Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ क्षेत्रमां बीजे कयां छे? अमृतना सागर उछाळ्‌या छे! अहो! मुनिवरोए जगतने अमृतनो सागर प्रत्यक्ष बताव्यो छे!!

भाई! परवस्तुनुं ग्रहण-त्याग आत्मामां छे ज नहि. आत्मामां त्यागउपादान- शून्यत्व नामनी शक्ति छे. ते वडे परवस्तुने ग्रहे के छोडे ए आत्मामां छे ज नहि. कपडां, स्त्री, पुत्र, परिवार, इत्यादि ग्रहे अने छोडे एवो आत्मामां गुण छे ज नहि. परवस्तु तो स्वतंत्र जगतनी चीज छे. शरीर, वाणी, पैसा, धूळ, बायडी, छोकरां इत्यादि जीवे ग्रह्यांय नथी अने छोडयांय नथी. अहीं कहे छे के समक्तिीने जे अस्थिरतानुं रागरूप परिणमन छे ते रागरूपे थईने रहेवानुं मारुं स्वरूप नथी एम जाणी अंदर स्वरूपमां स्थिर थयो त्यारे ए स्वरूपस्थिरताना काळे रागनी उत्पत्ति ज थई नहि तेने रागनो त्याग कर्यो एम नाममात्र कथन कहेवामां आवे छे. परमार्थे रागना त्यागनो र्क्ता आत्मा नथी अर्थात् परभावना त्यागर्क्तापणानुं नाम पण आत्माने नथी.

अहाहा! हुं शुद्ध चिद्रूप ज्ञाता-द्रष्टामात्र छुं एवुं जेने अंतरमां भान थयुं ते स्वमां स्वपणे रहीने ज्यारे परभाव-रागादिने परपणे जाणे त्यारे एने स्वमां रहेवानो काळ छे, रागना अभावस्वभावे परिणमवानो काळ छे, प्रत्याख्याननो काळ छे. आ स्वरूप-स्थिरताना काळे ज्ञाने जाणी लीधुं के राग पर छे ए रागनो त्याग छे. आ रागनो त्याग पण जो नाममात्र कथन छे-तो आहार-पाणी छोडवां अने बायडी, छोकरां, लुगडां इत्यादि छोडवां ए तो कयांय दूर रही गयुं. ए बाह्य वस्तुनो त्याग मानवो ए तो मिथ्यात्व छे.

अंदर पूर्णानंदनो नाथ भगवानस्वरूपे पोते विराजे छे. पण पामरने प्रभुनी प्रतीति केवी रीते आवे? पामरने ‘हुं पोते इश्वर छुं’ एम प्रतीति केम आवे? भाई! तुं पर्यायमां पामर भले हो, पण वस्तुपणे तुं पामर नथी, भगवान पूर्णानंदनो नाथ छे. अहाहा! जैनना मुनि तो अंदरमां विकल्पनी लागणी विनाना अने बहारमां कपडां विनाना नग्न होय छे. कपडां राखीने जे मुनिपणुं माने, मनावे छे ते मिथ्याद्रष्टि- अज्ञानी निगोदगामी छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे कह्युं छे के वस्त्रनो एक धागो पण राखीने जे मुनिपणुं माने, मनावे अने एवी मान्यताने रूडी जाणे ते निगोदगामी छे. मिथ्या मान्यताना फळमां एक बे भवे ए निगोद जशे. एवी वात आकरी पडे, पण बापु! आ तो मोटी भूल छे. एमां नवे तत्त्वनी भूल छे. वस्त्रनो विकल्प ए तो तीव्र आस्रवभाव छे. तेने बदले त्यां मुनिपणुं-संवर, निर्जरा मानवां ए बधां तत्त्वनी भूल छे. मूळमां भूल छे, भाई! प्रवचनसारमां आवे छे के मुनिनुं जन्म्या प्रमाणे रूप भगवान त्रिलोकनाथे भाळ्‌युं छे. त्रणलोकना नाथ देवाधिदेव अरिहंतदेवे आवो धोध मार्ग कह्यो छे. जे शास्त्रमां वस्त्रसहित मुनिपणुं कह्युं होय ते शास्त्र साचां नथी अने ए साधु पण साचा नथी.

अनंत अनंत सामर्थ्यथी परिपूर्ण अनंत शक्तिओ जेमां उछळी रही छे एवो