Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 452 of 4199

 

गाथा ३प ] [ १७१ विकल्पथी रहित थईने शुद्ध परिणमन थवुं ते चारित्र छे. शुद्धतानुं परिणमन अशुद्धताना नाश विना थाय नहि अने अशुद्धतानो नाश शुद्धताना परिणमन विना थाय नहि. वस्तु छे ए तो चैतन्यस्वभावी वीतरागतानी मूर्ति छे. छहढालामां पण आवे छे के आत्मा वीतराग-विज्ञानस्वरूप ज छे. एनो अनुभव करतां पर्यायमां वीतराग-विज्ञानता प्रगट थाय छे, अने तेमां विशेष विशेष स्थिर थतां चारित्र थाय छे. जे ज्ञान अस्थिरताने लीधे रागमां जोडातुं हतुं ते त्यांथी खसीने अंदर वीतराग-विज्ञानस्वभावमां ठरे छे तेने चारित्र कहे छे.

वीतराग-विज्ञानस्वरूप चैतन्यपिंडनी द्रष्टि थतां वीतराग-विज्ञाननो अशं पर्यायमां आवे छे. अने ए वीतराग-विज्ञाननी वधारे पुष्टि-वृद्धि थतां पच्चकखाण थाय छे. परंतु मूढ अज्ञानी जीव आ अंतरना आचरणने जाणतो नथी. लोकोने आगमनी- बहारनी पद्धति ख्यालमां आवे छे, परंतु अध्यात्मनो व्यवहार शुं छे एनी खबर पडती नथी. पंडित श्री बनारसीदास ‘परमार्थवचनिका’ मां कहे छे के-‘ज्ञाता तो मोक्षमार्ग साधी जाणे छे, मूढ मोक्षमार्ग साधी जाणे नहि. शा माटे? ते सांभळोः-मूढ जीव आगमपद्धतिने व्यवहार कहे छे अने अध्यात्मपद्धतिने निश्चय कहे छे, तेथी ते आगम अंगने एकांतपणे साधी मोक्षमार्ग दर्शावे छे; अध्यात्मअंगने व्यवहारथी पण जाणे नहि ए मूढद्रष्टि जीवनो स्वभाव छे; तेने ए ज प्रमाणे सूझे छे. शाथी? कारण के आगमअंग बाह्यक्रियारूप प्रत्यक्ष-प्रमाण छे, तेनुं स्वरूप साधवुं एने सुगम छे, बाह्यक्रिया करतो थको मूढ जीव पोताने मोक्षनो अधिकारी माने छे, पण अंतर्गर्भित अध्यात्मक्रिया जे अंतद्रष्टिग्राह्य छे ते क्रियाने मूढ जीव जाणे नहि, कारण अंतर्द्रष्टिना अभावथी अंतरक्रिया द्रष्टिगोचर आवे नहि.’

अज्ञानी दया-दान, व्रत-भक्तिना भावने व्यवहार कहे छे अने जे आत्मानुं त्रिकाळ स्वरूप छे तेनी श्रद्धा-ज्ञाननी परिणतिने निश्चय कहे छे. तेथी व्यवहार-दया- दान, व्रत-भक्ति अने पूजाना विकल्पने साधी मोक्षमार्ग माने छे. परंतु त्रिकाळी ज्ञायकभाव ए निश्चय अने तेनी शुद्ध परिणति-राग विनानी सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चारित्रनी वीतराग परिणति थवी ते अध्यात्मनो व्यवहार छे एनो मूढ जीवने ख्याल नथी.

आत्मा शुद्ध सच्चिदानंदमूर्ति छे. सत् नाम शाश्वत ज्ञान अने आनंदनो सागर भगवान आत्मा छे. एमां वीतराग-विज्ञानमय जे रमणता थाय तेने अध्यात्मनो व्यवहार कहे छे, पण अज्ञानीने आनी खबर नथी, तेथी बाह्य प्रत्यक्ष-प्रमाणरूप व्रत, तप, पूजा, भक्ति इत्यादि भावने जोईने तेने ज अध्यात्मनो व्यवहार मानी बेसे छे. अनादिथी ते बाह्य क्रियाकांड-व्रत, नियम आदि पाळे छे तेथी तेनुं स्वरूप साधवुं एने सुगम छे, परंतु सच्चिदानंदस्वरूप भगवान आत्मानो अनुभव करीने तेमां ठरवुं एवी वीतरागी अध्यात्म व्यवहारक्रियाने ए जाणतो नथी.

भगवान आत्मा त्रिकाळ ध्रुव शुद्ध द्रव्यवस्तु नित्यानंद प्रभु अक्रियस्वरूपे छे. परिणमवुं