Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ ‘हुं एक ज्ञानानंदस्वरूप अमृतनो सागर प्रभु ज्ञाता द्रष्टा छुं, अने जगत ज्ञेय-द्रश्य छे. पण जगत मारामां नथी के हुं जगतमां नथी. अहाहा! मारी चीजमां पुण्य-पापना भाव तो नथी पण वर्तमान अल्पज्ञता पण मारी पूर्ण चीजमां नथी.’ आम जेने अंतरमां चिदात्मस्वरूपना भानपूर्वक भेदज्ञान-आत्मज्ञान प्रगट थयुं छे अने एनी प्रतीति थई छे ते सम्यग्द्रष्टि थयो छे. तेने धर्मनी शरुआत थई छे. जेम आंखमां पडळ होय ते नीकळी जतां निधान नजरे पडे छे तेम रागनी एक्ताबुद्धिनां पडळ दूर थतां आत्मा जेवो ज्ञानानंदस्वरूप छे तेवो नजरे पडे छे, अनुभवमां आवे छे. आवो अनुभव जेने थयो छे ते हवे प्रश्न करे छे के-पच्चकखाण शी रीते थाय? रागथी भिन्न आत्मानुं भान तो थयुं छे पण हजु अस्थिरतानो राग छे तेनो त्याग शी रीते थाय? आम पूछवामां आवतां तेना उत्तररूपे आ गाथा कहे छेः-

* गाथा ३४ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘आ भगवान ज्ञाताद्रव्य’-जुओ ‘भगवान’ थी उपाडयुं. भगवानस्वरूप ज आत्मा छे. कयारे? अत्यारे अने त्रणेकाळ. जो अत्यारे भगवानस्वरूप न होय तो पर्यायमां भगवानपणुं कयांथी आवशे? शुं ते कयांय बहारथी आवे छे? (ना). स्वभावथी भगवान-स्वरूप छे ते पर्यायमां ‘एनलार्ज’ प्रगट थाय छे. जो अत्यारे भगवानस्वरूप न होय तो कयारेय पण भगवान थई शके नहि. ३१-३२ गाथामां पण ‘भगवान ज्ञानस्वभाव’ एम आवी गयुं छे. अहीं संस्कृत टीकामां भगवत् शब्द पडयो छे. भग नाम लक्ष्मी वत् एटले वाळो. आत्मा अनंत-अनंत ज्ञान अने आनंदनी लक्ष्मीवाळो परिपूर्ण भगवान छे. ‘आ भगवान ज्ञातृद्रव्य’ एम कहीने तेनुं प्रत्यक्षपणुं कह्युं छे, कारण के ज्ञानीने भगवान आत्मानुं ज्ञानमां प्रत्यक्ष वेदन थई गयुं छे, अनुभव थई गयो छे.

‘आ भगवान ज्ञातृद्रव्य’-एम लीधुं छे. कारण के जे शिष्ये प्रश्न पूछयो छे तेने ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं प्रत्यक्ष भान थयुं छे. सच्चिदानंद प्रभु पूर्ण आनंदनो नाथ सिद्ध समान आ आत्मा बाह्य लक्ष्मीवाळो नथी. बाह्य लक्ष्मी तो जड छे, अने तेने जे पोतानी माने ए पण जड छे. जेम भेंसनो पति पाडो होय छे तेम जडनो पति पण जड छे. अहीं तो चैतन्यलक्ष्मीना स्वामीनी वात छे. चक्रवर्तीने छ खंडनुं राज्य अने ९६ हजार राणीओ वगेरे वैभव होय छे. छतां सम्यग्दर्शन होवाथी ए बाह्य वैभवनो हुं स्वामी छुं एम ते मानता नथी. ‘हुं तो अनंत अनंत ज्ञान अने आनंदनी स्वरूपलक्ष्मीथी भरेलो भगवान छुं’-एम स्वरूपलक्ष्मीनुं स्वामीपणुं माने छे, केमके तेमने यथार्थ श्रद्धान-ज्ञान थयेलां छे.

भगवान आत्मा ज्ञाता छे, जाणनार सूर्य छे, ज्ञानना प्रकाशथी भरपूर छे. आवुं जे ज्ञाताद्रव्य (आत्मा) ते अन्यद्रव्यना निमित्तथी थता विकारीभावपणे थाय एवो एनो