Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३प ] [ १८३ परमेश्वरनी वाणी अने तेना आगमनुं शुं कहेवुं? एकलुं माखण भर्युं छे. सर्वज्ञदेवे शुं कह्युं, तेमणे शुं कर्युं, आगम शुं कहे छे, गुरु शुं उपदेश आपे छे तथा सांभळनारने कयारे भेदज्ञान थाय छे ते बधुंय बताव्युं छे. बीजी रीते कहीए तो परमागमनी वाणीमां जे उपदेश छे ए ज निमित्त थाय छे, अज्ञानीनो उपदेश (भेदज्ञान थवामां) निमित्त थतो नथी.

शुं जाणीने ज्ञानी थयो? के हुं तो ज्ञानमात्र ज छुं एवी स्वद्रष्टि करतां आ रागादि परभावो ज छे एम जाणीने ज्ञानी समकिती थयो थको सर्व परभावोने तत्काळ छोडे छे. स्वरूपमां एकाग्र थतां परभावनो आश्रय मटी गयो तो परभाव छूटी गयो एनुं नाम पच्चकखाण एटले चारित्र छे. एक सेकन्डनुं पच्चकखाण अनंता जन्म- मरणने मटाडे एवुं छे. वीतराग परमेश्वरना मार्गनी आ रीत छे अने ते रीत दिगंबर धर्ममां ज छे, बीजे कयांय नथी. आ ज जैनधर्म छे, बीजो कोई जैनधर्म नथी. परंतु ज्यांसुधी आ समजमां न आवे त्यांसुधी पोतानी मान्यता खोटी छे एम केम माने? ‘ज्ञानी थयो थको सर्व परभावोने तत्काळ छोडी दे छे.’ ‘सर्व परभावो’-एम भाषा छे, सूक्ष्ममां सूक्ष्म गुण-गुणीना भेदरूप विकल्पो जे परभाव छे तेने पण तत्काळ छोडी दे छे, अर्थात् ते (स्थिरताना काळे) छूटी जाय छे. एनुं नाम भगवान रागनो त्याग कहे छे. ज्ञायकस्वरूप भगवान आत्मा छे एवो बोध थयो अने पोते एमां स्थिर थयो तो राग छूटी गयो एनुं नाम भगवान पच्चकखाण कहे छे.

* गाथा ३पः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

ज्यांसुधी परवस्तुने भूलथी पोतानी जाणे त्यांसुधी ज ममत्व रहे; अने ज्यारे यथार्थ ज्ञान थवाथी परवस्तुने पारकी जाणे त्यारे बीजानी वस्तुमां ममत्व शानुं रहे? अर्थात् न रहे ए प्रसिद्ध छे. जेम लग्न प्रसंग होय अने पोतानी स्थिति साधारण होय तो कोई अन्य गृहस्थने त्यांथी दागीनो लई आवीने पहेरे छे. पण ते समये पोते शुं समजे छे? के आ मारो दागीनो नथी. बे दिवसमां पाछो आपवानो छे, केमके ममत्व नथी. तेम रागादिने परपणे जाण्या एटले पोतानी चीज नथी एम जाणी तेने छोडी दे छे.

हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-

* कळश २९ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

अपरभावत्यागद्रष्टांतद्रष्टिः आ परभावना त्यागना द्रष्टांतनी द्रष्टि अनवम् जूनी न थाय ए रीते अत्यन्तवेगात् यावत् न अवतरति अत्यंत वेगथी ज्यांसुधी प्रवृत्तिने पामे नहि-शुं कह्युं ए? जेम वस्त्र पर छे अने तेने भूलथी ओढीने सूतो छे, पण ज्यां ख्यालमां आव्युं के आ वस्त्र पर छे त्यां वस्त्र छूटी गयुं, अभिप्रायमांथी वस्त्र जुदुं पडी