Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१प८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ एमां पवन प्रेरक निमित्त छे, छतां धर्मास्तिकायवत् उदासीन छे. धजा पोते पोताथी ज आमतेम फरफर थाय छे, पवनथी नहि, पवन तो निमित्तमात्र छे. आवुं सत्य समजवामां पण वांधा होय ते सत्य आचरे कयारे?

अहीं कहे छे के एवो कोण पुरुष छे जेने भेदज्ञान न थाय? थाय ज; कारण के ज्यारे ज्ञान पोताना स्वरसथी पोते पोतानुं स्वरूप जाणे त्यारे अवश्य पोताना आत्माने परथी भिन्न जणावे छे. राग अने शरीरथी भिन्न पडी ज्यारे द्रष्टि एक ज्ञायकमात्रमां प्रसरे छे तो अवश्य भेदज्ञान प्रगट थाय छे. कोई दीर्घसंसारी होय तो तेनी अहीं वात नथी.

आ प्रमाणे, जे अप्रतिबुद्धे एम कह्युं हतुं के “अमारो तो ए निश्चय छे के देह छे ते ज आत्मा छे, ” तेनुं निराकरण कर्युं. अज्ञानी जे चीजने देखे छे ते चीजने पोतानी माने छे. ज्ञान शरीर, राग, आदि ज्ञेयने जाणे छे छतां ते शरीरादि ज्ञेय ज्ञाननी चीज नथी. ज्ञाननी चीज तो ज्ञान ज छे. आवी वात कठण पडे पण शुं थाय? वस्तुस्वरूप ज आवुं छे. वीतराग त्रिलोकीनाथ जिनेश्वरदेव इन्द्रो अने गणधरोनी वच्चे दिव्यध्वनि द्वारा आवो ज उपदेश आपता हता. अने ए ज वात संतोए प्रसिद्ध करी छे. अहो! ए संतोनी वाणी अमृतनी वर्षा करनारी छे, तेनुं कर्णरूपी अंजलि वडे भव्य जीवो पान करो!

[प्रवचन नं. ७४, ७प, ७६. * दिनांक १२-२-७६ थी १४-२-७६]