ वचन में सांभळेलां पण प्रयोग करेलो नहि. आम विचारी रागनुं लक्ष छोडीने अंतरएकाग्र थाय छे एटले धर्मी थाय छे. त्रीजा नरक सुधी पूर्वना वेरी परमाधामीओ, रूनी गांसडी वाळे तेम शरीरने बांधी, उपरथी धगधगता लोढाना सळियाथी मारे छे. आवी स्थितिमां पण रागथी भिन्न पडीने सम्यग्दर्शन पामी शकाय छे. पूर्वे सांभळ्युं हतुं ते ख्यालमां लई, जेम वीजळी तांबाना सळियामां एकदम उतरी जाय तेम, ते अंदर ज्ञानानंद भगवान