Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१७० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२

(मालिनी)
अवतरति न यावद् वृत्तिमत्यन्तवेगा–
दनवमपरभावत्यागद्रष्टान्तद्रष्टिः।
झटिति सकलभावैरन्यदीयैर्विमुक्ता
स्वयमियमनुभूतिस्तावदाविर्बभूव।। २९ ।।

____________________________________________________________ ‘जरूर आ परभावो ज छे’ (हुं एक ज्ञानमात्र ज छुं)ॐ एम जाणीने, ज्ञानी थयो थको, सर्व परभावोने तत्काळ छोडे छे.

भावार्थः– ज्यां सुधी परवस्तुने भूलथी पोतानी जाणे त्यां सुधी ज ममत्व

रहे; अने ज्यारे यथार्थ ज्ञान थवाथी परवस्तु ने पारकी जाणे त्यारे बीजानी वस्तुमां ममत्व शानुं रहे? अर्थात् न रहे ए प्रसिद्ध छे.

हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-

श्लोकार्थः– [अपर–भाव–त्याग–द्रष्टान्त–द्रष्टिः] आ परभावना त्यागना द्रष्टान्तनी द्रष्टि, [अनवम् अत्यन्त–वेगात् यावत् वृत्तिम् न अवतरति] जूनी न थाय ए रीते अत्यंत वेगथी ज्यां सुधी प्रवृत्तिने पामे नहि, [तावत्] ते पहेलां ज [झटिति] तत्काळ [सकल–भावैः अन्यदीयैः विमुक्ता] सकल अन्यभावोथी रहित [स्वयम् इयम् अनुभूतिः] पोते ज आ अनुभूति तो [आविर्बभूव] प्रगट थई गई.

भावार्थः– आ परभावना त्यागनुं द्रष्टांत कह्युं ते पर द्रष्टि पडे ते पहेलां समस्त अन्यभावोथी रहित पोताना स्वरूपनुं अनुभवन तो तत्काळ थई गयुं; कारण के ए प्रसिद्ध छे के वस्तुने परनी जाण्या पछी ममत्व रहेतुं नथी. २९. उत्थानिकाः–

हवे पूछे छे के ज्ञातानुं प्रत्याख्यान ज्ञान ज कह्युं अर्थात् ज्ञातास्वभावी भगवान आत्मानुं प्रत्याख्यान-चारित्र-रागनो त्याग ए ज्ञान ज कह्युं तो तेनुं द्रष्टांत शुं छे? ज्ञान ज्ञानमां ठरे ए जाणनार आ आत्मानुं प्रत्याख्यान छे. ज्ञानस्वरूपी भगवान आत्मानुं ज्ञान, तेनी प्रतीति अने तेनो अनुभव करी तेमां स्थिर थवुं एटले के रागथी भिन्न पडीने ज्यां ज्ञायकनो अनुभव करे त्यां ज्ञान आत्मामां स्थिर थई जाय ए वीतराग चारित्र-प्रत्याख्यान छे. आवुं प्रत्याख्यान ए एक ज जीवने र्क्तव्य छे. बीजुं शुं करवुं छे, भाई? शुं आ करवा जेवुं नथी? वस्तुनो जेवो ज्ञानस्वभाव छे तेवी ज्ञान- परिणति प्रगट करीने एमां ठरवुं ते एक ज करवा लायक छे.

चैतन्यस्वभावनुं ज्ञान (स्वसंवेदनज्ञान) थवुं-आत्मज्ञान थवुं ए सम्यग्ज्ञान छे, तेनी प्रतीति थवी के शुद्ध चैतन्यघन वस्तु आत्मा आ ज छे ते सम्यग्दर्शन छे, तथा