Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ केमके एम जाणनार रागथी खसीने स्वरूपमां ठरे छे. सामायिक एटले समता अने समता एटले वीतराग परिणामनो लाभ. वीतराग परिणामनो लाभ कयारे थाय? के ज्यारे वीतराग-स्वरूप भगवान पोते छे तेनो आश्रय ले त्यारे वीतराग परिणति थाय छे, अने एने सामायिक कहे छे. (तेवी रीते, जेम चणाने पाणीमां पलाळी-डूबाडी राखे त्यारे पोढो थाय छे तेम आत्मा आनंदनो नाथ प्रभु छे तेने पोषवो-एटले आनंदना सागरमां एकाकार डूबाडवो तेने प्रौषध कहे छे.) आवी वस्तु जाणे नहि अने बहारना अनेक क्रियाकांड करे तेथी शुं? ए बधां थोथेथोथां छे.

‘जे पहेलां जाणे छे ते ज पछी त्यागे छे, बीजो कोई त्यागनार नथी.’ एटले शुं? के ज्ञानस्वभावमां विभाव-विकल्प व्यापवाने लायक नथी. आम जे जाणनारे जाण्युं ते ज जाणनार विभावने छोडे छे अर्थात् ते-रूपे परिणमतो नथी. तेने रागनो त्यागनार कहे छे. जाणनार जुदो अने त्यागनार जुदो एम नथी. तेथी जे जाणे छे ते ज पछी त्यागे छे. मारा ज्ञानस्वभावमां राग व्याप्त थाय एवो रागनो स्वभाव नथी अने मारो पण स्वभाव एवो नथी के राग मारामां व्यापे. आम ज्यां रागने भिन्न परपणे जाण्यो त्यां तेना तरफनुं लक्ष रह्युं नहि अने स्वभावमां ज द्रष्टि स्थिर थई. आने पच्चकखाण एटले जाणनारे रागनो त्याग कर्यो एम कहेवामां आवे छे. बाकी आनो पच्चकखाण अने तेनो पच्चकखाण एम विकल्पो करे ए बधो संसार छे.

अज्ञानी दया-दान-भक्तिना भावमां धर्म मानी अनादिथी ८४ लाखना अवतारमां रखडी दुःखी थई रह्यो छे. तेने सन्निपात जेवो रोग लाग्यो छे. जेम कोईने सन्निपात थयो होय ते बीजा घणा रोगथी पीडातो होय तोपण खडखडाट हसे छे. शुं ते खरेखर सुखी छे के ते दांत काढी हसे छे? ना. एने दुःखनुं भान नथी तेथी हसे छे. तेम अज्ञानी कांईक अनुकूळ संयोगो मळतां पोताने सुखी माने छे. एनुं सुख सन्निपातना रोगी जेवुं छे. भाई! सुख तो आत्मामां छे. भगवान आत्मा सच्चिदानंदस्वरूप छे. सत् नाम त्रिकाळ, चित् नाम चैतन्य अने आनंदस्वरूप भगवान आत्मा छे. आवा आत्माने जे अंतरंगमां स्पर्शीने जाणे छे तेने आनंद थाय छे, सुख थाय छे. ए जाणनार एम जाणे छे के हुं तो स्वभावथी देखवा-जाणवावाळो छुं. पुण्य- पापना भाव मारा स्वभावपणे नहि थता होवाथी परभाव छे. आम तेने परपणे जाणीने त्यागे छे, एटले के त्यांथी खसीने स्वरूपमां ठरे छे. तेथी जे पहेलां जाणे छे ते ज पछी त्यागे छे एम कह्युं छे. आवुं स्वरूप जाणे नहि अने व्रत, तप आदि बाह्य त्याग करवा मंडी पडे ए कांई पच्चकखाण नथी.

भाई! प्रत्याख्यान एटले चारित्र कोने कहेवाय एनी वात चाले छे. सम्यग्दर्शन अने पछी सम्यक्चारित्र ए अलौकिक चीज छे. सम्यग्दर्शन धर्मनुं मूळ छे तो सम्यक्चारित्र