१प६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ बिराजे छे एमां पोतानी पर्यायने ऊंडी उतारी दे छे. बहारमां गमे तेवा प्रतिकूळ संजोगो होय पण तेथी शुं? अंदर पूर्णस्वभावी आत्मा छे ने? जुओ, श्रेणीक राजानो जीव पहेली नरकमां छे. बहारमां पीडाकारी संयोगनो पार नथी. छतां तेमने क्षायिक सम्यग्दर्शन छे अने समये समये तीर्थंकर गोत्रना परमाणुओ बंधाय छे. तेमने अंदर एवुं भान वर्ते छे के-‘हुं तो आनंदनो नाथ सच्चिदानंद भगवान आत्मा छुं.’ भक्तिमां आवे छे ने केः-
समकितीने नरकमां पीडाना संयोगनो पार नथी. छतां अंदर आत्माना आनंदनुं (अंशे) वेदन होवाथी शांति छे. प्रतिकूळ संयोग छे तेथी शुं? मने तो संयोगीभाव पण अडतो नथी, स्पर्शतो नथी एवो अनुभव अंदर वर्ततो होवाथी ज्ञानी नरकमां पण सुखने ज वेदे छे.
श्री कुंदकुंदाचार्य, अमृतचंद्राचार्य आदि संतो कहे छे के आनंदनो नाथ अंदर बिराजे छे. आत्माराम-आत्मा रूपी बगीचो अंदर छे. तेमां जरा प्रवेश तो कर! शरीर अने रागथी भगवान आत्मा भिन्न छे. आवी वात जेणे रुचिपूर्वक सांभळी तेने आत्मा केम न जणाय? जणाय ज. खरेखर राग छे ते पण शरीर छे. आ शास्त्रनी ६८ मी गाथामां आवे छे के कारण जेवां कार्य होय छे. तेथी जेम जवमांथी जव ज थाय छे तेम गुणस्थान आदि भावो अचेतन छे, केमके तेओ पुद्गलनुं कार्य छे. पुद्गल जड कर्म कारण छे तेनाथी गुणस्थानना भेद पडे छे. तेथी पुद्गलनुं कार्य होवाथी तेओ अचेतन पुद्गल छे. आवुं (वस्तुस्वरूप) सांभळीने कोने आत्मज्ञान न थाय? अहो! आचार्यदेव अति प्रसन्नताथी कहे छे के-भाई! आ तारो आत्मज्ञाननो काळ छे. आदि पुराणमां आवे छे के ऋषभदेव भगवानने पूर्वना भवमां मुनिराज उपदेश आपे छे के ‘आ तारो सम्यग्दर्शन पामवानो काळ छे. तारी काळलब्धि पाकी गई छे, सम्यग्दर्शन ग्रहण कर. एम अहीं कहे छे के तुं आनंदस्वरूप आत्मा छे ने! हुं राग छुं, शरीर छुं एवुं लक्ष करीने ज्यां पडयो छे त्यांथी द्रष्टि हठावी लक्षने फेरवी नाख. हुं ज्ञायक छुं एम लक्ष कर, आ पुरुषार्थ छे अने एनुं फळ ज्ञान अने आनंद छे.
हवे कहे छे रागथी भिन्न आत्मानी रुचि थतां केवो थईने भगवान आत्मा जणाय छे? ‘स्वरसरभसकृष्टः प्रस्फुटन् एकः एव’ पोताना निजरसना वेगथी खेंचाई प्रगट थतुं एकस्वरूप थईने. आत्मा आनंदनो रसकंद अंदर पडयो छे. तेनी रुचि करतां तरत ज ते रागथी भिन्न, पोताना निजरसथी प्रगट थाय छे. अज्ञानमां जेम रागनो वेग हतो ते हवे ज्ञान थतां आनंदनो वेग आवे छे. रागना वेगथी भिन्न पडीने ज्यां द्रष्टि ज्ञायक उपर पडी त्यां तत्काळ ज्ञानरसनो, आनंदरसनो, शांतरसनो, वीतराग अकषायरसनो वेग