Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 35.

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गाथा–३प

अथ ज्ञातुः प्रत्याख्याने को द्रष्टान्त इत्यत आह–

जह णाम को वि पुरिसो परदव्वमिणं ति जाणिदुं चयदि।
तह सव्वे परभावे णाऊण विमुंचदे णाणी।। ३५ ।।
यथा नाम कोऽपि पुरुषः परद्रव्यमिदमिति ज्ञात्वा त्यजति।
तथा सर्वान् परभावान् ज्ञात्वा विमुञ्चति ज्ञानी।। ३५ ।।

हवे पूछे छे के ज्ञातानुं प्रत्याख्यान ज्ञान ज कह्युं तेनुं द्रष्टांत शुं छे? तेना उत्तररूप द्रष्टांत-द्रार्ष्टांतनी गाथा कहे छेः-

आ पारकुं एम जाणीने परद्रव्यने को नर तजे,
त्यम पारका सौ जाणीने परभाव ज्ञानी परित्यजे. ३प.

गाथार्थः– [यथा नाम] जेम लोकमां [कः अपि पुरुषः] कोई पुरुष [परद्रव्यम् इदम् इति ज्ञात्वा] परवस्तुने ‘आ परवस्तु छे’ एम जाणे त्यारे एवुं जाणीने [त्यजति] परवस्तुने त्यागे छे, [तथा] तेवी रीते [ज्ञानी] ज्ञानी [सर्वान्] सर्व [परभावान्] परद्रव्योना भावोने [ज्ञात्वा] ‘आ परभाव छे’ एम जाणीने [विमुञ्चति] तेमने छोडे छे.

टीकाः– जेम-कोइ पुरुष धोबीना घरेथी भ्रमथी बीजानुं वस्त्र लावी,पोतानुं जाणी ओढीने सूतो छे ने पोतानी मेळे अज्ञानी (-आ वस्त्र बीजानुं छे एवा ज्ञान विनानो) थई रह्यो छे; ज्यारे बीजो ते वस्त्रनो खूणो पकडी, खेंची तेने नग्न करे छे अने कहे छे के ‘तुं शीघ्र जाग, सावधान था, आ मारुं वस्त्र बदलामां आवी गयुं छे ते मारुं मने दे’, त्यारे वारंवार कहेलुं ए वाकय सांभळतो ते, (ए वस्त्रनां) सर्व चिह्नोथी सारी रीते परीक्षा करीने, ‘जरूर आ वस्त्र पारकुं ज छे’ एम जाणीने, ज्ञानी थयो थको, ते (परना) वस्त्रने जलदी त्यागे छे. तेवी रीते-ज्ञाता पण भ्रमथी परद्रव्योना भावोने ग्रहण करी, पोताना जाणी, पोतामां एकरूप करीने सूतो छे ने पोतानी मेळे अज्ञानी थई रह्यो छे; ज्यारे श्री गुरु परभावनो विवेक (भेदज्ञान) करी तेने एक आत्मभावरूप करे अने कहे के ‘तुं शीघ्र जाग, सावधान था, आ तारो आत्मा खरेखर एक (ज्ञानमात्र) ज छे, (अन्य सर्व परद्रव्यना भावो छे), ’ त्यारे वारंवार कहेलुं ए आगमनुं वाकय सांभळतो ते, समस्त (स्व-परनां) चिह्नोथी सारी रीते परीक्षा करीने,