१७४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ ते राग छे (धर्म नथी), अने ते रागने जे पोताना माने ते मिथ्याद्रष्टि छे. ज्यां सुधी पूर्ण वीतरागता प्रगट थती नथी त्यांसुधी सम्यग्द्रष्टिने पण शुभराग होय छे खरो, परंतु व्यवहार छे अने ते आश्रय करवा लायक नथी. निश्चय अने व्यवहार बन्ने उपादेय (आश्रय करवा योग्य) नथी. व्यवहार होय छे खरो, पण ते आदरणीय नथी. व्यवहारनयने जो न माने तो तीर्थनो ज नाश थाय अने जो निश्चयनयने न माने तो तत्त्वनो नाश थाय. तेथी गुणस्थान आदि भेदो जे व्यवहार छे ते होय छे खरो, परंतु ते आदरवा लायक नथी. तथा ए व्यवहारथी निश्चय थाय एम पण नथी.
अहीं ए ज वात कहे छे के-पोतानुं स्वरूप तो ज्ञान ज छे. परंतु अज्ञानी स्वरूपने भूलीने भ्रमथी रागादि विभागोने ग्रहण करी तेमने पोताना जाणीने पोतामां एकरूप करीने सूतो छे. अनादिथी अज्ञानी जीव एकला ज्ञाननो पिंड प्रभु आत्मा छे तेने छोडी दईने पुण्य-पापना भाव जे धर्मथी विरुद्ध एटले अधर्म छे तेमने पोताना जाणीने, तेमने पोताना स्वभावमां एकरूप रीने सूई रह्यो छे, ऊंघी गयो छे; अने पोतानी मेळे अज्ञानी थई रह्यो छे. कर्मथी अज्ञानी थई रह्यो छे एम नथी, पोतानी मेळे अज्ञानी थई रह्यो छे. कह्युं छे ने केः-
पोतानी चीज सच्चिदानंद प्रभु आनंदकंद ज्ञायक छे. तेने छोडीने अज्ञानी देहादि जे परवस्तु जड अजीवस्वरूप छे तेने अने अंदरमां जे पुण्य-पापना विकार थाय छे तेने पोताना मानी मोहनिंदमां सूई रह्यो छे. भगवान आत्मा तो अबंधस्वभाव छे, अने जे पुण्य-पापना भाव छे ए भावबंध छे, आस्रवरूप छे. छतां ते भावोने पोताना जाणी, पोताथी एकरूप मानी पोते पोताथी ज अज्ञानी थई रह्यो छे; कर्मथी अज्ञानी थई रह्यो छे एम नथी.
आ देश, मकान अने छोकरां ए तो कयांय दूर रह्यां. अहीं वर्तमान दशामां कर्मना संगथी जे पुण्य-पापना भावो उत्पन्न थाय छे ते परद्रव्यना भावो छे एम कह्युं छे. कारण के परमात्मदशा थतां ते भावो छूटी जाय छे अने ज्ञानानंदस्वरूप चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा रही जाय छे. भाई! तारो देश तो असंख्य प्रदेशी द्रव्य अंदर छे, अने तेमां अनंत अनंत गुणनी प्रजा वसे छे. राग के पुण्य-पापना विकल्पो ए पोतानो स्वभाव के स्वभावनी जातना नथी. तेओ तो चंडाळनी जेम विकार-विभावनी जातना छे. एमनो वस्तुमां प्रवेश छे ज नहि. छतां अनादिथी चैतन्य भगवान पोतानी ज्ञान- आनंदनी स्वरूपसंपदाने भूलीने पुण्य-पापना विकल्पोने पोताना जाणीने, एमां ज एकरूप थईने सूतो छे, अने पोतानी मेळे अज्ञानी थई रह्यो छे. जुओ, दर्शनमोहनो उद्रय आव्यो तेथी अज्ञानी थयो छे एम नथी लीधुं. परंतु रागादि पुण्य-पापना मेलने पोतानो