१६८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ सत्यने सत्य तरीके राखीने प्रसिद्ध करवा-परम सत्यनी प्रतीति कराववा केवी गजब शैली लीधी छे ए तो जुओ!
परद्रव्यने पर तरीके जाण्युं, पछी परभावनुं ग्रहण न थयुं ते ज एनो त्याग छे. रागना जोडाणथी ज्ञानमां जे अस्थिरता हती ते ज्ञान, ज्ञानस्वरूपी भगवान आत्मामां ठरतां उत्पन्न न थई तेने प्रत्याख्यान कहे छे. माटे स्थिर थयेलुं ज्ञान ए ज प्रत्याख्यान छे. ज्ञान सिवाय बीजो कोई भाव प्रत्याख्यानमां नथी. जाणनार चैतन्यसूर्यमां ज्ञान थंभी जाय-स्थिर थई जाय ए ज प्रत्याख्यान छे.
[प्रवचन नं. ७७-७८ * दिनांक १प-२-७६ थी १६-२-७६]