गाथा ३३ ] [ १प७ उछळे छे. अहाहा! पर्यायमां आनंदनो उभरसो आवे छे. दूधनो उभरो तो खाली (पोलो) होय छे, ज्यारे आ तो नक्कर उभरो छे.
पुण्य-पापना भावने पोताना मानीने एकला ज्ञान अने आनंदना रसथी भरपूर आत्माने अनेकरूप मान्यो हतो. हवे भगवान आत्मानो निजरस जे आनंद तेनो उग्रपणे पर्यायमां वेग खेंचाईने जोरथी आवतां एकस्वरूपे प्रगट थाय छे. अहाहा! जेवो आनंदरसकंद स्वभावे छे अंतर्द्रष्टि थतां तेवो तरत ज पर्यायमां आनंद प्रगट थाय छे. ज्ञातास्वभाव तो त्रिकाळ एकरूप ज छे, ए तो विकाररूपे छे ज नहि. आवा ज्ञाताद्रष्टा-स्वभावनो अनुभव थतां पर्यायमां आनंदनो अनुभव थाय छे. आनुं नाम सम्यग्दर्शन अने धर्म छे. बाकी बधुं थोथेथोथां छे, नकामुं छे. आत्मा शुं छे एनी खबर न मळे अने मंडी पडे व्रत, तप अने नियम आदि करवा. पण ए तो बधुं वर वगरनी जान जेवुं छे. जेम वर विना कोई जान काढे तो ए जान न कहेवाय, ए तो माणसोनां टोळां कहेवाय. एम भगवान आनंदनो नाथ द्रष्टिमां लीधो नहि अने व्रत, तप आदि करे तो ए बधां थोथां छे, रागनां टोळां छे; एमां कांई धर्म हाथ न आवे. भाई! हुं आवो छुं एम प्रतीतिमां तो ले.
दया, दान, व्रतादिनो राग अने आत्मा वच्चे अत्यंत अभाव छे. आगममां चार अभाव-१. प्रागभाव, र. प्रध्वंसाभाव, ३. अन्योन्य अभाव अने ४. अत्यंताभाव (न्यायशास्त्रमां) कहेला छे. ज्यारे आत्मा अने राग वच्चेनो अत्यंत अभाव अध्यात्मनो छे. अहाहा! शुं वीतरागमार्गनी गंभीरता अने ऊंडप! निश्चय- व्यवहारनयना विभाग वडे आत्मा अने परनो, आत्मा अने शरीरनो तथा आत्मा अने रागनो अत्यंत भेद ज्ञानीओए बताव्यो छे. ते जाणीने एवो कोण आत्मा होय के जेने भेदज्ञान न थाय? अहीं पुरुषार्थनी उग्रतानुं जोर बताव्युं छे. वीर्यनो वेग स्वसन्मुख करवानी वात छे.
आत्मामां वीर्य नामनो गुण छे. स्वरूपनी रचना करवी ए एनुं कार्य छे. रागने रचवो के देहनी क्रिया करवी ए एनुं स्वरूप त्रणकाळमां नथी. आवा परिपूर्ण वीर्यगुणथी-पुरुषार्थगुणथी ठसोठस भगवान आत्मा भरेलो छे. ते गुणनुं कार्य आनंद आदि शुद्ध निर्मळ पर्यायने रचवानुं छे. रागने रचे ए तो नपुंसक्ता छे, ए आत्मानुं वीर्य नहि. राग ए स्वरूपनी चीज नथी. वीर्यगुणने धरनार भगवान आत्मानुं ग्रहण करतां ते वीर्य निर्मळ पर्यायने ज रचे छे. व्यवहारने (रागने) रचे एवुं तेना स्वरूपमां ज नथी. निमित्तथी थाय ए वात तो कयांय दूर रही गई. ए मान्यता तो अज्ञान छे. इष्टोपदेशनी ३प मी गाथामां आवे छे के बधां निमित्तो धर्मास्तिकायवत् उदासीन छे. निमित्त प्रेरक होय के स्थिर, परने माटे तो ते धर्मास्तिकायवत् उदासीन ज छे. धजा फरफर हाले छे