Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३४ ] [ १६७ अनंतस्वभावनो सागर स्वरूपसागर भगवान आत्मा छे. जे जीवे आवा आत्मानो अंतःस्पर्श करी अनुभव कर्यो छे ते समकिती धर्मी छे. आवा धर्मीने जे पुण्य-पापना विकल्पो-अस्थिरतानो राग आवे छे तेनुं पच्चकखाण केम थाय एम प्रश्न छे. तो कहे छे के ज्ञानमां जणातो ए राग ज्ञानमां व्यापतो नथी, ए तो भगवान चैतन्यनी स्वरूपसंपदाथी भिन्न रहे छे. अस्थिरतानो राग अने ज्ञानने भिन्नता छे. तेथी राग तो परपणे छे आम जेणे जाण्युं छे ते जाणनारो हवे रागमां जोडातो नथी ए पच्चकखाण छे. रागमां जोडातो नथी ए तो नास्तिथी कथन छे. खरेखर तो जे काळे ज्ञान ज्ञानमां ठरे छे ए स्वरूप-आचरणना काळे राग उत्पन्न ज थतो नथी एने रागनो त्याग कर्यो एम नाममात्र कथनथी कहेवामां आवे छे. जैन परमेश्वर वीतरागदेवनो आवो मार्ग छे, भाई. महाविदेहक्षेत्रमां सीमंधर भगवान हाल साक्षात् बिराजे छे. तेओ पण इन्द्रो अने गणधरोनी वच्चे सभामां आ ज वात करे छे.

आत्माने रागना त्यागना र्क्तापणानुं नाम ते कथनमात्र छे. परमार्थथी जोवामां आवे तो एटले के वास्तविकपणे जेम छे तेम जोवामां आवे तो परभावना त्यागर्क्तापणानुं नाम पोताने नथी, कारण के राग छोडयो एवुं आत्माना स्वरूपमां छे ज नहि. अहाहा! ज्यां स्वरूपमां ठर्यो त्यां राग ज थयो नहीं तो पछी राग छोडयो एम कयांथी आवे? रागनो त्याग कर्यो एनो अर्थ शुं? शुं प्रत्याख्यानना काळे, चारित्रना काळे रागनी हयाती छे? शुं ज्ञान ज्ञानमां ठरे छे ते काळे रागनी हयाती छे? ना. ते काळे रागनो अभाव छे. परंतु पूर्वे पर्यायमां राग हतो ते वर्तमानमां न थयो एम देखीने नाममात्रथी कहेवाय छे के आत्माए रागनो त्याग कर्यो. अद्भुत वात छे! आ तो समयसार छे, बापु! परमात्मानी दिव्यध्वनि छे! आ गणधरो अने संतोनी वाणी समजवा माटे घणो पुरुषार्थ जोईए.

हवे कहे छे-‘पोते तो ए नामथी रहित छे, कारण के ज्ञानस्वभावथी पोते छूटयो नथी.’ आत्मा तो परभावना त्यागर्क्तापणाना नामथी रहित छे केमके पोते तो ज्ञान-स्वभावपणे ज रह्यो छे, ज्ञानथी छूटयो ज नथी. माटे ज्ञान ज प्रत्याख्यान छे. ज्ञान ज्ञानमां थंभ्युं-स्थिर थयुं ए ज प्रत्याख्यान छे एम अनुभव करवो.

* गाथा ३४ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

आत्माए परभावनो त्याग कर्यो, रागनो त्याग कर्यो एम कहेवुं ए नाममात्र छे. पोते तो ज्ञानस्वभावी चैतन्यप्रकाशनो पुंज एकला ज्ञायकभाव-स्वभाववाळुं तत्त्व छे, स्वपरप्रकाशकस्वभावी छे. आवा स्वतत्त्वने स्व जाण्युं अने परभावने पर तरीके जाण्यो त्यारे परभावने ग्रहण कर्यो नहि, रागने पकडयो नहि एने एनो त्याग कर्यो एम कहेवाय छे. रागमां जे अस्थिर थतो हतो ते थयो नहि तेने त्याग कर्यो एम कहेवामां आवे छे.