गाथा ३४ ] [ १६३ स्वभाव नथी, केमके ज्ञाता-द्रष्टा वस्तुनो स्वभाव तो जाणवुं, देखवुं अने आनंद छे. तेथी ते ज्ञाता-द्रष्टा-स्वभाव विकारीभावमां केम व्याप्त थाय? जाणन-देखन स्वभाव, अन्यद्रव्यना स्वभावथी थता जे अन्य समस्त भावो-चाहे ते व्यवहाररत्नत्रयनो राग केम न होय-एमां व्यापवा समर्थ नथी. तेमां व्यापे एवुं आत्मानुं स्वरूप ज नथी. भाई! अनंत आनंदने आपनारो आ मार्ग बहु सूक्ष्म छे. अनंत अनंत शांति, आह्लाद अने स्वरूपनी रचना करनार अनंत वीर्य जेनाथी प्रगट थाय ते उपाय कोई अलौकिक अद्भुत छे. आवो मार्ग समय काढी जाणवो जोईए. हमणां नहि जाणे तो कयारे जाणशे?
अहाहा! अनंत आनंद, अनंत शान्ति आदि एक एक एम अनंत गुणनो समाज अंदर छे. अनंतगुणरूपी साम्राज्यनो स्वामी आत्मा छे. ए मूळ वस्तु आत्मा प्रत्यक्ष छे, पण पर्यायबुद्धिथी-रागबुद्धिथी ते आखी वस्तु आवरणमां छे. अहीं पहेलेथी ज उपाडयुं छे के-‘आ भगवान ज्ञाताद्रव्य’, एमां आत्मा प्रत्यक्ष प्रभु छे एम बताव्युं छे. सम्यग्ज्ञानरूपी नेत्रमां प्रभु प्रत्यक्ष देखाय एवो ते आत्मा छे. आवो आत्मा, पोताना स्वभाव वडे, अन्यद्रव्यना स्वभावथी थता अर्थात् कर्मना-निमित्तना संगे थता विभाव भावोमां व्याप्त छे ज नहि. आ ज्ञानस्वभावी आत्मा रागना विकल्पपणे- व्यवहार-रत्नत्रयना विकल्पपणे व्यापीने रहेवाने-थवाने लायक ज नथी. विकारपणे थवुं एवो आत्मानो स्वभाव ज नथी. आम रागने परपणे जाणी स्वरूपमां ठरवुं ते प्रत्याख्यान छे.
प्रश्नः– अमे तो मानीए छीए के भगवाननां दर्शन करीए, जात्रा करीए एटले धर्म थाय. तमे तो ना पाडो छो?
उत्तरः– भाई! भगवान पोते अंदर बिराजे छे तेने जाणवाथी, देखवाथी धर्म थाय छे. परंतु पर भगवानने देखवाथी धर्म न थाय, शुभराग थाय. आ भगवान आत्मा ज्ञाता-द्रष्टा छे. ते अन्यद्रव्यना स्वभावथी उत्पन्न थता विभावोमां-दया, दान, व्रत आदि विकल्पोमां पोताना स्वभाव वडे व्याप्त थतो नथी. तेथी तेने परपणे जाणीने ज्ञानी त्यागे छे. एटले के अंदर स्वभावमां स्थिर थाय छे एटले तेने त्यागे छे एम कहेवामां आवे छे. विकारीभाव आत्माना स्वभाव वडे व्याप्त थवाने लायक नथी. तेथी तेने परपणे जाणवा ए ज तेनो त्याग कर्यो एम कहेवाय छे. आ धर्म अने धर्मनी रीत छे.
हुं एक ज्ञाता-द्रष्टास्वभाववाळो छुं. जे अन्यद्रव्यना निमित्तथी विभावपरिणामो थाय छे ते मारा स्वभावपणे थवाने लायक नथी. आम स्वभाव अने रागने भिन्न जाणवा ते रागनो त्याग छे. आ राग छे ते हुं नहि. ए भिन्न रागपणे हुं थवाने लायक नथी अने राग मारा स्वभावपणे थवाने लायक नथी. आम जे पहेलां जाणे छे ते ज पछी त्यागे छे. जे ज्ञानमां जणायुं के आ राग छे ते मारा स्वभाव वडे व्याप्त थतो नथी अने मारो पण स्वभाव नथी के हुं रागपणे थाउं ए जाणपणुं ए पच्चकखाण छे, सामायिक छे,