गाथा ३प ] [ १७३ वस्त्र माग्युं. पूछपरछ करतां खबर पडी के हमणां ज कोई भाई ए वस्त्र भूलथी लई गया छे. त्यारे ते बीजो पुरुष सीधो ज पेला पुरुषना घेर जई, तेने ते वस्त्र ओढीने सूतेलो जोई ते वस्त्रनो खूणो पकडी, खेंची तेने उघाडो करे छे, कहे छे के-‘भाई! तुं शीघ्र जाग, सावधान था. आ वस्त्रनुं चिह्न जो. आ वस्त्र मारुं छे ते भूलथी बदलाईने तारी पासे आव्युं छे. तो ए मारुं वस्त्र मने आपी दे.’ आम एक-बे वार नहि पण वारंवार कहेला ते वाकयने सांभळतो ते पुरुष सावधान थईने वस्त्रनां सर्व चिह्नोथी सारी रीते परीक्षा करीने, ‘आ वस्त्र मारुं नथी, मारा वस्त्रना छेडे तो में मारुं नाम सीवी राख्युं छे ते अहीं नथी तेथी जरूर आ वस्त्र पारकुं ज छे’-एम जाणीने ज्ञानी थयो थको एटले संसारनो डाह्यो थयो थको ते वस्त्रने जलदी त्यागे छे, छोडी दे छे. भले वस्त्र हजु दूर थयुं न होय, पण ज्यां पर तरीके जाण्युं त्यां तरत ज पोतापणानी बुद्धि छूटी जाय छे, अने जे भ्रम हतो के आ वस्त्र मारुं छे एम भ्रम भांगी जाय छे.
तेवी रीते-आ ज्ञाता भगवान आत्मा चैतन्यमूर्ति प्रभु ज्ञानथी भरेलो दरियो छे. ए अनंत ज्ञानस्वभावना सामर्थ्यथी भरेलो भगवान ज्ञाता छे. ते जाणनार- जाणनार-जाणनार छे. छतां ते जेने जाणे छे ते परचीजोने-आ स्त्री, कुटुंब वगेरे तो ठीक पण अंदरमां कर्मना संगे-वशे थता पुण्य-पापना विकारी भावो जे परद्रव्यना भावो छे तेने, बीजाना वस्त्रनी जेम, पोताना मानी ग्रहण करे छे. पोते तो जाणनार स्वरूपे छे, छतां पण परद्रव्यना भावोने ग्रहण करी पोताना माने छे. ज्ञान अने आनंद जे स्वद्रव्यनो भाव छे तेने कदीय जोयो नथी तेथी दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादि विकारी परिणाम मारा पोताना छे एम माने छे.
ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा चैतन्यप्रकाशना नूरना तेजनुं पूर छे. तेना अंतरमां ज्ञान अने आनंद भरेला छे. आवो ज्ञाता भगवान पोताने भूली भ्रमथी परद्रव्यना भावोने पोताना मानी अनादिथी जन्म-मरणनी घटमाळमां फर्या करे छे. अनादिथी अज्ञानी स्वद्रव्यना स्वरूपने छोडी दई पुण्य-पापना विकल्पो जे परद्रव्यना भावो छे तेमने भ्रमथी पोताना मानी ग्रहण करे छे. पोतानो स्वभाव तो जाणवुं-देखवुं छे. पण स्वभावनुं भान नहि होवाथी भ्रमथी परद्रव्यना भावोने पोताना जाणी ग्रहण करे छे. जुओ, अहीं ‘भ्रमथी’ कह्युं छे, ‘कर्मथी’ कह्युं नथी. अहाहा! ज्ञानानंदस्वरूप भगवान ब्रह्मने भ्रम थयो छे तेथी पोताने छोडीने परद्रव्यना भावो-दया, दान, भक्ति आदि पुण्यभावो अने हिंसा, जूठ, चोरी, आदि पापभावोने ग्रहण करे छे अने पोताना मानी अज्ञानी थई रह्यो छे. बिचारो शुं करे? तेने उपदेश पण एवो ज सांभळवा मळे छे के- पुण्य करो, पुण्य करवाथी धर्म थाय छे. परंतु आ यथार्थ उपदेश नथी.
भाई! पुण्यभाव जे दया, दान, भक्ति, व्रत, तप, पूजा, जात्रा, वगेरेना भाव छे