Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१७२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ के बदलवुं ए क्रिया एनामां नथी. परिणमवुं के बदलवुं ए तो अवस्था-पर्यायमां छे. आवो त्रिकाळी ध्रुव अक्रियस्वरूप आत्मा ते निश्चय छे अने तेना अवलंबने मोक्षमार्ग साधवो ते व्यवहार छे. रागथी भिन्न अंदर सच्चिदानंदस्वरूप भगवान ध्रुव पडयो छे ए तो अक्रिय छे. परिणमवानी क्रिया एमां नथी. आवा ध्रुव अक्रियस्वरूप भगवानने अवलंबीने एमां ज ठरवुं ए मोक्षमार्ग छे. ए निश्चयमोक्षमार्ग ते अध्यात्मनो व्यवहार छे. शुं कह्युं? शुद्ध द्रव्यवस्तु ए निश्चय अने तेना आश्रये मोक्षमार्ग प्रगटे ते व्यवहार. शुभरागरूप व्यवहार मोक्षमार्गनी आ वात नथी हों. अहीं तो केवळज्ञानस्वभावी आनंदनो गोळो प्रभु शुद्ध, ध्रुव अक्रिय वस्तु जेमां बदलवुं-परिणमवुं नथी ते निश्चय अने पर्यायमां जे निश्चय मोक्षमार्ग प्रगट थाय ते व्यवहार छे. आवो मार्ग छे, भाई! अरे! ८४ ना अवतारमां रखडतां एने आ वात मळी ज नथी! अहा! घरमां छे छतां पोते कोण छे एनी खबर नथी!

अहीं कहे छे के-जेम साकर गळपणस्वरूप, अफीण कडवास्वरूप अने मीठुं खारास्वरूप छे तेम भगवान आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ज्ञाता-द्रष्टा छे. आवा ज्ञानस्वभावनुं भान करीने, श्रद्धान करीने तेमां ठरवुं ते प्रत्याख्यान छे. अने ए निर्मळ वीतराग परिणतिने ज चारित्र अने मोक्षमार्ग कहे छे. अहाहा! त्रणे काळ जेमां जन्म- मरण अने जन्म-मरणना भावनो अभाव छे एवो भगवान आत्मा छे. कोईने एम थाय के आ शुं कहे छे? पण भाई! आ तो तारा निज घरनी वात छे. निजघरमां तो ज्ञान अने आनंदनां निधान पडयां छे ने! आ शरीर तो हाडकां अने मांसनुं पोटलुं परचीज छे. हिंसा, चोरी आदि पापभाव छे, अने दया-दानना भाव पुण्य छे. आ बधायथी तुं भिन्न छे. आवा आत्मानुं भान करी एमां ठरवुं ए प्रत्याख्यान छे.

हवे शिष्य पूछे छे के-प्रभो! आपे तो ज्ञातानुं प्रत्याख्यान ज्ञान ज कह्युं. बे हाथ जोडे ए तो जडनी क्रिया थई, अने जे विकल्प ऊठे छे ए रागनी क्रिया छे; ए कांई प्रत्याख्यान नथी. ज्ञानस्वरूप भगवाननी प्रतीति करी, अनुभव करी एमां ज रमणता अने स्थिरता करवी ए प्रत्याख्यान छे एम आपे कह्युं. तो तेनुं द्रष्टांत शुं छे? तेना उत्तररूपे द्रष्टांत अने सिद्धांत गाथा द्वारा कहे छेः-

* गाथा ३पः टीका उपरनुं प्रवचन *

अहीं धोबीनुं द्रष्टांत आपे छे. जेम-कोई पुरुष धोबीने त्यां पहेलां आपेलुं वस्त्र लेवा गयो. धोबीने ते वस्त्र हाथ नहि आववाथी तेने बीजुं वस्त्र आप्युं. एटले ते भ्रमथी बीजानुं वस्त्र लावी पोतानुं जाणी-मानी निश्चित थईने वस्त्र ओढीने सूतो छे, अने पोतानी मेळे अज्ञानी थई रह्यो छे अर्थात् आ बीजानुं वस्त्र छे एवा ज्ञान विनानो थई रह्यो छे हवे जेनुं आ वस्त्र हतुं ए बीजो पुरुष धोबीने त्यां आव्यो अने पोतानुं