Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३प ] [ १७प मानीने पोतानी मेळे अज्ञानी थयो छे. तोपण अज्ञानीने एवी मान्यता थई गई छे के कर्मने लईने बधुं थाय छे. दोष करे छे पोते, पण नाखे छे कर्मना माथे. पण भाई! कर्मनो कांई वांक नथी. आवे छे ने केः-

‘कर्म बिचारे कौन भूल मेरी अधिकाई;
अग्नि सहै घनघात लोहकी संगति पाई.’

एकली अग्निने माथे घण न पडे. पण जो ते लोढानो संग करे तो घण पडे. तेम आ आत्मा जो रागनो संग करे अने एमां एकाकार थाय तो चारगतिनां दुःख भोगवे.

अहाहा! शुं खूबीथी वात करी छे! के जेम कोई पुरुष धोबीने त्यांथी बीजानुं वस्त्र लई आव्यो अने भ्रमथी पोतानुं जाणी ओढीने सूतो छे तेम आ भगवान आत्मा पोतानी चैतन्यनी जातना नहि एवा परभावमय शुभ-अशुभ रागने ग्रहण करी, भ्रमथी पोताना जाणीने, पोतानी साथे एकरूप करी सूतो छे. चैतन्य प्रभु तो निर्विकल्पघन छे. परंतु पर्यायमां रागनी-विकल्पनी दशा साथे एकरूप थई अनादिथी सूतो छे. पैसा, देश, शरीर इत्यादि मारां छे एवी मान्यता तो गाढ मूढता छे. परंतु अहीं तो रागनी वृत्ति जे मेलमय छे अने जे आत्मस्वभावमां नथी एने पोतानी मानीने सूतो छे ते पण मूढ छे ए वात छे. चैतन्यदळ प्रभु आत्मामां एवी ताकात छे के ते एक समयमां समग्र लोकालोकने जाणे. परंतु रागने रचवानी तेना स्वभावमां ताकात नथी. भगवान आत्मा अंदर अनंत आनंद अने वीतरागी शांतिनुं दळ छे. पण कोई दिवस सांभळ्‌युं होय त्यारे ने? बिचारो बहारनी धामधूममांथी नवरो ज थतो नथी. तेथी पोते पोतानी मेळे अज्ञानी थयो थको चारगतिमां रखडपट्टी करे छे.

भाई! वीतरागी प्रभुनो मार्ग, धर्मनो मार्ग जगतथी जुदो छे. परनी दया पाळवानो भाव आवे छे ते शुभराग छे. परंतु एथी परनी दया कोई पाळी शके छे एम नथी. कारण के परवस्तु छे ते (परिणमनमां) स्वतंत्र छे. तेनी दशानो र्क्ता ते पोते छे. तेथी बीजो कोई एम कहे के हुं आने जिवाडुं के मारुं तो ए मान्यता मिथ्या भ्रम छे, अने ते अज्ञानी छे, मूढ छे. भाई! तुं तो ज्ञान छे ने! तुं जाणवानी भूमिकामां रहे एवुं तारुं स्वरूपतत्त्व छे. जाणनार शुं करे? शुं ते राग करे? रागनो- विकारनो तो तारा स्वभावमां अभाव छे. छतां दया, दान आदि परद्रव्यना भावोने एकरूप करी मिथ्यात्वमां अनादिथी सूतो छे ए मोटुं अज्ञान छे.

भगवान आत्मा अनादिथी पोतानी चीजने भूलीने कृत्रिम, क्षणिक, उपाधिमय एवा पुण्य-पापना भावोने पोताना मानी पोतानी मेळे अज्ञानी थई रह्यो छे. तेने श्रीगुरु परभावनो भेद करी बतावे छे के-भाई! तुं चैतन्यस्वरूप ज्ञानसंपदाथी भरेलो भंडार छे. आ रागना विकल्पोथी तारी चीज भिन्न छे. तुं तारुं लक्षण जो. तारुं लक्षण तो जाणवुं